आजादी के बाद भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के लोकतंत्र को मजबूत
बनाने और शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए केंद्रीय स्तर पर जहाँ संसद की
व्यवस्था की वहीं राज्यों में विधानसभा के गठन का प्रस्ताव किया। इसके साथ ही लोकसभा
के संचालन और गरिमा बनाए रखने के लिये लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में विधानसभा
अध्यक्ष के पद का प्रावधान किया।
राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही और उसकी गतिविधियाँ के संचालन के लिए पूरी तरह जवाबदेह होता है। विधानसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज की उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला है।
सीधे-सरल शब्दों में कहीं तो विधायिका का काम कानून बनाना है कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है। इन तीनों को लोकतंत्र का आधार-स्तंभ माना जाता है।
राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही और उसकी गतिविधियाँ के संचालन के लिए पूरी तरह जवाबदेह होता है। विधानसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज की उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला है।
सीधे-सरल शब्दों में कहीं तो विधायिका का काम कानून बनाना है कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है। इन तीनों को लोकतंत्र का आधार-स्तंभ माना जाता है।
विधानसभा अध्यक्ष के कर्तव्य और अधिकार
राज्यों की विधायिका विधानसभा के लिये निर्वाचित जनप्रतिनिधियाँ से गठित होती है। इन जनप्रतिनिधियाँ को विधायक कहा जाता है।- विधानसभा की कार्यवाही को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का प्रावधान संविधान में है।
- विधानसभा का गठन होने के बाद उसके प्रथम सत्र में ही विधानसभा सदस्यों द्वारा विधानसभा अध्यक्ष चुना जाता है।
- अध्यक्ष के अलावा विधानसभा के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव की करते हैं जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसका कार्यभार संभालता है।
- सदन में अनुशासन बनाए रखना।
- सदन की कार्यवाही का सुचारु रूप से संचालन करना।
- सदस्यों को बोलने की अनुमति प्रदान करना।
- पक्ष और विपक्ष में समान मत आने पर निर्णायक मत प्रदान करना।