जब कोई कम्पनी समता अंश पूँजी की बजाय ऋण पूँजी के आधार पर
अपने व्यवसाय का संचालन करती है तो इसे समता पर व्यापार करते हैं। कुल
पूंजीकरण में ऋण पूँजी का अनुपात अधिक रखकर समता अंशों पर आय बढ़ाई
जा सकती है।
गेस्टर्नबर्ग के अनुसार-‘‘जब कोई व्यक्ति या निगम स्वामित्व पूँजी के साथ ऋण पूँजी लेकर अपने नियमित व्यापार का संचालन करता है, तो इसे समता पर व्यापार कहते हैं।’’
गुथमैन तथा डूंगल के अनुसार-‘‘किसी फर्म के वित्तीय प्रबन्ध के लिये स्थायी लागत पर ऋण कोषों का प्रयोग करना समता पर व्यापार कहलाता है।’’
समता पर व्यापार (Trading on Equity) को अनुकूल वित्तीय उत्तोलक भी कहा जाता है। यहाँ पर ऋण पूँजी में ऋणपत्रों, दीर्घकालीन ऋणों, बॉण्डों तथा अधिमान अंश पूँजी को भी शामिल किया जाता है, जिन्हें स्थाई लागत वाली पूँजी भी कहा जाता है। समता पर व्यापार की नीति तभी लाभदायक सिद्ध होती है, जबकि प्रबन्धकों को यह विश्वास हो कि वे ऋण पूँजी पर चुकाये जाने वाले ब्याज की अपेक्षा अधिक आय अर्जित कर सकेंगे।
गेस्टर्नबर्ग के अनुसार-‘‘जब कोई व्यक्ति या निगम स्वामित्व पूँजी के साथ ऋण पूँजी लेकर अपने नियमित व्यापार का संचालन करता है, तो इसे समता पर व्यापार कहते हैं।’’
गुथमैन तथा डूंगल के अनुसार-‘‘किसी फर्म के वित्तीय प्रबन्ध के लिये स्थायी लागत पर ऋण कोषों का प्रयोग करना समता पर व्यापार कहलाता है।’’
समता पर व्यापार (Trading on Equity) को अनुकूल वित्तीय उत्तोलक भी कहा जाता है। यहाँ पर ऋण पूँजी में ऋणपत्रों, दीर्घकालीन ऋणों, बॉण्डों तथा अधिमान अंश पूँजी को भी शामिल किया जाता है, जिन्हें स्थाई लागत वाली पूँजी भी कहा जाता है। समता पर व्यापार की नीति तभी लाभदायक सिद्ध होती है, जबकि प्रबन्धकों को यह विश्वास हो कि वे ऋण पूँजी पर चुकाये जाने वाले ब्याज की अपेक्षा अधिक आय अर्जित कर सकेंगे।
समता पर व्यापार के प्रकार
समता पर व्यापार दो प्रकार से हो सकता है -1. अल्प समता पर व्यापार - जब कम्पनी की
अंश पूँजी, ऋण पूँजी की अपेक्षा कम होती है तो इस स्थिति को अल्प
समता पर व्यापार कहते हैं।
2. उच्च समता पर व्यापार - जब कम्पनी की अंश पूँजी, ऋण पूँजी की अपेक्षा अधिक होती है, तो इस स्थिति को उच्च समता पर व्यापार कहते हैं।
2. उच्च समता पर व्यापार - जब कम्पनी की अंश पूँजी, ऋण पूँजी की अपेक्षा अधिक होती है, तो इस स्थिति को उच्च समता पर व्यापार कहते हैं।