आगमन विधि किसे कहते हैं ?

आगमन विधि अनुमान पर निर्भर करती है। इसका अर्थ है सामान्य की ओर पहुंचना, यह अनुमान लगाते हुए कि यदि कोई चीज एक स्थिति में सही हैं तो ऐसी हर स्थिति में सही होगी। इस विधि में हम विशेष सामान्य की ओर, स्थूल से सूक्ष्म और उदाहरण से नियम की ओर जाते है।

इस प्रकार आगमन विधि का प्रयोग जब शिक्षक करता है तो वह छात्रों को नियमों, सिद्धांतों तथा परिभाषाओं आदि को पहले से नहीं बताता है बल्कि उदाहरण और तथ्यों के आधार पर आगे बढ़ता है। इस विधि में मुख्य रूप से तीन सूत्रों का प्रयोग किया जाता है:-

  1. विशिष्ट से सामान्य की ओर 
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर 
  3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर 

स्थूल वस्तुओं और उदाहरणों की सहायता लेते हुए हम सामान्य परिणाम पर पहुंचते हैं जेसे विद्यार्थियों को कई चतुर्भुज बनाने के लिए कहा जाए (जैसे - वर्ग, आयत, समकोण आदि) और उन्हें उन सारे चतुर्भुजों के कोणों का योग निकालने को कहा जाए। वो पाएंगे कि सारे ही चतुर्भुजों के कोणों का योग चार समकोण (3600) के बराबर होता है।

विद्धान लेइन के अनुसार ‘‘जब हम कभी छात्रों के सम्मुख बहुत से तथ्य, उदाहरण आदि प्रस्तुत करते है और फिर उनसे स्वयं निष्कर्ष निकालने को कहते है तो हम शिक्षण की आगमन विधि को प्रयोग करते हैं।’’

आगमन विधि के गुण

  1. पाठ का परिचय देने के लिए यह विधि अति उपयोगी है।
  2. यह वैज्ञानिक विधि है जिसमें विद्यार्थी एक निष्कर्ष पर काफी जानने और खोजने के बाद पहुंचते है।
  3. यह विधि करके सीखने पर आधारित है अतः विद्यार्थी इस विधि में रुचि लेता है।
  4. यह विधि विद्यार्थियों में सोचने, समझने और तर्क शक्ति का विकास करती हैं अतः यह रट्टा लगाने के लिए उत्साहित नहीं करती।
  5. इसमें विद्यार्थियों में स्वअध्ययन आदत का विकास होता है।
  6. छोटी कक्षाओं के लिए यह विधि अधिक उपयोगी है। क्योंकि इसमें बच्चे सीधे अनुभव से सीखते है।
  7. इस विधि से नियम निर्माण प्रक्रिया आसानी से की जा सकती है।

आगमन विधि के दोष

  1. यह विधि बड़ी कक्षाओं में उपयोगी नहीं हो सकती क्योंकि अधिक विस्तार विद्यार्थी में रूचि कम कर देता हैं और अधिगम बोझिल हो सकता है।
  2. आगमनिक तर्क द्वारा पूरी तरह से निष्कर्ष नहीं निकाल सकते क्योंकि यह विधि केवल संभावना स्थापित करती है।
  3. क्योंकि बड़ी कक्षाओं में सूक्ष्म विचारों पर चर्चा की जाती है न कि स्थूल विचारो पर, अतः बड़ी कक्षाओं के लिए यह विधि इतनी प्रभावशाली एवं उपयोगी नहीं जितनी छोटी कक्षाओं के लिए।
  4. यह अध्यापकों और विद्यार्थियों से अधिक समय की मांग करती है।

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