मुद्रास्फीति के कौन से कारण है तथा इसको कैसे नियंत्रित कर सकते है?

मुद्रा स्फीति का अर्थ यह होता है कि जब किसी अर्थव्यवस्था में सामान्य कीमत स्तर लगातार बढ़े और मुद्रा का मूल्य कम हो जाए। अगर अर्थव्यवस्था में कीमत कुछ समय के लिए बढ़ती है और फिर कम हो जाती है और फिर दुबारा बढ़ती है तो हम इसे मुद्रास्फीति नहीं कहेगें। मुद्रास्फीति में तो सामान्य कीमत स्तर लगातार बढ़ना चाहिए। एक निश्चित आय वर्ग वाले लोगों पर मुद्रास्फीति का बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसकी आय निश्चित होती है और जब कीमतें बढ़ती है तो उनकी क्रय शक्ति कम हो जाती है इस प्रकार एक विकासशील अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का बहुत भंयकर प्रभाव पड़ता है।

मुद्रास्फीति की परिभाषा

सैम्युअलसन के अनुसार, “मुद्रास्फीति का तात्पर्य उस समय से होता है जिस समय में कीमतें बढ़ रही होती है।

शेपीरो के शब्दों में, “मुद्रा स्फीति से हमारा अभिप्राय सामान्य कीमत स्तर में होने वाली लगातार और अत्याधिक वृद्धि से है।”

इस प्रकार कहा जा सकता है कि कीमत स्तर में होने वाली निरन्तर वृद्धि को मुद्रास्फीति कहा जाता है।

मुद्रास्फीति के सिद्धान्त

मुद्रास्फीति के निम्नलिखित सिद्धान्त है:
  1. मांग प्रेरित मुद्रा स्फीति
  2. लागत प्रेरित या लागत वृद्धि मुद्रास्फीति का सिद्धान्त
इन दोनों सिद्धान्तों की विस्तार से व्याख्या निम्न प्रकार की जा सकती है:

1. मांग प्रेरित मुद्रास्फीति का सिद्धान्त

मांग प्रेरित मुद्रा स्फीति उस समय उत्पन्न होती है जब किसी अर्थव्यवस्था में कुल मांग का स्तर कुल पूर्ति के स्तर से अधिक हो जाता है और सामान्य कीमत स्तर में वृद्धि होती है। पूर्ण रोजगार के स्तर से पहले जब कुल मांग में वृद्धि होती है तो उसके कारण कुल उत्पादन भी बढ़ता है। परन्तु पूर्ण रोजगार का स्तर प्राप्त करने के बाद सामान्य कीमत स्तर में ही वृद्धि होती है उत्पादन के स्तर में कोर्इ वृद्धि नही होती है। इस प्रकार मांग प्रेरित मुद्रास्फीति के बारे में कहा जा सकता है कि जो मुद्रास्फीति मांग के बढ़ने के कारण पैदा होती है।

👉 मांग प्रेरित मुद्रास्फीति के कारण

मांग प्रेरित मुद्रा स्फीति को निम्नलिखित सिद्धान्तों के द्वारा समझा जा सकता है।

1. मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के अनुसार पूर्ण रोजगार के स्तर के बाद मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करने से केवल कीमत स्तर में वृद्धि होती है। इस प्रकार मांग प्रेरित मुद्रा स्फीति का कारण मुद्रा के परिमाण में वृद्धि होना हैं।

2. केन्ज के सिद्धान्त के अनुसार: केन्ज के सिद्धान्त में हमने पढ़ा है कि जब कुल मांग (AD) में वृद्धि कुल पूर्ति (AS) से ज्यादा हो जाती है तो कीमत स्तर में वृद्धि होती है। केन्ज के अनुसार कुल मांग में हम उपभोग और निवेश दोनों को शामिल करते है। जब हमारे उपभोग और निवेश में वृद्धि होती है तो कीमत स्तर में वृद्धि होती है।

3. मुद्रा परिमाण का आधुनिक सिद्धान्त: मुद्रा परिमाण के आधुनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन मिल्टन फ्रिडमैन ने किया था। उनके अनुसार मांग प्रेरित मुद्रा स्फीति का मुख्य कारण मुद्रा की पूर्ति में जरूरत से ज्यादा वृद्धि होना है जिसके कारण कुल मांग बढ़ती है और फिर कीमत स्तर में वृद्धि होती है।

2. लागत प्रेरित या लागत वृद्धि मुद्रास्फीति का सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के अनुसार मुद्रास्फीति में वृद्धि का कारण लागतों में वृद्धि होना है। इस सिद्धान्त के अनुसार जब उत्पादन की लागतों में वृद्धि होती है उसके कारण कीमत स्तर बढ़ता है तो उसे लागत वृद्धि मुद्रास्फीति कहते है। इस प्रकार की मुद्रास्फीति में एक तरफ तो कीमत स्तर बढ़ता है तथा दूसरी तरफ उत्पादन और रोजगार का स्तर कम हो जाता है।

👉 लागत प्रेरित मुद्रास्फीति के कारण 

लागत वृद्धि मुद्रास्फीति के निम्नलिखित कारण हो सकते है:

