किसी भी प्रकार की गतिविधि, आय अथवा उत्पादन पर सरकार द्वारा वसूल की जाने वाली राशि को कर (Tax) कहते हैं। कर (Tax) दो प्रकार के होते हैं-
1. प्रत्यक्ष कर- इन करों को प्रत्यक्ष रूप से किसी आय अथवा सम्पत्ति के आधार पर वसूल किया जाता है। जैसे- आयकर, सम्पत्ति कर, निगम कर, उपहार कर आदि।
2. अप्रत्यक्ष कर- इन करों को वस्तुओं अथवा सेवाओं में मूल्य के आधार पर वसूला जाता है, जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क आदि।
कर (Tax) की परिभाषा
एडम स्मिथ के अनुसार, “कर नागरिक द्वारा राज्य की सहायता के लिए दिया जाने वाला अंशदान है।”फिन्डले शिराज़ के अनुसार, “कर सिद्धान्त प्राधिकरण को दिया गया अनिवार्य योगदान है। जिससे सरकार के वे सामान्य व्यय पूरे होते हैं जो विषेश लाभों के प्रसंग के बिना जन कल्याण के लिए किए जाते हैं।”
इस प्रकार, कर एक ऐसा भुगतान है जो आवश्यक रुप से सरकार को उसके बनाए गए कानूनों के अनुसार दिया जाता है। इसके बदले में किसी सेवा प्राप्ति की आशा नहीं की जा सकती है।
कर (Tax) के प्रकार
सरकार द्वारा कई प्रकार के करों को लगाया जाता है। इनके वर्गीकरण को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है:1- प्रत्यक्ष कर: प्रत्यक्ष कर ऐसे कर हैं जो विधिगत रूप से जिस पर लगाए जाते हैं उसे ही इसका भुगतान करना पड़ता है। जैसे: आय कर।
2- परोक्ष कर: परोक्ष कर या अप्रत्यक्ष कर एक व्यक्ति पर लगाए जाते हैं जबकि ये पूर्णत: या आंशिक रूप से दूसरे व्यक्ति द्वारा दिए जाते हैं। जैसे - बिक्री कर, सीमा शुल्क परोक्ष कर हैं क्योंकि इनका भार व्यापारी से उपभोक्ता को स्थानांतरिक होता है।
3- अनुपातिक कर: आनुपातिक कर में कर की मात्रा समान रहती है। सभी आयों पर एक दर से कर लगाया जाता है। इसका करदाता की आय से कोई संबंध नहीं होता। इसे एक रेखाचित्र द्वारा दिखाया जा सकता है:
4- प्रगतिशील कर: प्रगतिशील कर में व्यक्ति की आय में परिवर्तन के साथ परिवर्तन होता है। आय की दर जितनी अधिक होती है। कर की दर भी उतनी ही अधिक होती है। भारत में प्रगतिशील कराधान को ही अपनाया गया है।
5- प्रतिगामी कर:प्रतिगामी कराधान में करदाता की आय जितनी अधिक होगी कर के रूप में वह उतना ही कम अनुपात सरकार को देगा। यह प्रगतिशील करों के विपरीत है।
6- अधोगामी कर: अधोगामी कर प्रगतिशील करों और प्रतिगामी करों का मिश्रण है। इसमें एक निश्चित सीमा तक कराधान की दर में वृद्धि होती है और उसके बाद आय में परिवर्तन के साथ कर की दर स्थिर रहती है।
7- एक कर: इसमें कर केवल एक मद अथवा शीर्ष पर लगाया जाता है। इसमें एक वस्तु पर कर लगता है जैसे - भूमि कर। यह कर प्रत्येक माह या प्रत्येक वर्ष एकत्रित किए जाते हैं।
8 - बहु कर: इसमें अनेक वस्तुओं पर एक साथ कर लगाया जाता है। जैसे:- उत्पादन कर, बिक्री कर इत्यादि।
9- विशिष्ट कर: जो कर वस्तुओं के विशिष्ट गुणों पर आधारित हो उन्हें विशिष्ट कर कहा जाता है। ये कर वस्तु के भार, आकार और मात्रा आदि के अनुसार लगाए जाते हैं। जैसे:- कपड़े पर शुल्क उसकी लंबाई के आधार पर लगाया जाता है।
