एपेक क्या है? एपेक के उद्देश्य

एशिया-प्रशांत महासागरीय आर्थिक सहयोग एपेक - विश्व में मुक्त व्यापार व्यवस्था का सबसे प्रबल समर्थक संगठन है। यह संगठन एशिया महाद्वीप के प्रशान्त महासागरीय तटीय देशों में व्यापारिक गतिविधियों को सरल व सुगम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अन्य क्षेत्रीय संगठनों की तरह यह भी एशिया महाद्वीप के प्रशान्त महासागरीय तटीय क्षेत्रों में मुक्त व्यापार व्यवस्था द्वारा क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। एपेक एक प्रादेशिक व्यवस्था होने के बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के खिलाफ नहीं है। 1997 के वेंकूवर बैठक में एपेक ने अपने सदस्य देशों से कहा कि वे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के लिए मिल कर कार्य करें। इस तरह एपेक की क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग में भी अप्रत्यक्ष भूमिका है।

एपेक का गठन

एपेक ऑस्टे्रलिया के प्रधानमन्त्री बॉब हॉक की सोच का परिणाम हैं। इसकी स्थापना 1989 में हुई। इसमें प्रारम्भ में 12 देश शामिल हुए जो हैं - ऑस्टे्रलिया, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, कनाडा, मलेशिया, न्यूजीलैण्ड, मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, फिलिपीन्स, ब्रुनेई तथा इंडोनेशिया। 1991 में 2 वर्ष पश्चात एपेक में चीन, ताईवान तथा हांगकांग शामिल हो गाएं 1993 में पापुआ न्यूगायना तथा मैक्सिको ने इसकी सदस्यता ग्रहण की। 1994 में चिली भी इसका सदस्य बन गया और इसकी सदस्य संख्या 18 तक पहुंच गई।

एपेक के उद्देश्य

  1. सदस्य राज्यों में आपसी आर्थिक सहयोग तथा व्यापार बढ़ाना।
  2. एशिया प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र को मुक्त आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित करना।
  3. सदस्य देशों में निवेश प्रवाह में वृद्धि करना तथा निवेश संरक्षण को मजबूत बनाना।
  4. आर्थिक विकास के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग प्राप्त करना।
  5. अपने वांछित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सदस्य देशों को एक मंच पर लाना तथा उनमें एकता की भावना का विकास करना।

एपेक के सम्मेलन

एपेक का प्रथम शिखर सम्मेलन

एपेक का प्रथम शिखर सम्मेलन नवम्बर, 1993 में अमेरिका के सिएटल शहर में हुआ। इसमें सदस्य देशों को आपसी आर्थिक सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया गया और एशिया प्रशान्त महासागरीय तटीय क्षेत्र को मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में विकसित करने पर जोर दिया गया।

एपेक का द्वितीय शिखर सम्मेलन

एपेक का दूसरा शिखर सम्मेलन 1994 में बोगोर (इंडोनेशिया) में हुआ। इस सम्मेलन में मुक्त व्यापार उवं निवेश का मुद्दा ही प्रमुख रहा। सदस्य देशों ने इस दिशा में कार्य करने के लिए सर्वसम्मति से निर्णय लिया। अधिक विकसित देशों को इस लक्ष्य को प्रापत करने के लिए 2010 तथा शेष को 2020 तक का समय दिया गया ।

एपेक का तीसरा शिखर सम्मेलन

इसका तीसरा शिखर सम्मेलन 1995 में इसाका में हुआ। इसमें आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए संकल्पवाद लचीलेपन तथा सर्वसम्मत चिंतन के सिद्धान्तों के आधार पर कार्य करने के लिए एक कार्ययोजना का प्रारूप तैयार किया गया। इस कार्य योजना को सर्वत्र सराहा गया।

विदेशी मन्त्रियों का सम्मेलन

एपेक के वाणिज्य तथा विदेश मन्त्रियों का वार्षिक सम्मेलन नवम्बर 1996 में सूबिक खाड़क तथा मनीला में आयोजित हुआ। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी (तकनीक) के बाजार को उदार बनाने पर सहमति हो गई तथा मुक्त व्यापार क्षेत्र के विकसित होने से रोकने वाले सभी प्रतिरोधों को समाप्त करने के लिए एक कार्य योजना का प्रारूप तैयार किया गया। इस सम्मेलन में मनीला कार्ययोजना के नाम से अनुमोदित कार्य योजना के अंतर्गत विकसित अर्थव्यवस्था के लिए 2010 तक तथा अविकसित या विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2020 तक मुक्त व खुले व्यापार तथा निवेश के प्रावधानों को कार्यरूप देने पर सहमति हुई।

