सामान्यतः वार्षिकी शब्द का अभिप्राय वार्षिक आधार पर किये जाने वाले
भुगतानों/प्राप्तियों से माना जाता हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर इसके अन्तर्गत
किसी भी समयावधि यथा मासिक, त्रैमासिक, छमाही अथवा वार्षिक समय अवधियों
के अन्तर्गत किये जाने वाले भुगतानों/प्राप्तियों को भी वार्षिकी के अन्तर्गत
सम्मिलित किया जाता है।
इस प्रकार वार्षिकी से आशय एक निश्चित अवधि तक किये जाने वाले आवधिक भुगतान/ प्राप्तियों की क्रमबद्ध श्रंखला को वार्षिकी कहा जाता है। इसकी सहायता से बीमा किस्त की राशि, मकान ऋण की किस्तों का आकलन, किराया क्रय पद्धति/किस्त भुगतान पद्धति के अन्तर्गत क्रय किये गये सामान के मूल्यों का भुगतान, ऋण शोधन निधि हेतु कोष का निर्माण या छात्रवृत्ति के भुगतान हेतु वार्षिकी आदि का आकलन किया जाता है।
1. निश्चित वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्तर्गत भुगतान एक निश्चित समयावधि तक बिना किसी शर्त के होता रहता है। इस हेतु इसे निश्चित वार्षिकी के नाम से जाना जाता है।
किराया क्रय पद्धति एवं किस्त भुगतान पद्धति के अन्तर्गत इस वार्षिकी को प्रयोग में लाया जाता है।
उदाहरण- राम एक ट्रक किराया क्रय पद्धति पर रूपये 50,000 में क्रय करता है। सपुर्दुगी पर रूपये 10,000 का भुगतान कर देता है तथा शेष राशि चार समान किस्तों रूपये 10,000 प्रत्येक वर्ष के अन्त में देना निश्चित करता हैं, तो यह निश्चित वार्षिकी कहलायेगी। निश्चित वार्षिकी को पुनः चार भागों में विभाजित किया जा सकता है जो निम्नानुसार है-
1. तत्काल वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्तर्गत देय किस्त का भुगतान प्रत्येक समयावधि के समाप्ति पर किया जाता है। जब तक प्रश्न में कोई असंगत सूचना हीं दी गई हो तो उसका अभिप्राय तत्काल वार्षिकी से ही माना जाता है।
2. देय वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्र्तगत भुगतान प्रत्येक समयावधि के प्रारम्भ अर्थात् देय होने पर किया जाता है।
3. आजीवन वार्षिकी - इस वार्षिकी के नाम से ही स्पष्ट है कि इसका भुगतान लाभकर्ता के द्वारा उसके जीवन पर्यन्त तक किया जाता है। इसी कारण से इसे आजीवन वार्षिकी कहा जाता है।
4. आस्थगित वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्तर्गत इसके नाम के ही अनुरूप वार्षिकी का प्रथम भुगतान कुछ निश्चित समायावधि के व्यतीत होने के उपरान्त से किया जाता है। उदाहरण के लिये राम द्वारा एक ट्रक क्रय किया गया। प्रथम किस्त का भुगतान 5 वर्ष की अवधि के उपरान्त किया जायेगा। तत्पश्चात प्रत्येक वर्ष के अन्त में किस्तों की समाप्ति तक किया गया भुगतान आस्थगित वार्षिकी के अन्तर्गत सम्मिलित किया जायेगा।
(2) अनन्त वार्षिकी - इसे निरन्तर चलने वाली वार्षिकी/चिरस्थायी वार्षिकी भी कहा जाता है। इस वार्षिकी के अन्तर्गत किस्तों का भुगतान अनन्त काल तक निरन्तर किया जाता रहता है। उदाहरण के लिए किसी भी भू-सम्पत्ति पर लगाया जाने वाला वार्षिक प्रभाव/लगान आदि को अनन्त वार्षिकी के अन्तर्गत सम्मिलित करेंगे।
अतः संक्षिप्त रूप में वार्षिकी का मिश्रधन = (विभिन्न किस्तों में देय धनराशि + उस अवधि में अर्जित चक्रवृद्धि ब्याज।