10- मूल्यानुसार कर: यह कर वस्तु पर उसके मूल्य के अनुसार लगाए जाते हैं। इस प्रकार के कर योग्य वस्तु के मूल्यांकन के पश्चात लगाए जाते हैं। जैसे निर्यात अथवा आयात शुल्क 5 पैसे प्रति रूपए या वस्तु के मूल्य के 5 प्रतिषत की दर पर लगाया जाता है।
11- दोहरे कर: यदि एक व्यक्ति एक ही सेवा के लिए दो बार कर देता है तो उसे दोहरा कर कहा जाता है। उदाहरण के रूप में, यदि भारत का व्यक्ति विदेश में आय प्राप्त करता है तो उसे एक ही आय पर दो बार कर देना पड़ेगा एक तो विदेश में और फिर एक भारत में भी।
करों के प्रभाव
कराधान के प्रभावों की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है:1- कराधान के उत्पादन पर प्रभाव: कराधान से कार्य करने, बचत करने तथा निवेश की क्षमता और कार्य करने, बचत करने तथा निवेष करने की इच्छा प्रभावित होती है। कर इन्हें कम करता है। परन्तु जब सरकार कराधान द्वारा एकत्रित धन खर्च करती है तो उससे देष के नागरिकों को सुविधाएं एवं सुगमताएं प्राप्त होती है। इसलिए कार्य करने, बचत करने और निवेष करने की योग्यता पर विचार करते समय सार्वजनिक व्यय के प्रभावों को भी ध्यान में रखा जाए।
2- कराधान के वितरण पर प्रभाव: आधुनिक कल्याणकारी सरकार का मुख्य उद्देश्य है आय और सम्पति की असमनताओं को कम करना। समान वितरण की प्राप्ति के लिए सार्वजनिक व्यय इस प्रकार किया जाये जिससे निर्धन लोगों की आय बढ़े। करारोपन का प्रबन्ध इस प्रकार किया जाये जिससे समृद्ध लोगों की आय और सम्पति में वृद्धि पर रोक लगे।
3- मुद्रा स्फीति पर करों का प्रभाव: मुद्रा स्फीति के समयपर कराधान का लक्ष्य होता है उपभोक्ता की क्रय शक्ति को कम करना। इस दिषा में आय और व्यय पर करारोपण, सार्वजनिक व्यय को नियन्त्रित करने में उपयुक्त होता है। आयातषुल्कों में कमी और वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि भी अर्थव्यवस्था पर स्फीतिकारी दबावों को कम करती है।
4- करारोपण का मन्दी के समय में प्रभाव: मन्दी की स्थिति से निपटने के लिए करारोपण में कमी आवष्यक है। विषेश रूप से उन करो को घटाना आवष्यक है जो निम्न आय वर्गों पर पड़ते है। वस्तुकरों में कमी से उपभोग की प्रवृति में बढ़ोतरी होगी और बाजार मांग बढ़ेगी। ऐसे समय में प्राय: घाटे वाले बजटों को प्राथमिकता दी जाती है।
5- करारोपण का उपभोग पर प्रभाव: उपभोग की मात्रा तथा प्रकृति पर नियन्त्रण कुछ वस्तुओं की बिक्री पर भारी कर लगाकर किया जा सकता है। राष्ट्रीय सीमाओं से पार से आने वाले उत्पादो का नियमन आयात-निर्यात शु ल्क लगा कर किया जा सकता है।
इस प्रकार कर सरकार की आय का मुख्य स्रोत है। इसके कुछ सिद्धान्त और प्रभाव है। इसका प्रयोग इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि आर्थिक विकास और कल्याण में अधिकतम वृद्धि हो सके।
करारोपण के उद्देश्य
कर लोगों द्वारा किया जाने वाला अनिवार्य भुगतान है। यदि कोई व्यक्ति कर का भुगतान नहीं करता है, तो उसे कानून द्वारा दंडित किया जा सकता है। आय, संपत्ति तथा किसी वस्तु की खरीद के समय कर लगाया जाता है। कर सरकार की आय का मुख्य स्रोत है।करारोपण के मुख्य उद्देश्यों को निम्न प्रकार से रेखांकित किया जा सकता है:
- आय प्राप्त करना
- नियमन तथा नियन्त्रण करना
- साधनों का आबंटन
- असमानता को कम करना
- आर्थिक विकास
- कीमत वृद्धि पर नियन्त्रण