निगमन विधि क्या है ? nigaman vidhi kya hai ?

यह विधि आगमनिक विधि के विपरीत होती हैं इस विधि में सामान्य से विशेष सूक्ष्म से स्थूल एवं सूत्र या नियम से उदाहरण की ओर ले जाया जाता है। इस विधि में विद्यार्थियों को सूत्र बताए जाते है और उनको इन सूत्रों को संबंधित प्रश्नों में प्रयोग करने को कहा जाता है।

लेडन के अनुसार ‘‘ निगमन विधि द्वारा शिक्षण में पहले परिभाषा या नियम या सूत्र सिखाया जाता है, तत्पश्चात अर्थ का सावधानी से स्पष्टीकरण किया जाता है और अंत में तथ्यों को प्रयोग करके पूर्णतः उसे स्पष्ट किया जाता है। ’’

निगमन विधि में निम्नलिखित पदों का प्रयोग किया जाता है:-

  1. नियम या सिद्धांत का प्रस्तुतीकरण - इस पद में शिक्षक विद्यार्थियों को नियम या सिद्धांत बताते हैं।
  2. उदाहरण द्वारा नियम या सिद्धांत को सत्यापित करना इस पद में शिक्षक विभिन्न उदाहरण और तथ्यों की सहायता से बताए गए नियम / सिद्धांत को सत्यापित करते हैं।
  3. निष्कर्ष निकालना - उदाहरण और तथ्यों के आधार पर विद्यार्थी निष्कर्ष निकालते हैं।
  4. सत्यापन - अन्ततः विद्यार्थी उदाहरणों द्वारा निकाले गए निष्कर्ष की सहायता से सत्यता का परीक्षण करते हैं।

उदाहरण - यदि एक धनाभाकर बाॅक्स की लम्बाई 10 से.मी. चैड़ाई 8 से.मी. एवं ऊॅचाई 5 सेमी है तो उस बाॅक्स का आयतन ज्ञात कीजिए।

हल - इस प्रश्न में सबसे पहले घनाभ का आयतन निकालने का सूत्र समझाया जाएगा

आयतन, V= लम्बाई x चैड़ाई x ऊॅचाई

अब इस सूत्र में दी गई जानकारी के आधार पर आयतन निकालने को कहा जाएगा

V= 10x8x5 = 400 cm3

निगमन विधि के गुण

  1. क्योंकि समस्या का हल दिए हुए सूत्र की सहायता से निकालना है इसलिए कम समय लगेगा और इसलिए यह विधि उपयोगी है।
  2. यह विधि अभ्यास के लिए उपयोगी है।
  3. यह विधि बड़ी कक्षाओं के लिए उत्तम है।
  4. यह गति, काम करने की शक्ति और समस्याओं को हल करने की क्षमता बढ़ाती है।

निगमन विधि के दोष

  1. यह विधि नई खोज करने के लिए उपयुक्त नहीं है।
  2. इस विधि से विद्यार्थियों में मौलिकता एवं सृजनात्मकता का विकास नहीं होता।
  3. यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं हैं क्योंकि इसमें व्यक्तिगत भिन्नता को जाने बिना ही सीखने के लिए मजबूर किया जाता है। साथ ही साथ इसमें सूक्ष्म से स्थूल की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  4. यह विधि रटने को बढ़ावा देती है।
  5. इस विधि से अर्जित ज्ञान स्थायी नहीं होता।
  6. इस विधि से प्राप्त ज्ञान अपूर्ण और अस्पष्ट होता है।
  7. इस विधि के प्रयोग से विद्यार्थियों को तर्क या विचार करने का अवसर नहीं मिलता ।
  8. केवल उच्च कक्षाओं के लिए यह विधि उपयोगी है।

Post a Comment

Previous Post Next Post