1. मजदूरी प्रेरक मुद्रास्फीति:जब श्रम संगठन मजदूरी में वृद्धि करवाने में सफल हो जाते है तो एक और उत्पादन की लागत में वृद्धि होती है तथा दूसरी ओैर कीमत स्तर बढ़ जाता है। इस प्रकार मजदूरी में वृद्धि होने से लागत बढ़ती है तथा साथ ही साथ कीमत स्तर बढ़ता है।

2.लाभ प्रेरक मुद्रास्फीति: एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्में कम उत्पादन करती है तथा लाभ कमाने के उद्देश्य से अपने उत्पादन को ऊंची कीमतों पर बेचती हैं। इस प्रकार जब फर्मों का उद्देश्य लाभ कमाना ही होता है तो कीमत स्तर बढ़ जाता है।

3. कच्चे माल की लागत में वृद्धि: जब प्रमुख कच्चे माल की लागत में वृद्धि होती है तो कच्चे माल से जिस भी वस्तु का उत्पादन होगा उसकी कीमतों में भी वृद्धि होगी। इस प्रकार कच्चा माल जब महँगा हो जाता है उसके कारण उत्पादन कीलागत में वृद्धि होगी और कीमत स्तर बढ़ जाएगा।

मुद्रास्फीति के प्रभाव

मुद्रास्फीति के किसी अर्थव्यवस्था के आर्थिक क्षेत्र तथा अनार्थिक क्षेत्र पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते है।

1. मुद्रास्फीति का निवेशकर्ता पर प्रभाव

निवेशकर्ता दो प्रकार के होते है। पहले प्रकार के निवेशकर्ता वे होते है जो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते है। सरकारी प्रतिभूतियों से निश्चित आय प्राप्त होती है तथा दूसरे निवेशकर्ता वे होते है जो संयुक्त पूंजी कम्पनियों के हिस्से खरीदते है। इनकी आय मुद्रास्फीति के होने पर बढ़ती है। मुद्रास्फीति से निवेशकर्ता के पहले वर्ग को नुकसान तथा दूसरे वर्ग को फायदा होगा।

2. निश्चित आय के वर्ग पर प्रभाव

निश्चित आय के वर्ग में वे सब लोग आते है जिनकी आय निश्चित होती है जैसे श्रमिक, अध्यापक, बैंक कर्मचारी आदि। मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें बढ़ती है जिसका प्रभाव निश्चित आय वर्ग पर पड़ता है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण निश्चित आय वर्ग नुकसान उठाता है।

3. मुद्रास्फीति का कृषकों पर प्रभाव

मुद्रास्फीति का कृषक वर्ग पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि कृषक वर्ग उत्पादन करता है तथा मुद्रास्फीति के दौरान उत्पादन की कीमतें बढ़ती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के दौरान कृषक वर्ग को लाभ मिलता है।

4. मुद्रास्फीति का ऋणी और ऋणदाता पर प्रभाव

मुद्रास्फीति का ऋणदाता पर प्रतिकूल तथा ऋणी पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। क्योंकि जब ऋणदाता अपने रुपये किसी को उधार देता है तो मुद्रास्फीति होने के कारण उसके रुपये का मूल्य कम हो जायेगा। इस प्रकार ऋणदाता को मुद्रास्फीति से हानि तथा ऋणी को लाभ होता है।

5. मुद्रास्फीति का बचत पर प्रभाव

मुद्रास्फीति का बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि मुद्रास्फीति होने के कारण वस्तुओं पर किये जाने वाले व्यय में वृृद्धि होती है। इससे बचत की सम्भावना कम हो जायेगी। दूसरी और मुद्रास्फीति से मुद्रा के मूल्य में कमी होगी और लोग बचत करना ही नहीं चाहेगें।

6. मुद्रास्फीति का भुगतान संतुलन पर प्रभाव

मुद्रास्फीति के समय वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है। इसके कारण हमारे निर्यात मँहगे हो जायेगें तथा आयात सस्ते हो जायेगें। नियार्तों में कमी होगी तथा आयतों में वृद्धि होगी जिसके कारण भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल हो जायेगा।

7. मुद्रास्फीति कासार्वजनिक ऋणों पर प्रभाव

मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि हो जाती है क्योंकि जब कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो सरकार को सार्वजनिक योजनाओं पर अपने व्यय को बढ़ाना पड़ता है इस व्यय की पूर्ति के लिए सरकार जनता से ऋण लेती है। अत: मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि होती है।

8. मुद्रास्फीति का करों पर प्रभाव

मुद्रास्फीति के कारण सरकार के सार्वजनिक व्यय में बहुत वृद्धि होती है। सरकार अपने व्यय की पूर्ति के लिए नये-नये कर लगाती है तथा पुराने करों में वृद्धि करती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण करों के भार में वृद्धि होती हे।

9. मुद्रास्फीति का नैतिक प्रभाव

मुद्रास्फीति के कारण व्यापारी वर्ग लालच में अंधा हो जाता है और जमाखोरी, मुनाफाखोरी तथा मिलावट आदि का प्रयोग उत्पादन को बेचने में करते है। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते है तथा व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का पतन होता है।

