कार्यशील पूंजी किसे कहते हैं ?

कार्यशील पूंजी वह होती है जिसके माध्यम से दैनिक संचालन क्रियाओं को सुगम रूप में संचालित रखने में व्यवसाय को सहायता प्राप्त होती है। स्थाई  संपत्तियों में निवेश के अलावा प्रत्येक व्यावसायिक संगठन को चालू सम्पत्तियों में भी निवेश की आवश्यकता होती है जिन्हें एक वर्ष में रोकड़ या रोकड़ के समतुल्यों में परिवर्तित किया जा सकता है। ये सम्पत्तियाँ व्यवसाय को तरलता प्रदान करती है। कार्यशील पूंजी दो प्रकार की होती है- सकल कार्यशील पूंजी तथा शुद्ध कार्यशील पूंजी। सभी चालू सम्पित्त्यों में किये गए निवेश को सकल कार्यशील पूंजी कहते हैं। जबकि चालू दायित्व पर चालू सम्पत्तियों के आधिक्य को शुद्ध कार्यशील पूंजी कहते हैं। 

एक संगठन की कार्यशील आवश्यकताओं को निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित किया जाता है।

(1) व्यवसाय की प्रकृति :- एक व्यापारिक उपक्रम को, निर्माण उपक्रम के मुकाबले कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि इनके द्वारा वस्तु निर्माण सम्बन्धित कोई  कार्य नहीं करना पड़तां ये केवल माल का क्रम एव विक्रय करते हैं।

(2) संचालन का स्तर :- ऐसे संगठन जो उच्च पैमाने पर व्यवसाय चलाते हैं उन्हें बड़ी मात्रा में स्कन्ध की आवश्यता होती है। अत: उन्हें अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है। जिन संगठनों का व्यापारिक संचालन निम्न कोटि का होता है उन्हें कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है।

(3) व्यवसाय चक्र:- तेजी की दशा में व्यावसायिक गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं, अत: अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता पड़ती है, जबकि मंदी के दौर में कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है।

(4) मौसमी घटक :- मौसम के चरम या शीर्घ स्तर पर मौसमी व्यवसाय जैसे आइसक्रीम फैक्ट्री को अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है। जबकि मौसम समाप्त हो जाने पर कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है।

(5) उधार विक्रय सुविधा :- उधार नीति अपनाने पर अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है, परन्तु नकद माल बेचने पर कार्यशील पूंजी की आवश्यकता कम होती है।

(6) उधार क्रय सुविधा :- यदि कम्पनी कच्चे माल आदि का उधार क्रय करती है तो उसे कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है, परन्तु नकद क्रय करने पर अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है।

(7) मुद्रास्फीति - कार्यशील पूंजी सम्बन्धी आवश्यकताएँ मूल्य स्तर में परिवर्तन द्वारा भी निर्धारित होती है। जैसे- स्फीतिकारी (Inflahon) अवधि में कच्चे माल कच्चे और श्रम दोनों की लागत बढ़ जाने से कार्यशील पूंजी की आवश्यकता अधिक होती है।

(8) परिचालन चक्र :- परिचालन चक्र मांग की प्राप्ति से देनदारों से रोकड़ वसूली के बीच की अवधि है। यह कच्चे माल के क्रय से शुरू होने पर तथा माल को बेचने से ग्राहकों से प्राप्त होने वाली धनराशि पर समाप्त होता है। परिचालन चक्र के लम्बे होने पर कार्यशील पूंजी की आवश्यकता अधिक होती है।

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