शुम्पीटर के विकास मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या

जोसेफ एलोई शुम्पीटर ने जर्मन भाषा मे। प्रकाशित The Theory of Economic Development में पहली बार 1911 में अपना सिद्धान्त दिया। The Theory of Economic Development का 1934 में अंग्रेजी संस्करण आया। शुम्पीटर के बाद में अन्य पुस्तकें ‘‘व्यापार चक्र’’ तथा पूंजीवाद, समाजवाद, प्रजातन्त्र भी आयी जिनमें उन्होनें अपने विचारों में सुधार करके आर्थिक विकास के बारे में पूर्ण व्याख्या की है। सबसे पहले शुम्पीटर कल्पना करता है कि अर्थव्यवस्था स्थिर सन्तुलन में ना हो। इस प्रकार की स्थिति में ना कोई लाभ होता है ना ही कोई बचत, ना ही किसी भी प्रकार का निवेश होता है। शुम्पीटर ने बताया है कि जिनकी संभावनाएं स्थिर अवस्था में होती है। वहां पर विकास उन नए संयोगों को कार्यान्वित करने में होता है।

शुम्पीटर का विकास मॉडल

शुम्पीटर के अनुसार विकास के लिए कुछ आवश्यक तत्व इस प्रकार है

शुम्पीटर ने अपने विकास सिद्धान्त में वृत्तीय प्रवाह को भी बताया है। वृत्तीय प्रवाह भी विकास सिद्धान्त के कुछ तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण बताये है जिनका वर्णन इस प्रकार है।

1. चक्रीय प्रवाह

जब हम हमेशा जहां से कार्य आरम्भ करते है तो स्थिति चक्रीय प्रवाह कहलाती है। उसी ढंग से वही वस्तुएं प्रति वर्ष उत्पन्न होती है। समान्तर मांग और पूर्ति होती रहती है हर मांग के लिए कही ना कही पूर्ति होती है और हर पूर्ति के लिए कही ना कही मांग उत्पन्न होती है। अतः ये आर्थिक क्रियाएं होती रहती है। चक्रीय प्रवाह में। पूर्ण प्रतियोगिता होती है। यहां पर लागतें प्राप्तियों के बराबर होती है और कीमते औसत लागत के बराबर होती है। 

शुम्पीटर ने बताया है कि साधनों की अनैच्छित बेरोजगारी नही होती और लाभ और ब्याज शून्य होते है। उन्होंने अर्थव्यवस्था में गतिहीन सन्तुलन की बात कही है। चक्रीय प्रवाह में साधनों के बेकार होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है। अर्थात ना के बराबर होती है क्योंकि आर्थिक प्रणाली में उत्पन्न स्तर इष्टतम और प्रयोग अधिकतम होता है गतिहीन ढांचे में चक्रीय प्रवाह का प्रयोग होता है। उसको गतिशील और विकास के लिए किस प्रकार प्रयोग किया जाए। इन सब के लिए प्रवाह प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता होती है जिस प्रकार के परिवर्तन की आवश्यकता होती है वह परिवर्तन चक्रीय प्रवाह द्वारा किस प्रकार लाये जाये। इन परिवर्तनों की चर्चा आविष्कार में होगी।

2. आविष्कार

वर्तमान में हम जिस भी उत्पादन प्रणाली का प्रयोग कर रहे है उस उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन, आविष्कार कहलाता है। उद्यमी अपने लाभ को अधिकतम करने तथा लागतों को कम से कम किया जा सके इनके लिए अपनी उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन लाते है। शुम्पीटर की विकास धारणा का आविष्कार से अत्यधिक जुडाव है। विकास प्रक्रिया तब शुरू होती है जब अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह गडबडा जाता है। आविष्कार किस प्रकार से होते है अर्थात आविष्कार को कैसे पहचाना जाता है। आविष्कार को कई प्रकार से जाना जा सकता है जैसे - 
  1. नए बाजारों को कैसे खोला जाए। 
  2. कच्चे माल को कैसे खोजा जाए। 
  3. उपभोक्ता जिन भी वस्तुओं से अनजान हो उन वस्तुओं को खोजा जाए। 
  4. उत्पादन को नए साधनों से कैसे उत्पन्न किया जाए।
विकास प्रक्रिया को शुरू करने के लिए इन सभी तत्वों के संयोग का होना आवश्यक है। ये विकास प्रक्रिया उद्यमी तथा आविष्कारी द्वारा की जाती है। शुम्पीटर ने विकास के लिए उद्यमकर्ता को नायक समझा है। उद्यमी भविष्य को जान कर कार्य करता है। पूंजीपति द्वारा धन उपलब्ध कराया जाता है तथा उद्यमी द्वारा इस धन को प्रयोग किया जाता है। उन्होनें विकास के लिए नेतृत्व को महत्वपूर्ण माना है।

