जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक क्या है, जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक के प्रभाव?

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु रणनीति के बारे में स्पष्ट समझ विकसित करने और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिये बनाया गया एक महत्वपूर्ण उपकरण है। पहली बार 2005 में जारी किये जाने के बाद से जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विभिन्न देशों द्वारा किये गए प्रयासों की निगरानी करता है। इसका उद्देश्य उन देशों पर राजनीतिक और सामाजिक दबाव बढ़ाना है, जो अब तक जलवायु संरक्षण पर उचित कार्रवाई करने में विफल रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक के प्रभाव

सच तो यह है कि भारत समेत कई राष्ट्रों ने उत्सर्जन में कमी के जो लक्ष्य पूर्व में निर्धारित किये हैं, वह तापमान बढ़ोतरी को डेढ़ डिग्री तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। 

1. दरअसल जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों को कम आँका जा रहा है जबकि हकीकत में अध्ययनों-शोधों ने साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने वालों की तादाद में बीते चार सालों के दौरान हमारे देश में लगभग 200 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

2. 2012 से 2016 के बीच यह तादाद चार करोड़ को पार कर गई है। इस बढ़ोतरी का मुख्य कारण तापमान में बढ़ोतरी और तबाही की बढ़ती घटनायें हैं। इसका असर सबसे ज्यादा कम आय वाले देशों पर पड़ रहा है। इसमें भारत सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में शीर्ष पर है। लांसेट की रिपोर्ट इसका प्रमाण है।

3. रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के खतरों से होने वाली मौतों में हमारे देश में उच्च आय वाले देशों की तुलना में सात गुना ज्यादा मौतें होती हैं और घायल व विस्थापित होने वाले लोगों की तादाद हमारे यहाँ छह गुना ज्यादा है।

4. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20 फीसदी हिस्सा जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव देश की आधी आबादी पर पड़ा है जबकि देश का 17 फीसदी आर्थिक उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। 2.80 करोड़ हेक्टेयर गेहूँ की खेती में से 90 लाख हेक्टेयर खेती पर बढ़ते तापमान का दुष्प्रभाव पड़ा है।

5. कृषि क्षेत्र की पैदावार में 4 से 5 फीसदी की कमी दर्ज की जा चुकी है। इससे भारत को प्रति वर्ष उसकी जीडीपी का 1.5 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसमें दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। देश में जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं लेकिन वह नाकाफी है।

6. दुनिया भर में बारिश की सालाना तय मात्रा की आधी बारिश अब महज 12 दिन में ही हो जाती है। मौजूदा हालातों के चलते यह घटकर इस सदी के अंत तक 11 दिन ही रह जायेगा। एकदम से कम समय में भारी बारिश होने से बाढ़ की प्रबल संभावना होती है जिससे फसलों की बर्बादी व जन-धन की हानि होती है। इससे गर्मी की अवधि बढ़ेगी व समुद्र का जलस्तर बढ़ने से अरब सागर और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ेगा, इससे तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों के जीवन के साथ पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान होगा। 

7. गंगा, ब्रह्मपुत्र व महानदी के मुहाने के आसपास के लोगों के जीवन पर खतरा बढ़ेगा, सूखा पड़ेगा, मक्का, चावल, गेहूँ, आदि दूसरे अनाजों की पैदावार में कमी आयेगी। गेहूँ-चावल की गुणवत्ता और खाद्य-पदार्थों की उत्पादकता प्रभावित होगी, पशुधन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, पानी के स्रोतों में कमी आयेगी और मलेरिया, डेंगू जैसे कीटजनित रोगों में बेतहाशा वृ(ि होगी।

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि हम मानवता के समक्ष विनाश का पर्याय बनकर खड़े जलवायु परिवर्तन को रोकने की अपनी योजना के क्रियान्वयन से अभी बहुत दूर खड़े हैं। यदि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतरेस की बात मानें तो हम अभी अपेक्षा से बहुत कम प्रयास कर रहे हैं। इस दिशा में हमारी गति बहुत ही धीमी है जबकि हमें जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने की दिशा में तेजी से काम करना होगा। उन्होंने इसकी अहमियत का ध्यान दिलाते हुए कहा है कि इस अवसर को बेकार में गंवाना जलवायु परिवर्तन को और बढ़ाना है। यह न केवल अनैतिक बल्कि आत्मघाती कदम होगा। इस मुद्दे पर तत्काल कार्यवाही की जरूरत है।

असलियत यह है कि मौजूदा सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान कम करने के लक्ष्य को तभी पूरा किया जा सकता है जब जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक आधा कर दिया जाये। वर्ष 2015 में हुए पेरिस सम्मेलन में भी वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य रखा गया था। जबकि विभिन्न शोध और अध्ययन रिपोर्टों के अनुसार 2030 तक वैश्विक तापमान में एक डिग्री की बढ़ोतरी होगी। 2040 तक यह 1.5 डिग्री और 2065 तक दो डिग्री तक हो जायेगी। आईपीसीसी तक ने यह साफ कर दिया है कि यदि समय रहते रोकथाम के कारगर उपाय नहीं हुए तो वर्ष 2100 तक तापमान बढ़ोत्तरी चार डिग्री तक हो सकती है।

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