इस प्रकार वार्षिकी से आशय एक निश्चित अवधि तक किये जाने वाले आवधिक भुगतान/ प्राप्तियों की क्रमबद्ध श्रंखला को वार्षिकी कहा जाता है। इसकी सहायता से बीमा किस्त की राशि, मकान ऋण की किस्तों का आकलन, किराया क्रय पद्धति/किस्त भुगतान पद्धति के अन्तर्गत क्रय किये गये सामान के मूल्यों का भुगतान, ऋण शोधन निधि हेतु कोष का निर्माण या छात्रवृत्ति के भुगतान हेतु वार्षिकी आदि का आकलन किया जाता है।
वार्षिकी के प्रकार
वार्षिकी के अध्ययन के दृष्टिकोण से मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया गया है-1. निश्चित वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्तर्गत भुगतान एक निश्चित समयावधि तक बिना किसी शर्त के होता रहता है। इस हेतु इसे निश्चित वार्षिकी के नाम से जाना जाता है।
किराया क्रय पद्धति एवं किस्त भुगतान पद्धति के अन्तर्गत इस वार्षिकी को प्रयोग में लाया जाता है।
उदाहरण- राम एक ट्रक किराया क्रय पद्धति पर रूपये 50,000 में क्रय करता है। सपुर्दुगी पर रूपये 10,000 का भुगतान कर देता है तथा शेष राशि चार समान किस्तों रूपये 10,000 प्रत्येक वर्ष के अन्त में देना निश्चित करता हैं, तो यह निश्चित वार्षिकी कहलायेगी। निश्चित वार्षिकी को पुनः चार भागों में विभाजित किया जा सकता है जो निम्नानुसार है-
1. तत्काल वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्तर्गत देय किस्त का भुगतान प्रत्येक समयावधि के समाप्ति पर किया जाता है। जब तक प्रश्न में कोई असंगत सूचना हीं दी गई हो तो उसका अभिप्राय तत्काल वार्षिकी से ही माना जाता है।
2. देय वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्र्तगत भुगतान प्रत्येक समयावधि के प्रारम्भ अर्थात् देय होने पर किया जाता है।
3. आजीवन वार्षिकी - इस वार्षिकी के नाम से ही स्पष्ट है कि इसका भुगतान लाभकर्ता के द्वारा उसके जीवन पर्यन्त तक किया जाता है। इसी कारण से इसे आजीवन वार्षिकी कहा जाता है।
4. आस्थगित वार्षिकी - इस वार्षिकी के अन्तर्गत इसके नाम के ही अनुरूप वार्षिकी का प्रथम भुगतान कुछ निश्चित समायावधि के व्यतीत होने के उपरान्त से किया जाता है। उदाहरण के लिये राम द्वारा एक ट्रक क्रय किया गया। प्रथम किस्त का भुगतान 5 वर्ष की अवधि के उपरान्त किया जायेगा। तत्पश्चात प्रत्येक वर्ष के अन्त में किस्तों की समाप्ति तक किया गया भुगतान आस्थगित वार्षिकी के अन्तर्गत सम्मिलित किया जायेगा।
(2) अनन्त वार्षिकी - इसे निरन्तर चलने वाली वार्षिकी/चिरस्थायी वार्षिकी भी कहा जाता है। इस वार्षिकी के अन्तर्गत किस्तों का भुगतान अनन्त काल तक निरन्तर किया जाता रहता है। उदाहरण के लिए किसी भी भू-सम्पत्ति पर लगाया जाने वाला वार्षिक प्रभाव/लगान आदि को अनन्त वार्षिकी के अन्तर्गत सम्मिलित करेंगे।
वार्षिकी का मिश्रधन
इसके अन्तर्गत विभिन्न समयावधि में भुगतान की गयी सभी किस्तों की धनराशि का मूलयोग तथा उन किस्तों पर चक्रवृद्धि ब्याज की दर से अर्जित ब्याज की राशि को सामूहिक रूप से जोड़ने पर प्राप्त राशि को वार्षिकी का मिश्रधन कहा जायेगा।अतः संक्षिप्त रूप में वार्षिकी का मिश्रधन = (विभिन्न किस्तों में देय धनराशि + उस अवधि में अर्जित चक्रवृद्धि ब्याज।
वार्षिकी का वर्तमान मूल्य
वार्षिकी का वर्तमान मूल्य वह कहलाता है सिके अन्तर्गत विभिन्न किस्तों के तहत भुगतान की गई राशि का सामूहिक योग को सम्मिलित करते हैं। इसे वार्षिकी के तत्काल धन अथवा वस्तु के नकद मूल्य से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत अर्जित ब्याज को सम्मिलित नहीं करते हैं
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