10. मुद्रास्फीति का उत्पादकों पर प्रभाव

मुद्रास्फीति के कारण उत्पादक तथा उद्यमी वर्ग को लाभ प्राप्त होता है क्योंकि उत्पादक जिन वस्तुओं का उत्पादन करते है उनकी कीमते बढ़ रही होता है तथा मजदूरी में भी वृद्धि कीमतों की तुलना में कम होती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति से उद्यमी तथा उत्पादकों का फायदा होता है।

मुद्रास्फीति के नियंत्रण के उपाय

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपना सकते है:

1.  मुद्रास्फीति नियंत्रण के मौद्रिक उपाय

मौद्रिक नीति के द्वारा भी हम मुद्रा की पूर्ति को नियमित कर मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित मौद्रिक उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है।

1. मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण - मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करके मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकता है और मुद्रा की मात्रा को केन्द्रीय बैक द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रकार जब केन्द्रीय बैंक मुद्रा की मात्रा पर कड़ा नियंत्रण लागू करे तो मुद्रा की मात्रा नियंत्रित हो जायेगी।

2. साख नियंत्रण - बढ़ती हुर्इ कीमतों पर काबू पाने के लिए केन्द्रीय बैंक साख को नियंत्रित कर सकती है। साख को नियत्रित करने के लिए केन्द्रीय बैंक परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों प्रकार के उपायों को प्रयोग में ला सकती है। इन उपायों के अन्तर्गत बैंक दर में वृद्धि, रेपो दर तथा रिवर्स रेपो दर में वृद्धि, न्यूनतम नकद कोष में वृद्धि प्रतिभूतियों को खुले बाजार में बेचना, साख की राषनिंग तथा सीमान्त आवष्यकता में वृद्धि कर सकता है।

3. विमुद्रीकरण - अगर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कर पाना संभव न हो तो सरकार विमुद्रीकरण का भी सहारा ले सकती हैं। विमुद्रीकरण के अन्तर्गत सरकार पुरानी करेन्सी की जगह नर्इ करेन्सी लेकर आती है। जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाया जा सकता है।

2.  मुद्रास्फीति नियंत्रण के राजकोषीय उपाय

राजकोषीय उपायों में हम निम्नलिखित उपायों को शामिल कर सकते है:

1. सार्वजनिक व्ययों में कमी - सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि से लोगों की क्रयषक्ति में वृद्धि होती है। क्रयशक्ति में वृद्धि होने से मांग में वृद्धि होगी तथा मांग में वृद्धि होने से कीमत स्तर में वृद्धि होगी। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय में कमी करके हम मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते है।

2. सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि - कीमतों में वृद्धि मांग में वृद्धि होने के कारण होती है जिससे सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि हो जाती है। मांग को कम करने के लिए सरकार निजी व्यक्तियों से ऋण ले सकती है। जब निजी क्षेत्र से ऋण लिया जायेगा तो निजी क्षेत्र के व्यय में कमी हो जायेगी। इस प्रकार सार्वजनिक व्ययों में वृद्धि करके भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकते है।

3. करों में वृद्धि - मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती है। इस व्यय की पूर्ति के लिए सरकार नये-नये कर लगाती है तथा पुराने करों की दरों में वृद्धि करती है। करों की दरों में वृद्धि का उत्पादन पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।

4. घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी - घाटे की वित व्यवस्था उस समय अपनार्इ जाती है जब सरकार की आय उसके द्वारा किए गए व्यय से कम रह जाती है घाटे की वित व्यवस्था में सरकार नर्इ मुद्रा को जारी करती है और अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति को बढ़ाती है। अत: मुद्रास्फीति को नियत्रित करने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था को कम करना होगा।

3. अन्य उपाय

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक तथा राजकोषीय उपायों के अतिरिक्त कुछ अन्य उपाय भी है।

1. उत्पादन में वृद्धि -  उत्पादन में वृद्धि करके भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि मुद्रास्फीति उस समय पैदा होती है जब कुल मांग कुल पूर्ति से ज्यादा हो जाता है। इस प्रकार हम कुल पूर्ति या उत्पादन को बढ़ाकर मुद्रास्फीति को नियात्रित कर सकते हैं।

2. बचत को प्रोत्साहन देकर - बचत को बढ़ाकर भी मुद्रास्फीति को नियत्रित कर सकते है। सरकार द्वारा बचत को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएं चलानी चाहिए। जब बचत में वृद्धि होती है तो निजी व्ययों में कमी होगी तथा मांग स्वयं ही कम हो जायेगी तथा कीमत स्तर नियंत्रण में आ जायेगा।

3. कीमत नियंत्रण तथा राशन व्यवस्था - राशन व्यवस्था मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण व्यवस्था है। राषनिंग व्यवस्था में कीमत स्तर भी ज्यादा नहीं बढ़ता तथा सब लोगों को अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुएं भी मिल जाती है।

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