अनुकरणीय शिक्षण की विशेषताएं

अनुकरणीय शिक्षण विधि का विकास संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलम्बिया विश्व विद्यालय में हुआ । कुक शैंक ने शिक्षक प्रशिक्षण प्रणाली के लिए इसका विकास किया। इसका प्रयोग छात्राध्यापकों के शिक्षण कौशल के प्रशिक्षण के लिए किया गया । कक्षा में शिक्षण कराने के पूर्व अनुकरणीय शिक्षक का अभ्यास कराया जाता है । इसमें छात्राध्यापक शिक्षक एवं छात्र दोनों की भूमिका निभाते हैं । इसमें एक छात्राध्यापक शिक्षक की भूमिका निभाता है और अन्य छात्राध्यापक विद्यार्थियों की भूमिका अदा करते हैं इसलिए इस शिक्षण प्रणाली को नाटकीय अथवा भूमिका अदा करने वाली प्रविधि भी माना जाता है । इसमें शिक्षण कार्य 10 से 15 मिनिट तक होता है। शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु ही अनुकरण विधि को सर्वमान्यता प्रदान की गई है, जिससे छात्र अपने शिक्षक का अनुकरण करते हुए परम्पराओं का ज्ञान, सामाजिक ज्ञान, व्यवहारिक ज्ञान, मानव मूल्यों का ज्ञान, धर्म निरपेक्षता का ज्ञान, राष्ट्रीय एकता का ज्ञान, मानव मूल्यों के विकास का ज्ञान, अपने शिक्षक का अनुकरण कर ही सीखता है।

1. Adam अनुसार, अनुकरण विधि छात्र के सामाजिक और व्यवहारिक स्तर को प्रोत्साहितकरती है।

2. Robert Fild के अनुसार, छात्र की सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, शैक्षिक एवं दार्शनिक शिक्षा में अनुकरण विधि बहुत महत्वपूर्ण हैं।

अनुकरणीय शिक्षण विधि के सोपान

इसके विभिन्न सोपान निम्न लिखित हैं-

1. प्रथम सोपान- इसमें शिक्षक का कार्यक्रम से छात्राध्यापकों को सौंपा जाता है और कुछ छात्रों को निरीक्षक का कार्य सौंपा जाता है तथा शेष छात्र की भूमिका अदा करते हैं ।

2. द्वितीय सोपान- इसमें जिस शिक्षण कौशल का अभ्यास कराना है, उस शिक्षण कौशल का निर्धारण किया जाता है।

3. तृतीय सोपान- शिक्षण का आरम्भ तथा समापन करने के लिए कार्यक्रम की रूपरेखा निश्चित की जाती है ।

4. चतुर्थ सोपान- शिक्षक व्यवहार की क्रियाओं को मापने के लिए विधियों का निर्धारण किया जाता है ।

5. पंचम सोपान- अनुकरणीय शिक्षण का अभ्यास कराया जाता है, एवं इसके बाद में पृष्ठ -पोषण किया जाता है।

6. षष्टम् सोपान- इसमें एक शिक्षण विधि के पूर्ण होने पर दूसरी शिक्षण विधि अथवा कौशल का अभ्यास करवाया जाता है ।

अनुकरणीय शिक्षण की विशेषताएं

अनुकरणीय शिक्षण की निम्नलिखित विशेषताएं है-

  1. यह शिक्षण प्रशिक्षण की महत्वपूर्ण एवं उपयोगी विधि है ।
  2. इस विधि के द्वारा छात्राध्यापक को स्वयं के शिक्षण कौशल को विकसित करने की क्षमता प्राप्त होती है ।
  3. इस प्रविधि को अनुसंधान में प्रयुक्त किया जा सकता है ।
  4. इससे छात्राध्यापकों का शिक्षण प्रभावशाली होता है ।
  5. कक्षा में जाने से पूर्व यह विधि छात्राध्यापकों को शिक्षण अभ्यास के अवसर प्रदान करती है ।
  6. इस विधि के द्वारा छात्राध्यापकों को पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है, जो शिक्षण में प्रभावी भूमिका अदा करता है ।

अनुकरणीय शिक्षण के उपयोग 

अनुकरणीय शिक्षण का उपयोग निम्नलिखित बातों के लिए किया जाता हैः-

  1. शिक्षण कौशलों की विभिन्न क्षमताओं का विकास किया जाता है ।
  2. छात्राध्यापकों में कक्षा शिक्षण के लिए सामान्य व्यवहार को विकसित किया जाता है।
  3. कक्षा शिक्षण को कम समय में प्रस्तुत करने में सहायक है ।
  4. तर्क पूर्ण ढंग से कथन करने तथा प्रदर्शन की क्षमताओं के विकास में सहायक है।
  5. क्रमबद्ध रूप में पाठ्यवस्तु को विकसित करने में सहायक होती है।

सन्दर्भ -

  1. Sharma, Rameshwarlal, and Verma Rampal Singh (2001), Teaching of social studies, Vinod Pustak Mandir, Agra-2
  2. Saxena, N.R. and Mishra B.K., Mohanty. The teaching of social studies, Surya Publication, Meerut

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