कहानी का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, तत्व

कहानी की परिभाषा

कहानी सुनने-सुनाने की परम्परा आदि काल से रही है। सृष्टि के आरम्भ में जब भी पहली घटना घटी, किसी सुनाने वाले को कोई सुनने वाला मिला शायद तभी कहानी का जन्म हुआ।

कहानी मानव जीवन के किसी एक घटना या मनोभाव का रोचक, कौतुहल पूर्ण चित्रण है। कहानियाँ मानव सभ्यता के आदिकाल से ही मनोरंजन एवं आनंद का साधन रही है । केवल मनोरंजन ही नहीं, वरन् शिक्षा प्रदान करने नीति और उपदेश देने के लिए अच्छे साधन का काम करती है । हमारे देश में मनोरंजन के लिए जहाँ वृहत् कथा मंजरी और कथा-सरितासागर सदृश रोचक कहानी-ग्रन्थ मिलते है, वहां मानव - व्यवहार संबंधी नीतिपूर्ण, उपदेषात्मक कहानियों के लिए पंचतंत्र एवं हितोपदेष जैसी रचनाएँ भी मिलती हैं । 

इसके अतिरिक्त उपनिषदों की कहानियाँ तो मानव को दार्शनिक जीवन की गहराइयों से सराबोर कर देती हैं । इस प्रकार कहानी वह सरव, सरस, प्रिय एवं माध्यम है जिसके द्वारा हम ऊँची से ऊँची शिक्षा प्रदान कर सकते हैं ।

कहानी का अर्थ

मनुष्य अपनी आपबीती घटनाएँ अनुभूतियाँ या दृष्टिकोण दूसरों पर प्रकट करना चाहता है। आत्मभिव्यंजन एक सहज वृत्ति है। अपने तथा दूसरों के जीवन सम्बन्धी घटनाओं को रोचकता और कौतूलपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करने से कहानी का जन्म होता है।

कहानी की परिभाषा

अज्ञेय के अनुसार - ”कहानी जीवन की प्रतिछाया है और जीवन स्वयं एक अधुरी कहानी है । एक शिक्षा है, जो उम्रभर मिलती रहती है और समाप्त नहीं होती।” 

स्टीवेन्सन के शब्दों में :- “कहानी मानव जीवन की प्रतिलिपि नही है, वरन् जीवन के कुछ अंगों का साधारणीकरण है । "

डॉ. इन्द्रनाथ मदान के अनुसार :- “यह आंदोलन बाढ़ की तरह सबको बहाकर ले गया । प्रायः हर कहानीकार इससे जुड़ने या डूबने के लिए उतावला हो उठा, हर आलोचक इसे पहचानने के लिए अधीर हो उठा ।”

मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार - ‘‘गल्प (कहानी) एक ऐसी गद्य रचना है, जो किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करती है । कहानी के विभिन्न चरित्र, कहानी की शैली और कथानक उसी एक मनोभाव को पुष्ट करते हैं । यह रमणीय उद्यान न होकर, सुगन्धित फूलों से युक्त एक गमला है।’’

एडगर एलन पो के अनुसार, “कहानी एक ऐसा आख्यान है, जो इतना छोटा होता है कि एक घण्टे भर में पढ़ा जा सकता है और जो पाठक पर एक ही प्रभाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से लिखा गया होता है।”

बाबू श्यामसुंदर दास ने भी अपनी परिभाषा में नाटकीय ढंग पर अधिक बल दिया है। उनके विचारानुसार - “आख्यायिका (कहानी) एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर लिखा गया नाटकीय आख्यान है।”

इलाचन्द्र जोशी के अनुसार, “जीवन का चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष से उल्टा-सीधा चलता रहता है इस सुबृहत.चक्र की विशेष परिस्थिति का प्रदर्शन ही कहानी है।”

एच॰ जी॰ वेल्स का कहना है कि “कहानी वह कथा है जो घण्टे भर में पढ़ी जा सके।”

कहानी के प्रकार

 कहानी के कितने प्रकार होते हैं, कहानियों का वर्गीकरण इस प्रकार से किया जा सकता है -

1) धार्मिक कहानियाँ:- इन कहानियों का संबंध सदाचरण से होता है । रामायण और महाभारत की कहानियाँ, इसी प्रकार की हैं ।

2) ऐतिहासिक कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियाॅं, इतिहास संबंधी घटनाओं पर आधारित होती हैं । इन कहानियों में राजनीति संबंधी सूझ-बूझ भी पायी गई है ।

3) सामाजिक कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियों में समाज की परम्पराओं का समाज के रीति-रिवाजों और समाज की समस्याओं का वर्णन होता है ।

4) यर्थाथवादी कहानियाँ:- इन कहानियों में यर्थाथवादी जीवन का चित्र होता है ।

5) आदर्शवादी कहानियाँ:- इन कहानियों में वर्णित है - क्या करणीय है ? क्या अकरणीय है ?

