आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषताएं

राजनीति शास्त्र की नवीन परिभाषाओं के संदर्भ में इसका अध्ययन निम्न रूपों में किया जाता है - 

  1. राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है। 
  2. राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है। 
  3. राजनीति शास्त्र राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है। 
  4. राजनीति शास्त्र निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है। 

आधुनिक राजनीति विज्ञान के क्षेत्र

आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्नलिखित विषयवस्तुओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए- 
  1. मानव के राजनैतिक व्यवहार का अध्ययन, 
  2. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन, 
  3. सार्वजनिक समस्याओं के संदर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन।

आधुनिक राजनीति विज्ञान की विशेषताएं

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात राजनीति विज्ञान और अन्य समाज विज्ञानों के क्षेत्र में जो विकास हुए उसकी मुख्य प्रवृत्तियों का उल्लेख निम्न रूपों में किया जा सकता है।

(1) मुक्त अध्ययन - राजनीतिशास्त्री अब परम्परागत सीमायें छोड़कर अध्ययन करते हैं। समस्त राजनीतिक तथा औपचारिक घटनायें अब राजनीति शास्त्र का अध्ययन विषय बन गई हैं चाहे वे समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र या धर्म के विषय में हों, अथवा व्यक्ति, परिवार राष्ट्र और विश्व से सम्बन्धित हों। यहाँ तक कि वैयक्तिक और सामूहिक स्तर पर बाल्यावस्था और युवावस्था आदि में विकसित राजनीतिेक प्रवृत्तियों को भी सर्वेक्षण और शोध का विषय बनाया जाता है। शोधकर्ताओं की यह भावना रहती है कि वास्तविक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाये और उन्हीं को वास्तविकता प्रकट करने वाली अवधारणाओं का आधार बनाया जाये।

(2) वैज्ञानिकता - आधुनिक राजनीतिशास्त्री अपने अध्ययन को अधिक वैज्ञानिक बनाना चाहते हैं वे राजनीतिक घटनाओं और तथ्यों की वैज्ञानिकता की कसौटी पर जाँच करते हैं। प्राकृतिक विज्ञानों तथा अन्य सामाजिक विज्ञानों से अध्ययन की नई-नई तकनीकों को लेकर वे उनका राजनीति विज्ञान में प्रयोग करते हैं।

(3) मूल्य मुक्तता - राजनीतिक विश्लेषण में मानवीय मूल्यों जैसे नैतिकता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व आदि को कोई स्थान नहीं दिया जाता क्योंकि इसका प्रयास एक वैधानिक एवं सटीक विषय का निर्माण करना है। यह उन्हीं घटनाओं और तथ्यों को अपने अध्ययन का विषय बनाता है जिन्हें या तो देखा गया है या भविष्य में देखा जा सकता है।

(4) यथार्थवादी अध्ययन -  राजनीति विज्ञान के परम्परागत अध्ययन प्रायः ऐतिहासिक,विधिगत तथा संस्थागत संरचना तक ही सीमित रहे और ये आदर्शात्मक, उपदेशात्मक स्थिति के साथ जुड़े हुए और बहुत अधिक सीमा तक केवल सैद्धान्तिक समस्याओं में ही उलझे हुए थे। आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों ने यह दृढ़ विश्वास व्यक्त किया कि राजनीतिक अध्ययनों का व्यावहारिक राजनीति से सीधा संबंध होना चाहिए। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही राजनीति विज्ञान विषय के कुछ विद्वानों ने इस सत्य को समझ लिया कि आदर्श की तुलना में यथार्थ का महत्व अधिक है। 

अब राजनीति विज्ञान के विद्वानों ने इस बात की खोज प्रारम्भ कर दी कि समाज में शक्ति के वास्तविक स्रोत और केन्द्र कहाँ स्थित है। शासक वर्ग अपनी शक्तियों का प्रयोग किस रूप में कर रहा है ओर शासित वर्ग का राजनीतिक व्यवहार कैसा है ? परम्परावादी विधिगत, संस्थागत संरचना के अध्ययन का स्थान अब राजनीतिक प्रक्रियाओं को समझने की प्रवृत्तियों ने ले लिया और अब राजनीतिक दल, दबाव, समूह, संचार के साधन तथा मतदान व्यवहार आदि से संबंधित व्यापक अध्ययन किये जाने लगे हैं।