 इस सम्ममेलन में WTO की दिसम्बर, 1996 में होने वाली बैठक में सूचना तकनीक के समझौते को पूरा करने पर भी निर्णय लिया गया। इस सम्मेलन में अमेरिका ने 2000 तक सीमा शुल्क शून्य करने पर जोर दिया, लेकिन मलेशिया तथा अन्य विकासशील देशों ने इसका विरोध किया। विकासशील देशों ने कहा कि इससे उन देशों को हानि पहुंचेगी, जो अपनी तकनीक तथा उद्योगों को विकसित करने तथा मार्किट में अपना उचित स्थान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसने चीन तथा ताईवान को WTO में प्रवेश देने के मुद्दे पर विचार किया गया। 

सम्मेलन के अन्त में जारी घोषणापत्र में इनको सदस्यता देने से सभी ने मना कर दिया। लेकिन इस सम्मेलन में ASEAN के एकमात्र सदस्य ‘वियतनाम’ जो अब तक एपेक की सदस्यता से वंचित था को भी सदस्यता प्रदान करने का निर्णय लिया गया और रूस को भी इसमें शामिल करने पर सहमति हो गई। इसमें सदस्य देशों से आàान किया गया कि वे एपेक में आर्थिक सहयोग एवं विकास के सिद्धान्तों के आधार पर स्थिर विकास के लिए कार्य करें। इस सम्मेलन में एपेक में आर्थिक सहयोग व विकास में वृद्धि करने के लिए निजी क्षेत्र को भी शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।

वेंकूवर बैठक

एपेक के वाणिज्य व विदेश मन्त्रियों की एक बैठक सन् 1997 में हुई। इस बैठक में स्थिर विकास के लिए मन्त्रियों में रिपोर्ट मांगी गई जो 1996 की मनीला बैठक में सुनिश्चित की गई थी। इस बैठक में मन्त्रियों को कहा गया कि वे व्यापारी वर्ग गतिविधियों को आसान बनाने के लिए उनके साथ मिलकर कार्य करें व उन्हें हर तरह की सम्भव सहायता दें। इस बैठक में व्यापार क्षेत्र को विकसित करने के लिए एपेक व्यापार परिषद् की सिफारिशें लागू करने के साधनों की समीक्षा करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। इसमें निवेश के प्रवाह तथा संरक्षण की आवश्यकता पर बल देने के साथ साथ आधारभूत कार्य योजना में निजी क्षेत्र को भी शामिल करने की बात कही गई। इस तरह यह बैठक अधिक उदारीकरण के साथ आर्थिक सहयोग व व्यापार में वृद्धि को लेकर सम्पन्न हुई।

शंघाई सम्मेलन

एपेक देशों का नई सदी का प्रथम शिखर सम्मेलन 19 से 21 अक्तूबर तक शंघाई (चीन) में हुआ। इसमें सदस्य देशों द्वारा आपसी आर्थिक सहयोग तथा व्यापार बढ़ाने के मुद्दे पर खुली बातचीत हुई और एपेक को खुला आर्थिक क्षेत्र बनाए जाने के उद्देश्य को दोहराया गया। इस सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट माना गया और इसे एकजुट होकर समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस सम्मेलन में प्रथम बार एक राजनीतिक घोषणा पत्र जारी किया गया जिसमें अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुद्दा प्रमुख था।

मूल्यांकन

1989 से लेकर आज तक एपेक निरंतर विकास के मार्ग पर है। यह सदस्य देशों में आपसी आर्थिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। यह एशिया प्रशान्त महासागरीय तटीय देशों में मुक्त व्यापार क्षेत्र विकसित करने के लिए निरन्तर प्रयासरत् है। इसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इसके सदस्य देशों में अधिक सहयोग की भावना नही है। चीन अधिक उदारीकरण का विरोध करता रहा है। WTO में चीन व ताईवान की सदस्यता को लेकर एपेक के देश आपसी फूट का शिकार हैं। अमेरिका अपनी दादागिरी कायम करने के उद्देश्य से निरन्तर एपेक के लक्ष्यों को प्राप्त करने के मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करता रहता है। अमेरिका सयीमा भूतकों को शून्य करने पर जोर देता रहा है, लेकिन कम विकसित देश इसका विरोध करते आ रहे हैं। चीन व ताईवान WTO में शामिल होने से आना-कानी करते आ रहे हैं। वे अपने बाजारों को सदस्य देशों के लिए पूरी तरह खोलने को तैयार नहीं हैं। उनको खतरा है कि इससे उनको लाभ के स्थान पर हानि अधिक होगी। चीन के WTO में शामिल होने सम्बन्धी प्रस्तावों से अमेरिका व उसके पिछलग्गू देश सन्तुष्ट नहीं है। 

अमेरिका की अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के बारे में भी नीति भेदभावपूर्ण है। इस तरह एपेक के देशों में जो आपसी मतभेद हैं, उनके चलते एशिया प्रशान्त महासागर के तटीय क्षेत्रों को मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना कठिन काम है। इसे मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के लिए एपेक के सदस्य देशों को आपसी मतभेद भुलाकर इस दिशा में कुछ सकारात्मक व ठोस कदम उठाने होंगे। इसी से एपेक एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभरेगा और इस क्षेत्र में आर्थिक सम्बन्धों का नया अध्याय शुरू होगा।

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