नियंत्रण (प्रबंधन) से आप क्या समझते है? नियन्त्रण की सीमाएँ/दोष

 - नियंत्रण से तात्पर्य में नियोजन के अनुसार क्रियाओं के निष्पादन से है। नियन्त्रण इस बात का आश्वासन है कि संगठन के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी संसाधनों का उपयोग प्रभावी एवं दक्षतापूर्ण ढंग से हो रहा है।

- नियंत्रण कार्य को वास्तविक निष्पादन की पूर्व निर्धारित कार्य से तुलना क रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

- नियन्त्रण से निष्पादन एवं मानकों के विचलन का ज्ञान होता है, यह विचलनों का विश्लेषण करता है तथा उन्हीं के आधार उसके सुधार के लिए कार्य करता है।

नियन्त्रण का महत्व

(1) नियन्त्रण संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है :- नियन्त्रण संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगता है। यदि कोर्इ विचलन प्रकाश में आता है तो उसका सुधार करता है।

(2) मानकों की यथार्थता को आँकना :- एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली द्वारा निर्धारित मानकों की यथार्थता तथा उद्देश्य को सत्यापित कर सकता है। नियंत्रण संगठन में होने वाले परिवर्तनों को सावधानीपूर्वक जांच करता है।

(3) संसाधन का कुशलतम प्रयोग करने में सहायता :- नियन्त्रण प्रक्रिया द्वारा एक प्रबन्धक संसाधनों का व्यर्थ जाना कम कर सकता है।

(4) कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार :- एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली में कर्मचारियों को पहले से यह ज्ञात होता है कि उन्हें क्या करना है। जिनके आधार पर उनका निष्पादन मूल्यांकन होगा। इसमे कर्मचारी अभिप्रेरित होते हैं।

(5) कार्य में समन्वय की सुविधा :- नियन्त्रण में प्रत्येक विभाग व कर्मचारी निर्धारित मानकों से बंधा होता है तथा वे आपस में सुव्यवस्थित ढंग से
एक-दूसरे से भली-भांति समन्वित होते हैं।

(6) आदेश व अनुशासन की सुनिश्चितता : नियन्त्रण संगठन में आदेश तथा अनुशासन का वातावरण बनाता है। इसके द्वारा कर्मचारियों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकती है।

नियंत्रण की प्रकृति

1. नियंत्रण एक उद्देश्य कार्य है:-नियंत्रण, एक प्रबंधन कार्य के रूप में, यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों और समूहों के द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य संगठन के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाओं के अनुरूप हों। इस प्रकार नियंत्रण एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है।

2. नियंत्रण एक सर्वव्यापक क्रिया है:- नियंत्रण एक ऐसा कार्य है जो सभी प्रकार के संगठनों एवं सभी स्तरों पर लागू होता है। उदाहरण के लिए उच्च प्रबंधकों का संबंध प्रशासनिक नियंत्रण से होता है, जो व्यापक नीतियों, योजनाओं एवं अन्य निर्देशों के द्वारा कार्यान्वित होता है। मध्यम स्तरीय प्रबंधक का सम्बन्ध योजनाओं, नीतियों एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से कार्यकारी नियंत्रण से होता है।

3. नियंत्रण सतत् कार्य है :- नियंत्रण एक बार किया जाने वाला कार्य नहीं है, अपितु यह एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें वास्तविक एवं नियोजित निष्पादन का निरंतर विश्लेषण निहित है। इस प्रक्रिया द्वारा परिणामी विचलन, यदि कोर्इ हो, को परिस्थितियों के अनुसार दूर किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक फर्म 'X Ltd.' जो कि रेडीमेड कपड़े बनाने के व्यवसाय में संलग्न है, प्रति माह 10,000 प्रीमियम शर्ट तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित करती है परन्तु केवल 8,000 शर्ट ही तैयार कर पाती है। ऐसी स्थिति में नियंत्रण प्रक्रिया इस प्रकार के विचलन के कारणों को पहचानने में सहायता करती है और यह प्रतिदिन, प्रतिमाह एवं प्रतिवर्ष चलती रहती है।