3. उद्यमी की भूमिका

शुम्पीटर ने उद्यमी की भूमिका को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है। उद्यमी को सब बातों का ज्ञान होता है जैसे कि 1. नई चीजों के लिए किस प्रकार प्रवेश पाया जा सकता है। 2. आविष्कार की सम्भावना कैसे होती है। 3. आविष्कार के लिए वित्त का समायोजन कैसे किया जाए। 4. लागत को कैसे उठाया जाए। इन सब के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना। इन सब के कारण व्यापार चक्र भी उत्पन्न होते है। अतः विकास के लिए व्यापार चक्र अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। व्यापार चक्र विकास का अन्तिम पडाव माना जाता है।

4. व्यापार - चक्र या संकट

शुम्पीटर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक आर्थिक विकास का सिद्धान्त में व्यापार - चक्र की व्याख्या की है। उन्होनें बताया है कि संकट के वास्तव कारण केवल आर्थिक क्षेत्र के ही नही बल्कि आर्थिक क्षेत्र से बाहर के भी हो सकते है। शुम्पीटर ने कहा है कि संकट एक प्रक्रिया है जिस द्वारा आर्थिक जीवन अपने आप को नई परिस्थितियों के अनुसार ढालता है। ’’ व्यापार - चक्र की कार्यविधि से पता चलता है स्फूर्ति तथा मंदी कैसे पनपति है और उनका पतन किस प्रकार से होता है। उद्यमी द्वारा जो बैंक से धन उधार लिया जाता है। उस धन का किस प्रकार से निवेश किया जाता है। 

शुम्पीटर ने बताया है कि पूंजीवाद न ‘‘ केवल अपने संस्थागत ढांचे को नष्ट करता है बल्कि एक और प्रणाली अर्थात् समाजवाद को पैदा करने में परिस्थितियां पैदा करता है, जो कई रूप धारण कर सकता है।

शुम्पीटर माॅडल की मुख्य बाते इस प्रकार है:
  1. इनका विकास सिद्धान्त 1911 में The Theory fo Economic Development में प्रकाशित हुआ। 
  2. इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण 1934 में आया। 
  3. शुम्पीटर पूंजीवाद के प्रशंसक थे। 
  4. इन्होनें दो महत्वपूर्ण तत्व माने है - नव प्रर्वतन तथा उद्यमी 5 शुम्पीटर ने एक ऐसी अर्थव्यवस्था की कल्पना की है जो स्थिर संतुलन में हो। 
  5. उन्होंने निजी सम्पति को महत्व दिया है। 
  6. उन्होनें बैंकिग संस्थाओं को अत्यधिक महत्व दिया है। 
  7. यह माॅडल तीन चीजों पर टिका हुआ है। 
  8. लाभों को लागतों के ऊपर आधिक्य माना है। 
  9. शुम्पीटर ब्याज को भी विकास की देन मानता है। 
  10. नवप्रवर्तन से होने वाले गत्यात्मक परिवर्तनों के कारण लाभ उत्पन्न होते है।

शुम्पीटर के विकास माॅडल की आलोचनाएं

1. अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए - शुम्पीटर का विकास माॅडल अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं पर लागू नही होता। अल्पविकसित देशों में आविष्कार कर्ताओं का वर्ग छोटा होता है क्योंकि इन देशों में बाजार का आकार छोटा होता है और उनके लाभ भी कम होते है परन्तु ऐसा माना गया है कि निर्धन देशों में सरकार स्वयं सब से बडा आविष्कारकर्ता होती है। 

2. बैंको को महत्व - शुम्पीटर माॅडल में बैंक साख को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है परन्तु नवप्रवर्तकों द्वारा केवल बैंकों से ही शाख प्राप्त नही किया जाता बल्कि अन्य साधन जैसे शेयर, डिबेन्चर आदि द्वारा. धन प्राप्त किया जाता है। 

3. आविष्कारी की भूमिका - शुम्पीटर के विकास माॅडल में आविष्कारी को अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका में बताया गया है। जबकि इस माॅडल की इस आधार पर आलोचना की गई है। बडे व्यापार प्रतिष्ठानों में आविष्कार कर्ताओं का काम बहुत से व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। 

4. चक्रीय प्रवाह - शुम्पीटर विकास माॅडल मे।विकास महत्वपूर्ण माना गया है कि चक्रीय प्रवाह नवप्रवर्तनों द्वारा होते है जबकि चक्रीय प्रवाह वित्तीय, प्राकृतिक कारणों द्वारा भी हो सकते है। 

5. वास्तविक बचत - शुम्पीटर ने अपने विकास माॅडल मे। वास्तविक बचतों की भूमिका की अवहेलना की है। उन्होनें बताया है कि जो भी आविष्कार किए जाते है वो बैकों से उधार लेकर किए जाते है जबकि आविष्कारों में की गई वास्तविक बचतों द्वारा भी आविष्कार किए जा सकते है। अतः शुम्पीटर ने वास्तविक बचतों की अवहेलना की है।

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