सम उत्पाद वक्र क्या है ? सम-उत्पाद वक्रों की मुख्य मान्यताएँ

उत्पादन फलन तथा उत्पादन के नियम अध्याय में हमने एक फर्म के संबंध में यह अध्ययन किया कि वह एक परिवर्तनशील साधन का अधिक प्रयोग करके अथवा सभी साधनों का अधिक प्रयोग करके अपने उत्पादन में वृद्धि करती है। इस अध्याय में हम उस फर्म के संबंध में अध्ययन करेंगे जो अपने उत्पादन का विस्तार उन दो परिवर्तनशील साधनों का प्रयोग करके करती है जो एक दूसरे के प्रतिस्थापन हैं। इस उद्देश्य के लिए एक उत्पादन फलन के साथ दो परिवर्तनशील साधनों को जोड़ा जाता है। मान लीजिए ये साधन श्रम और पूंजी हैं। फर्म के उत्पादन फलन को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

Y = f (K, L)
(यहाँ Y = उत्पादन, K = पूँजी तथा L = श्रम)

परिवर्तनशील साधन आपस में प्रतिस्थापनीय  हैं और प्रत्येक साधन के संदर्भ में घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है। इस फलनात्मक संबंध में Y एक निर्भर तत्त्व है और L तथा K स्वतंत्र तत्त्व हैं। इसलिए यदि हम तीन तत्त्वों (श्रम, पूँजी तथा उत्पादन) के बीच संबंध को चित्रित करना चाहते हैं तब ऐसा चित्रण चित्राीय दृष्टि से केवल त्रि-आयात्मक चित्र द्वारा ही व्यक्त किया जा सकता है, जो बहुत ही जटिल होता है। इस संबंध को चित्रित करने के लिए तुलनात्मक रूप से आसान रास्ता यह है कि उत्पादन Y को स्थिर  मान लेना। तब यह फलनात्मक संबंध हमें बतलाता है कि उत्पादन का एक समान या स्थिर स्तर किस प्रकार दो परिवर्तनशील साधनों, जैसे श्रम और पूंजी, के विभिन्न संयोगों की सहायता से पैदा किया जा सकता है। इस फलनात्मक संबंध के रेखागणितीय प्रस्तुतीकरण को सम-उत्पाद वक्र कहा जाता है। 

सम-उत्पाद वक्र एक तकनीकी संबंध है जो यह प्रकट करता है कि साधनों को उत्पादन में किस प्रकार परिवर्तित किया जाता है। यह एक कुशलता संबंध भी है जो साधनों की एक दी हुई मात्रा के प्रयोग के फलस्वरूप उत्पादन की अधिकतम मात्रा को प्रकट करता है। 

अन्य शब्दों में, यदि साधनों की मात्राएँ एवं कीमतें दी हुई हैं तब वह लागतों को न्यूनतमीकरण अथवा साधनों के इष्टतम संयोगों को प्रकट करता है। 

Isoquant या Isoproduct शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, Iso = equal (समान) और quant = quantity (मात्रा) या product = output (उत्पादन)। अतः इसका अर्थ है कि समान मात्रा अथवा समान उत्पादन। वस्तुओं के उत्पादन के लिए विभिन्न साधनों की आवश्यकता होती है। इन साधनों का एक दूसरे के लिए प्रतिस्थापन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 100 घडि़यों का उत्पादन पूंजी की 90 इकाइयों तथा श्रम की 10 इकाइयों की सहायता से किया जा सकता है। अर्थात् घडि़यों की इस संख्या अर्थात् 100 घडि़यों का उत्पादन पूंजी तथा श्रम के दूसरे संयोगों जैसे पूंजी की 60 इकाइयाँ तथा श्रम की 20 इकाइयाँ अथवा पूंजी की 40 इकाइयाँ तथा श्रम की 30 इकाइयाँ से भी किया जा सकता है। यदि कुल उत्पादन की समान मात्रा पैदा करने के लिए दो साधनों के विभिन्न संयोगों को एक वक्र के रूप में प्रस्तुत किया जाए तो ऐसी वक्र को सम-उत्पाद वक्र कहा जाएगा। अतः सम-उत्पाद वक्र वह वक्र है जो उत्पादन साधनों के विभिन्न संभव संयोगों को प्रकट करती है जिनसे समान मात्रा में उत्पादन होता है। सम-उत्पाद वक्रों को समान उत्पादन या सम-उत्पाद या उत्पादन तटस्थता वक्र भी कहा जाता है।

