कहानी का अर्थ
कहानी की परिभाषा
मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार - ‘‘गल्प (कहानी) एक ऐसी गद्य रचना है, जो किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करती है । कहानी के विभिन्न चरित्र, कहानी की शैली और कथानक उसी एक मनोभाव को पुष्ट करते हैं । यह रमणीय उद्यान न होकर, सुगन्धित फूलों से युक्त एक गमला है।’’
बाबू श्यामसुंदर दास ने भी अपनी परिभाषा में नाटकीय ढंग पर अधिक बल दिया है। उनके विचारानुसार - “आख्यायिका (कहानी) एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर लिखा गया नाटकीय आख्यान है।”
इलाचन्द्र जोशी के अनुसार, “जीवन का चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष से उल्टा-सीधा चलता रहता है इस सुबृहत.चक्र की विशेष परिस्थिति का प्रदर्शन ही कहानी है।”
एच॰ जी॰ वेल्स का कहना है कि “कहानी वह कथा है जो घण्टे भर में पढ़ी जा सके।”
कहानी के प्रकार
कहानी के कितने प्रकार होते हैं, कहानियों का वर्गीकरण इस प्रकार से किया जा सकता है -
1) धार्मिक कहानियाँ:- इन कहानियों का संबंध सदाचरण से होता है । रामायण और महाभारत की कहानियाँ, इसी प्रकार की हैं ।
2) ऐतिहासिक कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियाॅं, इतिहास संबंधी घटनाओं पर आधारित होती हैं । इन कहानियों में राजनीति संबंधी सूझ-बूझ भी पायी गई है ।
3) सामाजिक कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियों में समाज की परम्पराओं का समाज के रीति-रिवाजों और समाज की समस्याओं का वर्णन होता है ।
4) यर्थाथवादी कहानियाँ:- इन कहानियों में यर्थाथवादी जीवन का चित्र होता है ।
5) आदर्शवादी कहानियाँ:- इन कहानियों में वर्णित है - क्या करणीय है ? क्या अकरणीय है ?
6) आदर्षोन्मुख यर्थाथवादी कहानियाँ:- इन कहानियों का धरातल यर्थाथवादी होता है, परन्तु दृष्टि आदर्शवादी होती है । शैली की दृष्टि से कहानियों के तीन वर्ग हो सकते हैं -
7) घटना प्रधान कहानियाँ:- इन कहानियों में किसी न किसी घटना का वर्णन होता है । वह घटना सामाजिक हो सकती है अथवा ऐतिहासिक हो सकती है ।
8) चरित्र प्रधान कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियों में पात्रों के चरित्र-चित्रण पर विशेष बल दिया जाता है ।
9) समस्यात्मक कहानियाँ:- इस प्रकार की कहानियों में कोई न कोई समस्या वर्णित होती है । वह समस्या सामाजिक हो सकती है, धार्मिक हो सकती है राजनीतिक हो सकती है, अथवा मनोवैज्ञानिक हो सकती है । कहीं-कहीं समस्या-समाधान भी निहित होता है ।
कहानी के तत्व
विद्वानों के मतानुसार कहानी के ये तत्व हो सकते हैं -क) शीर्षक-कहानी का शीर्षक रोचक तथा आकर्षक होना चाहिए । शीर्षक इतना स्पष्ट होना चाहिए कि उसे देखते ही कथा-वस्तु की झलक मिल जानी चाहिए ।
ख) कथा-वस्तु या कथानक-कथा वस्तु में ये गुण होने चाहिए -
- संक्षिप्तता,
- सरलता,
- स्पष्टता
- क्रमबद्धता
- गतिशीलता
- रोचकता
- श्रृंखला-बद्धता
- जीवन से संबंधित
- सुखान्त
घ) कथोपकथन-संवाद छोटे-छोटे हों, सरल भाषा वाले हों, रोचक हो, मर्मस्पर्शी हों और पात्रानुकूल हो ।
ड़) शैली-शैली कहानी लेखक का -‘‘स्व’’ या आत्मा है । भिन्न-भिन्न लेखकों की शैली में अंतर होगा । कथानक की दृष्टि से शैली कई प्रकार की हो सकती है -
- कथोपकथन या संवाद प्रणाली,
- विवरणात्मक प्रणाली-कहानीकार तटस्थ रूप में वर्णन करता है
- डायरी प्रणाली
- मनोविष्लेषणात्मक प्रणाली
- पत्र-प्रणाली
- आत्म-कथात्मक प्रणाली
- संस्मरणात्मक प्रणाली
छ) देशकाल - प्रत्येक कहानी अपने युग और स्थान का प्रतिनिधित्व करने वाली हो । घटनाएँ जब देष-काल के मुताबिक होती है, तभी उपयुक्त लगती है ।
ज) उद्देश्य - कहानियों के कई उद्देश्य हो सकते हैं -
- मनोरंजन और आनन्द प्राप्ति - मुख्य उद्देश्य
- चित्रवृत्तियों का परिष्कार
- शिक्षा और उपदेश
- जीवन की समस्याओं और रहस्यों का उद्घाटन
- सौन्दर्यानुभूति
- रसानुभूति
- मानव-प्रकृति का विश्लेषण
- जीवन का संतुलित विकास
- समाज की आलोचना
संदर्भ -
- बी.एल. शर्मा- हिन्दी शिक्षण - आर. लाल बुक डिपो- 2009
- डाॅ. शमशकल पाण्डेय- हिन्दी शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन- 2012
- डाॅ. एस.के. त्यागी - हिन्दी भाषा शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा-2-2009