(5) व्यवहारवादी दृष्टिकोण - आधुनिक राजनीतिक दृष्टिकोण व्यवहारवादी दृष्टिकोण अपनाने पर बल देता है। परम्परागत राजनीति शास्त्र राजनीति से दूर रहा। व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान को दर्शन, इतिहास या कानून के रूप में नहीं बल्कि राजनीति विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न है। व्यवहारवाद की सबसे बड़ी विशेषता है - सिद्धान्त का प्रयोग। इसमें तथ्यों की खोज और उनकी व्याख्या एक सिद्धान्त के अंतर्गत की जाती है।

(6) मूल्य निरपेक्ष और वैज्ञानिक पद्धति -  राजनीति विज्ञान में व्यवहारवादी क्रान्ति द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् आयी। विभिन्न समाज विज्ञानों तथा प्राकृतिक विज्ञानों से राजनीति विज्ञान ने स्वयं को विज्ञान बनाने के लिए अनेक शोध प्रवृत्तियों को ग्रहण कर लिया। नवीन पद्धतियों में वैज्ञानिक पद्धति को प्रमुख स्थान दिया गया है उसी के साथ वैज्ञानिक मूल्य निरपेक्षवाद जुड़ा हुआ है। जिसका मूल अर्थ है कि शोधकर्ता अपने अनुसंधान में स्वयं के मूल्यों एवं धारणाओं को पृथक रखता है और उनका अपने अध्ययन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने देता। उसके आचरण में बौद्धिक निष्पक्षता एवं सत्यनिष्ठता पाई जाती है।

(7) शोध एवं सिद्धान्त में घनिष्ठ संबंध -  वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग द्वारा अब राज वैज्ञानिक सामान्यीकृत व्याख्याओं एवं सिद्धान्तों के निर्माण में लगे रहते हैं। ये सिद्धान्त निर्माण कठोर शोध प्रक्रियाओं पर आधारित हैं। अतः सिद्धान्त निर्माण की प्रक्रिया अब शोधोन्मुखी है। शोध और सिद्धान्त एक दूसरे के बिना निरर्थक हंै। आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों का एक मात्र लक्ष्य राजनीति के सैद्धान्तिक प्रतिमानों को विकसित करना है। इसी आधार पर ये राजनीतिक घटनाओं एवं साधनों के संबंध में खोज करते हैं और उनका विश्लेषण करते हैं।

(8) अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण - आधुनिक राजनीति विज्ञान में अन्तर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण भी अपनाया गया। लेखकों ने ऐसे अधिक से अधिक साधनों का प्रयोग किया है, जिन्हें उन्होंने समाज विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, मानव विकास का विज्ञान जैसे विज्ञानों से उधार लिया है। परिणामस्वरूप राजनीति विज्ञान अब राजनीतिक मनोविज्ञान एवं राजनीतिक समाज विज्ञान जैसा प्रतीत होता है। 

राजनीतिक आधुनिकीकरण, राजनीतिक समाजीकरण, राजनीतिक संस्कृतिकरण तथा राजनीतिक विकास और इसी जैसे अन्य विषयों के अध्ययन से यह पता चलता है कि अब राजनीति विज्ञान में सरकार और अन्य राजनीतिक संरचनाओं के व्यवहार के अध्ययन पर समाज वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण लागू हो गया है। 

एस.एम. लिप्सेट के अनुसार, ‘‘समकालीन राजनीतिक सिद्धान्त एक राजनीतिक प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक मात्रा में एक राजनीतिक समाज विज्ञान व मनोविज्ञान और मानकीय राजनीतिक सिद्धान्त है।’’

(9) एक मौलिक समाज विज्ञान के रूप में उदय - आधुनिक राजनीति विज्ञान अपने आपको समाज विज्ञानों की एक कड़ी के रूप में विकसित करना चाहता है ताकि वह विभिन्न विषयों को महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दे सके। राजनीतिक वैज्ञानिकों में अरस्तू, न्यूटन तथा डार्विन आदि के रूप में कार्य करने की भावना पाई जाती है। इसके लिए वे विशिष्ट क्षेत्रों की विशेषज्ञता विकसित करना चाहते हैं। वे विषय स्वायत्तता लाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त तथा व्यवस्था उपागम को ग्रहण किया है। नियंत्रण और नियमन से संबंधित होने के कारण राजनीति की मौलिकता स्वयं सिद्ध है।

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