सम उत्पादन वक्र को उत्पादन तटस्थता वक्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उपभोग के सिद्धांत  के तटस्थता वक्र विश्लेषण को उत्पादन के सिद्धांत  पर लागू करता है। 

फर्गूसन के अनुसार, ‘‘सम-उत्पाद वक्र वह वक्र है जो साधनों के उन सभी संभावित संयोगों को प्रकट करती है जो उत्पादन के एक निश्चित स्तर को उत्पादित करने के लिए भौतिक रूप से समर्थ होते हैं।’’ 

पीटरसन के शब्दों में, ‘‘सम-उत्पाद वक्र को उस वक्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो दो परिवर्तनशील साधनों के संभावित संयोगों को प्रकट करती है जिनका एक समान मात्रा में उत्पादन करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।’’ 

सम-उत्पाद वक्रो की मुख्य मान्यताएँ

सम-उत्पाद वक्रों की मुख्य मान्यताएँ हैं- 

1. उत्पादन के दो साधन -इन वक्रों को खींचते समय, सरलता की दृष्टि से, यह मान लिया जाता है कि उत्पादन के केवल दो साधन ही किसी वस्तु को उत्पादित करने के लिए प्रयोग में लाए जा रहे हैं। दोनों साधन परिवर्तनशील हैं। 

2. स्थिर तकनीक -यह मान लिया जाता है कि उत्पादन की तकनीक स्थिर है या पहले से ज्ञात है। 

3. विभाज्य साधन -यह मान लिया गया है कि उत्पादन साधन विभाज्य हैं या इनका छोटी मात्राओं में प्रयोग किया जा सकता है। 

4. तकनीकी प्रतिस्थापन की संभावना -यह मान लेना अनिवार्य है कि दो साधनों के बीच प्रतिस्थापन तकनीकी रूप से संभव है। अर्थात् उत्पादन फलन ‘स्थिर अनुपातों’ के प्रकार का नहीं बल्कि ‘परिवर्तनशील अनुपातों’ के प्रकार का है। 

5. कुशल संयोग -यह भी मान लिया गया है कि दी हुई तकनीक के अंतर्गत उत्पादन के साधनों का अधिकतम वुफशलता से प्रयोग किया जाता है। 

सम उत्पाद वक्र विश्लेषण की दो आधारभूत धारणाएँ 

  1. उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाने वाले दोनों परिवर्तनशील साधन एक दूसरे के स्थानापन्न हैं। 
  2. उत्पादन पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है। 

सम-उत्पाद वक्रों की विशेषताएँ 

सम-उत्पाद वक्रों की विशेषताएँ तटस्थता वक्रों से मिलती जुलती हैं। ये विशेषताएँ हैं- 

1. सम-उत्पाद वक्रों की ढलान उपर से नीचे की ओर होता है - इसका ढलान ऋणात्मक होता है। इसका कारण यह है कि एक साधन दूसरे का प्रतिस्थापन होता है। किसी वस्तु के उत्पादन की एक निश्चित मात्रा प्राप्त करने के लिए यदि हम एक साधन का अधिक उपयोग करेंगे तो दूसरे साधन का कम प्रयोग किया जाएगा। यदि दोनों साधनों का एक साथ अधिक या कम प्रयोग किया जाएगा तो कुल उत्पादन समान नहीं रहेगा, वह क्रमशः अधिक या कम हो जाएगा।

2. सम-उत्पाद वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होती है - सम-उत्पाद वक्र अपने मूल बिंदु व् की ओर सदा उन्नतोदर होती है इसका अभिप्राय है कि साधन पूर्ण स्थानापन्न नहीं है। इसका कारण यह है कि साधनों की तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत दर घटती हुई होती है।

