अर्ध सहभागी अवलोकन क्या है ?

सरल या अनियन्त्रित अवलोकन के तीसरे प्रकार को अर्ध सहभागी अवलोकन के नाम से जाना जाता है। समुदाय के अध्ययन में न तो पूर्णरूप से भाग लेना ही सम्भव है और न ही पूरी तरह से उससे अलग रहना ही सम्भव है इन दोनों माध्यमों से पूर्ण अध्ययन करने में कठिनाई होती है। इसके लिए तीसरा साधन यह है कि कुछ परिस्थितियों में समुदाय के जीवन में भाग लिया जाये और कुछ में भाग न लिया जाये। इस पद्धति को अर्ध-सहभागी अवलोकन के नाम से जाना जाता है। समाज इतना जटिल है कि उसका अध्ययन न तो हम उसमें भाग लेकर ही कर सकते हैं और न उससे पृथक होकर ही कर सकते है। इसलिए अर्ध-तटस्थ की स्थिति बनाकर ही समाज का अध्ययन किया जाये। इस प्रकार के अवलोकन के द्वारा हमें सहभागी और अर्ध-सहभागी दोनों प्रकार की प्रणालियों का लाभ प्राप्त होता है। गुडे एवं हाट ने लिख है कि, व्यक्ति को किसी एक (सहभागी अथवा असहभागी) रूप को पूर्णतया अपनाने की अपेक्षा इन दोनों कार्या की साथ-साथ पूर्ति करना ही अधिक सुगम होता है।

अर्ध सहभागी अवलोकन के लाभ

  1. इससे पहले अनियन्त्रित अवलोकन के तीन प्रकारों की व्यवस्था और इन प्रकारों के गुण और दोनों की समीक्षा की गई। यहाँ हम अनियन्त्रित अवलोकन से होने वाले प्रमुख लाभों की विवेचना करेंगे-समाज गतिशील है। इस गतिशीलता के कारण मानव व्यवहारों की गतिशीलता स्वाभाविक है। बदलते हुए व्यवहारों का अध्ययन अनियन्त्रित अवलोकन के माध्यम से ही सम्भव है।
  2. अनियन्त्रित अवलोकन से जो तथ्य प्राप्त होते हैं, उनमें वैषयिकता पाई जाती है।
  3. इसके माध्यम से अवलोकनकत्र्ता घटनाओं को उसके वास्तविक और प्राकृतिक स्वरूप में देखने का प्रयास करता है।
  4. इस पद्धति के द्वारा अनुसंधानकत्र्ता अध्ययन सामग्री को प्रभावित नहीं कर पाता है।
  5. चूँकि मानव व्यवहार नियन्त्रण से परे है, अतः उसका अध्ययन नियन्त्रित पद्धति के द्वारा ही हो पाता है।

अर्ध सहभागी अवलोकन की सीमाएँ

उपर्युक्त गुणों के होते हुए भी अनियन्त्रित अवलोकन पद्धति की अपनी सीमाएँ हैं। अनियन्त्रित अवलोकन के दोषों के बारे में प्रो. बर्नार्ड ने लिखा है कि, आँकड़े इतने वास्तविक एवं संजीव होते हैं और उनके बारे में हमारी भावनाएँ इतनी दृढ़ होती है कि कभी-कभी हम अपनी कल्पना-शक्ति को ही ज्ञान का विस्तार समझ लेने की गलती कर बैठते हैं। ये सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें अनुसंधानकर्ता पर नियन्त्रण न होने से वह मनमानी करता है, अध्ययन सामग्री में विश्वसनीयता का अभाव पाया जाता है।
  2. अनुसंधानकर्ता पर नियन्त्रण से परे रहता है, अतः वह अनावश्यक सामग्री को संग्रहित कर लेता है।
  3. अनुसंधानकर्ता में समस्या से सम्बन्धित ज्ञान के अभाव के कारण जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं, वे त्रुटिपूर्ण होते हैं।
  4. इसमें अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात की सम्भावना रहती है।

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