उदारीकरण का कृषि पर प्रभाव

उदारीकरण का अर्थ है, औद्योगिक सेवा क्षेत्र और व्यापार से संबंधित नियमों एवं कानूनों के बंधनों में ढील देना ओर विदेशी कम्पनियों को घरेलू क्षेत्र में व्यापारिक और उत्पादन इकाईयाँ लगाने हेतु ओर प्रोत्साहित करना। 

उदारीकरण का कृषि पर प्रभाव

उदारीकरण की प्रक्रिया द्वारा भारत सरकार ने कृषि व्यापार को परिवर्तित करने का प्रयास किया। उदारीकरण के अन्तर्गत घरेलू तथा विदेशी व्यापार सम्बन्धी कानूनों तथा नियमों में जो सुधार किये उनके द्वारा कृषि वस्तुओं का घरेलू तथा विदेशी व्यापार एक बड़ी सीमा तक प्रभावित हुआ है। उदारीकरण की प्रक्रिया द्वारा कृषि वस्तुओं के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास किया लेकिन विकसित देशों की नीतियाँ तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार की विपरीत परिस्थितियों के कारण कृषि वस्तुओं के आयात में निर्यात की अपेक्षा अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गयी। कृषि वस्तुओं के आयात-निर्यात की मदों का अध्ययन करने से पता चलता है कि कृषि निर्यात में अनुपातिक रूप से काफी कमी आयी है। भारतीय बाजार को पूर्णतः खुला करने तथा नियमों तथा प्रबन्धों में ढ़ील देने के कारण भारतीय व्यापारियों ने कृषि का निर्यात करने की अपेक्षा आयात करने पर अत्यधिक जोर दिया। आयातों में वृद्धि तथा निर्यातों में आनुपातिक रूप से कमी के कारण कृषि के घरेलू व्यापार में वृद्धि होना स्वाभाविक है। 

कृषि वस्तुओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का बनाने के कारण विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना अत्यन्त आवश्यक हुई जिसका प्रयोग घरेलू तथा विदेशी व्यापार हेतु वस्तुओं के परिस्करण एवं शुद्धता के लिए किया गया। उदारीकरा की प्रक्रिया से उद्योग तथा सेवा क्षेत्र में भी रियायतें दी गयी तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के औद्योगीकरण पर अत्यधिक बल दिये जाने के कारण भी भारतीय व्यापारियों का ध्यान कृषि व्यापार की अपेक्षा विनिर्माण वस्तुओं पर अधिक दिया गया। जिसके कारण भारतीय कृषि के घरेलू तथा विदेशी व्यापार से सम्बन्धित अनेक प्रकार की चुनौतियाँ उभरकर सामने आयी।

विशेष आर्थिक क्षेत्रों के अन्तर्गत कृषि तथा बागवानी सम्बन्धी इकाईयाँ स्थापित करने पर जोर दिया गया है। इन इकाईयों को यह भी छूट प्रदान की गयी है कि आगतें तथा अन्य सामग्री घरेलू व्यापार क्षेत्र के संविदा कृषकों को प्रदान करें। ये आगतें तथा उत्पाादन का स्वरूप आयातकर्ता देश की आवश्यकता पर निर्भर करता है। इस प्रक्रिया तथा व्यवस्था का लाभ कृषक तथा कृषि व्यापारियों को घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ाने में मिलेगा।
कृषि वस्तुओं के व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर मेला लगाने की व्यवस्था की जिसमें बैट का सामान, जड़ी बूटियाँ, मसाले, वागवानी, जैविक खाद्य उत्पाद, हस्तशिल्प को विशेषज्ञ महत्व दिया जाता है। सरस नाम के इस मेले में घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि वस्तुओं के सौदे किये जाते हैं।

आपको यह भी बताना अत्यन्त आवश्यक समझा जायेगा कि कृषि वस्तुओं की विदेशी व्यापार तथा घरेलू व्यापार में प्रतिभगिता बढ़ाने के लिए भारतीय किसानों को भी अच्छी किस्म तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने का प्रोत्साहन देने की अति आवश्यकता है। इन मेलों के माध्यम से इस कार्य को अत्यन्त सरल बनाया गया है। इन सरस मेलों का आयोजन दिल्ली, हैदराबाद, भुवनेश्वर, गुहावटी तथा जयपुर आदि मंे आयोजित किये गये।

उदारीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत कृषि वस्तुओं के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर पड़ने वाले प्रभावों के सन्दर्भ में देखना होगा कि वर्ष 2000-2001 में कृषि तथा सम्बद्ध वस्तुओं का नियति में हिस्सा 14 प्रतिशत था जो 2008-09 (अपै्रल-दिसम्बर) मंे घटकर 10. 6 प्रतिशत ही रह गया। इसी सम्बन्ध मंें देखना होगा कि वर्ष 2007-08 मंे कृषि और सम्बद्ध उत्पादों का निर्यात 76006 करोड़ रूपये था जो वर्ष 2008-09 (अप्रैल-दिसम्बर) में 62150 करोड़ रूपये ही रहा।



आयातों के संदर्भ में खाद्य पदार्थ और सम्बन्धित उत्पाद का आयात वर्ष 2006-07 में 2.9 प्रतिशत था जो वर्ष 2008-09 (अपै्रल-दिसम्बर) में बढ़कर 11.4 प्रतिशत हो गया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा किये गये तमाम निर्यात मूलक प्रयासों तथा अनेक प्रकार की रियायतों के बाद भी उदारीकरण का लाभ व्यापारियों ने कृषि वस्तुओं का आयात करके उठाया। उक्त आकड़ों के आधार पर उदारीकरण की नीति का लाभ भारतीय किसान तथा कृषि निर्यात न लेकर विकसित देश तथा आयातक व्यापारी ही ले सके।

भारत सरकार द्वारा उदारीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत ही कृषि के आन्तरिक / घरेलू व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की राह को अपनाया। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एस.ई.जेड़) देश की घरेलू सीमा के अन्तर्गत एक ऐसा क्षेत्र है जो पूर्णतः शुल्क मुक्त है, जिसे व्यापार संचालन, शुल्क तथा प्रशुल्कों की दृष्टि में आने वाली किसी भी वस्तु पर किसी भी प्रकार का शुल्क देय नहीं होता है, भले ही वह घरेलू व्यापारिक क्षेत्र से ही क्यों न प्राप्त की गयी हो या अन्य किसी देश से आयात की गयी हो। विशेष आर्थिक क्षेत्रों के माध्यम से कृषि वस्तुओं के घरेलू एवं विदेशी व्यापार को विशेष महत्व दिया गया है। इस प्रकार आप यह भंली भांति नोट कर लें कि इन क्षेत्रों के अन्तर्गत दी जाने वाली सुविधाऐं अधिकांशतः कृषि क्षेत्र के आन्तरिक व बाहरी दोनों ही क्षेत्रों पर लागू होती हैं।

उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत इस योजना के व्यापार सम्बर्द्धन हेतु निम्न प्रकार की रियायतें / छूट देने की व्यवस्था की गयी है। विशेष आर्थिक क्षेत्र इकाईयों को घरेलू व्यापार क्षेत्र से कच्चे माल, उपकरणों, उपयोग वस्तुओं आदि की प्राप्ति बिना किसी लाइसेंस या विशेष अनुमति के सम्भव होती है। निर्यात आय तथा इसकी विदेशों में निवेश सम्बन्धी छूट भी दी गयी। मूल्य सहित चुंगीकर, मण्डीशुल्क तथा स्टाम्प ड्यूटी की छूट भी की गयी है।

संदर्भ -
  1. भारतीय अर्थव्यवस्था, हिमालय पब्लिसिंग हाउस, नई दिल्ली।
  2. रूद्रदत्त एवं के.पी.एम. सुन्दरम (2011) भारतीय अर्थव्यवस्था, नई दिल्ली।
  3. जी.सी. सिंघई (2008)अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र,साहित्य भवन पब्लिकेशन, आगरा।

Post a Comment

Previous Post Next Post