3. दो सम-उत्पाद वक्र कभी एक दूसरे को काट नहीं सकतीं -हम जानते हैं कि सम-उत्पाद वक्र उत्पादन के विशेष स्तर को व्यक्त करती है और उस पर प्रत्येक बिंदु उत्पादन के समान स्तर को बतलाता है। यदि दो सम-उत्पाद वक्र एक दूसरे को काटती हैं तब दोनों वक्रों पर समरूप समान बिंदु हमें प्राप्त होंगे। ये समान बिंदु उत्पादन के दो विभिन्न स्तरों को प्रकट करेंगे। यह सम-उत्पाद वक्र की मान्यता के विपरीत होगा। उत्पाद वक्र पर प्रत्येक बिंदु समान उत्पादन को प्रकट करता है। 

4. सम-उत्पाद वक्र जितना उँचा होता है उतना ही अधिक उत्पादन मात्रा को प्रकट करता है -सम-उत्पाद वक्र जितनी एक दूसरे से उपर होती हैं उतनी ही उत्पादन की अधिक मात्रा को प्रकट करती हैं। इसका अर्थ यह है कि उंची सम-उत्पाद वक्र साधनों के उत्पादन के उंचे स्तर पर आधारित होती हैं। 

सम-उत्पाद वक्र तथा तटस्थता वक्र के बीच अंतर 

मांग सिद्धांत में तटस्थता वक्रों का जो योगदान है वह ही सम-उत्पाद वक्रों का उत्पादन सिद्धांत में है। सम-उत्पाद वक्रों की विशेषताओं का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ये वक्र लगभग तटस्थता वक्रों के समान ही हैं परंतु इन दोनों वक्रों में निम्नलिखित अंतर पाया जाता है 
  1. एक तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिनसे उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त होती है। इसके विपरीत एक सम-उत्पाद वक्र दो साधनों के उन विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिससे किसी पफर्म को समान उत्पादन प्राप्त होता है। 
  2. सम-उत्पाद वक्र उत्पादन के समान स्तर को प्रकट करता है जिसे मापा जा सकता है। तटस्थता वक्र संतुष्टि के समान स्तर को व्यक्त करता है जिसे मापा नहीं जा सकता। 
  3. सम-उत्पाद वक्र परिवर्तनशील साधनों के संयोगों को प्रकट करता है जबकि तटस्थता वक्र वस्तुओं के संयोगों को व्यक्त करता है।
  4. सम-उत्पाद वक्रों द्वारा उत्पादन के आर्थिक तथा अनार्थिक क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त होता है। तटस्थता वक्र द्वारा उपभोग के आर्थिक तथा अनार्थिक क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त नहीं होता। 
  5. एक सम-उत्पाद वक्र का ढलान उत्पादन के साधनों के बीच प्रतिस्थापन की तकनीकी संभावना द्वारा प्रभावित होता है। यह प्रतिस्थापन की तकनीकी सीमांत दर पर निर्भर करता है। जबकि एक तटस्थता वक्र का ढलान उपभोक्ता द्वारा उपभोग की गई दो वस्तुओं की प्रतिस्थापन की सीमांत दर पर निर्भर करता है। 
वाटसन ने सही निष्कर्ष निकाला है कि, ‘‘सम-उत्पाद वक्र असल में तटस्थता वक्रों की भांति ही दिखाई देती हैं। इनकी रेखागणितीय विशेषताएँ एक समान हैं। इनका आर्थिक विश्लेषण समानांतर है परंतु एक बड़ा अंतर इनको एक दूसरे से अलग करता है। तटस्थता वक्र भावगत हैं, उपभोक्ता के मन में जो विचार आते हैं उन्हें मान लिया जाता है। इसके विपरीत सम-उत्पाद वक्र वस्तुनिष्ठ हैं, इनको सैद्धतिक तथा व्यावहारिक रूप में मापा जा सकता है।’’

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