असहभागी अवलोकन की विशेषताएं या गुण

असहभागी अवलोकन में अनुसंधानकर्ता में भाग नहीं लेता है। वह समुदाय में उपस्थित तो रहता है, किन्तु समुदाय की क्रियाओं और व्यवहारों में हिस्सा नहीं बॅटाता है। समुदाय क्रियाओं में भाग न लेते हुए भी उसकी गहराई में जाने का प्रयास करता है। इस प्रकार वह समुदाय का निष्पक्ष और स्वतन्त्र अध्ययन करता है। 

असहभागी अवलोकन की विशेषताएं

असहभागी अवलोकन की निम्न विशेषताएं-

  1. इसमें अवलोकनकर्ता तटस्थ दर्शन की भाँति समुदाय की घटनाओं का परीक्षण करता है।
  2. इस अवलोकन में वह अपनी इन्द्रियों का प्रयोग करता है।
  3. समुदाय के बाहरी स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।
  4. अत्यन्त सावधानी और सतर्कता रखी जाती है।
  5. इसमें वैषयिकता लाने का प्रयास किया जाता है।
  6. समूह के क्रिया-कलापों में भाग नहीं लेता।

असहभागी अवलोकन की उपयोगिता 

सामाजिक अनुसन्धान के क्षेत्र में असहभागिक अवलोकन की निम्न उपयोगिता है-

(1) भ्रामकता का निवारण- इस पद्धति की मौलिक उपयोगिता यह है कि इसके द्वारा अनुसंधानकर्ता और सूचनादाता के बीच प्रश्नोत्तर प्रणाली से जो भ्रामकता उत्पन्न होती है, उसका निवारण हो जाता है इस पद्धति में प्रश्नों को समझने की कठिनाई से भी बचा जा सकता है। अनुसन्धानकर्ता समुदाय से दूर रहकर घटनाओं का अध्ययन करता रहता है।

(2) विश्वसनीय सूचनाएँ- असहभागी अवलोकन के पूर्ण और सही सूचनाएँ प्राप्त होती है। इसलिए उसमें विष्वसनीयता का समावेष हो जाता है।

(3) निष्पक्षता- असहभागी अवलोकन में अनुसन्धानकर्ता समुदाय से दूर रहता है, इससे उसके मन में समुदाय के प्रति किसी प्रकार राग-द्वेष नहीं रहता है। इसलिए वह समुदाय में अपने को निष्पक्ष रखकर अध्ययन करता है।

(4) आदर और सहयोग- इसमें अनुसन्धानकर्ता समुदाय में भाग नहीं लेता और अपने में निष्पक्ष दृष्टिकोण को विकसित करता है। इसलिए उसे समुदाय से अधिक आदर और सहयोग प्राप्त होता है।

(5) कम खर्चीली - असहभागी अवलोकन में सहभागी अवलोकन की तुलना में कम समय एवं धन खर्च होता है।

असहभागी अवलोकन की सीमाएँ

अनेक गुणों के होते हुए भी असहभागी अवलोकन दोषमुक्त नहीं है इसके प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(1) अवलोकनकर्ता का दृष्टिकोण- असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता दूर से घटनाओं का अवलोकन करता है। इन घटनाओं की व्याख्या वह अपने दृष्टिकोण से करता है। इसका परिणाम यह होता है कि वास्तविकता समाप्त हो जाती है।

(2) विशुद्ध असहभागिता असम्भव- गुडे और हाट ने लिखा है कि पूर्ण असहभागिता सम्भव नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि अनुसंधानकर्ता के लिए समुदाय से पूर्णरूप से अलग कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी है।

(3) अस्वाभविकता और षंका- जब अनुसन्धानकर्ता निरन्तर समूह से दूर रहता है, तो उसके प्रति सूचनादाताओं के मन में षंका उत्पन्न हो जाती है और उस समूह का सहयोग नहीं मिल पाता है। इससे वह अपने व्यवहार में स्वाभविकता नहीं रख पाता है और अध्ययन की वास्तविकता समाप्त हो जाती है।

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