6) आदर्षोन्मुख यर्थाथवादी कहानियाँ:- इन कहानियों का धरातल यर्थाथवादी होता है, परन्तु दृष्टि आदर्शवादी होती है । शैली की दृष्टि से कहानियों के तीन वर्ग हो सकते हैं -

7) घटना प्रधान कहानियाँ:- इन कहानियों में किसी न किसी घटना का वर्णन होता है । वह घटना सामाजिक हो सकती है अथवा ऐतिहासिक हो सकती है ।

8) चरित्र प्रधान कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियों में पात्रों के चरित्र-चित्रण पर विशेष बल दिया जाता है ।

9) समस्यात्मक कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियों में कोई न कोई समस्या वर्णित होती है । वह समस्या सामाजिक हो सकती है, धार्मिक हो सकती है राजनीतिक हो सकती है, अथवा मनोवैज्ञानिक हो सकती है । कहीं-कहीं समस्या-समाधान भी निहित होता है ।

कहानी के तत्व

विद्वानों के मतानुसार कहानी के ये तत्व हो सकते हैं -

क) शीर्षक-कहानी का शीर्षक रोचक तथा आकर्षक होना चाहिए । शीर्षक इतना स्पष्ट होना चाहिए कि उसे देखते ही कथा-वस्तु की झलक मिल जानी चाहिए ।

ख) कथा-वस्तु या कथानक-कथा वस्तु में ये गुण होने चाहिए -
  1. संक्षिप्तता, 
  2. सरलता, 
  3. स्पष्टता
  4. क्रमबद्धता
  5. गतिशीलता
  6. रोचकता
  7. श्रृंखला-बद्धता 
  8. जीवन से संबंधित 
  9. सुखान्त
ग) पात्र और चरित्र-चित्रण:- पात्रों की संख्या कम हो । चरित्र-चित्र स्वाभाविक हो । पात्रों के हँसने-रोने पर पाठक या श्रोता भी हँसने-रोने लगे ।

घ) कथोपकथन-संवाद छोटे-छोटे हों, सरल भाषा वाले हों, रोचक हो, मर्मस्पर्शी हों और पात्रानुकूल हो ।

ड़) शैली-शैली कहानी लेखक का -‘‘स्व’’ या आत्मा है । भिन्न-भिन्न लेखकों की शैली में अंतर होगा । कथानक की दृष्टि से शैली कई प्रकार की हो सकती है -
  1. कथोपकथन या संवाद प्रणाली,
  2. विवरणात्मक प्रणाली-कहानीकार तटस्थ रूप में वर्णन करता है
  3. डायरी प्रणाली
  4. मनोविष्लेषणात्मक प्रणाली
  5. पत्र-प्रणाली
  6. आत्म-कथात्मक प्रणाली
  7. संस्मरणात्मक प्रणाली
च) भाषा-भाषा सरल हो, स्वाभाविक हो देशकाल और पत्रों के स्थिति अनुसार हो ।

छ) देशकाल - प्रत्येक कहानी अपने युग और स्थान का प्रतिनिधित्व करने वाली हो । घटनाएँ जब देष-काल के मुताबिक होती है, तभी उपयुक्त लगती है ।

ज) उद्देश्य - कहानियों के कई उद्देश्य हो सकते हैं -
  1. मनोरंजन और आनन्द प्राप्ति - मुख्य उद्देश्य
  2. चित्रवृत्तियों का परिष्कार
  3. शिक्षा और उपदेश
  4. जीवन की समस्याओं और रहस्यों का उद्घाटन
  5. सौन्दर्यानुभूति
  6. रसानुभूति
  7. मानव-प्रकृति का विश्लेषण
  8. जीवन का संतुलित विकास
  9. समाज की आलोचना

संदर्भ -

  1. बी.एल. शर्मा- हिन्दी शिक्षण - आर. लाल बुक डिपो- 2009
  2. डाॅ. शमशकल पाण्डेय- हिन्दी शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन- 2012
  3. डाॅ. एस.के. त्यागी - हिन्दी भाषा शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा-2-2009

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