4. नियंत्रण एक पीछे की ओर देखने की (Backward Looking) एवं आगे की ओर देखने की (Forward Looking) प्रक्रिया है। भूतकाल में की गर्इ त्रुटियों का विश्लेषण किये बिना वर्तमान में प्रभावी नियंत्रण सम्भव नहीं हो सकता। अत: इस प्रकार नियंत्रण एक पीछे की ओर देखने की प्रक्रिया है। लेकिन दूसरी तरफ व्यवसायिक वातावरण निरंतर बदलता रहता है और नियंत्रण प्रक्रिया इस प्रकार के परिवर्तनों के अनुकूल संगठन को ढालने में सहायता करती है। अत: इस प्रकार आगे की ओर देखने के पक्ष को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

5. नियंत्रण एक गतिशील प्रक्रिया है:- नियंत्रण प्रक्रिया द्वारा बदलते व्यवसायिक वातावरण के अनुरूप एवं नियोजित एवं वास्तविक परिणामों में विचलनों के अनुसार निरंतर सुधारात्मक कदम उठाऐ जाते है।ं अत: यह एक गतिशील प्रक्रिया है।

6. नियंत्रण एक सकारात्मक प्रक्रिया है:- जोर्ज टेरी ने नियंत्रण को एक सकारात्मक कार्य बताया है। उनके अनुसार नियंत्रण नियोजित कार्य को वास्तविक कार्य के रूप में करना है। नियंत्रण को एक नकारात्मक प्रक्रिया के रूप में कभी नहीं देखा जाना चाहिए अर्थात् उद्देश्यों की प्राप्ति में एक बाधक के रूप में। नियंत्रण एक प्रबंधकीय अनिवार्यता एवं एक सहायता है न कि एक बाधक।

नियन्त्रण की सीमाएँ/दोष

(1) बाह्य घटकों पर अल्प नियन्त्रण :- सामान्य तौर पर एक संगठन बाहरी घटकों जैसी सरकारी नीतियाँ, तकनीकी नियंत्रण प्रतियोगिता आदि पर नियन्त्रण नहीं रख पाता।

(2) कर्मचारियों से प्रतिरोध :- अधिकतर कर्मचारी नियन्त्रण का विरोध करते हैं। उनके अनुसार नियन्त्रण उनकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है। 

उदाहरण के िलए यदि कर्मचारियों की गतिविधियों पर नियंत्रण करने के लिए (CCTV Camera) लगा दिया जाए तो वे निश्चित रूप से इसका विरोध करेंगे।

(3) महंगा सौदा : नियन्त्रण में खर्चा, समय तथा प्रयास की मात्रा अधिक होने के कारण यह एक महंगा सौदा है।

(4) परिणामत्मक मानकों के निर्धारण में कठिनार्इ :- जब मानकों को परिणात्मक शब्दों में व्यक्त नहीं िया जा सकता तो नियन्त्रण प्रणाली का प्रभाव कम हो जाता है।

नियंत्रण प्रक्रिया

(1) निष्पादन मानकों का निर्धारण :- मानक एक मानदंड है जिसके तहत वास्तविक निष्पादन की माप की जाती है। अत: मानक मील के पत्थर के समान होता है।

(2) वास्तविक निष्पादन की माप :- निष्पादन की माप उद्देश्यपूर्ण तथा विश्वसनीय विधि से होनी चाहिए, इसमें व्यक्तिगत देखरेख, नमूना, जांच आदि हो। निष्पादन की माप उन बातों को ध्यान में रखकर करनी चाहिए, जिन्हें प्रमाप करते समय रखा गया था।

(3) वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना :- इस कार्यवाही में वास्तविक निष्पादन की तुलना निर्धारित मानकों से की जाती है। ऐसी तुलना में अन्तर हो सकता है। यदि ये दोनों समान हों तो ये माना जायेगा कि नियंत्रण का स्तर ठीक है।

(4) विचलन विश्लेषण :- मानकों द्वारा विचलनों का पता लगाया जाता है तथा विश्लेषण किया जाता है ताकि विचलनों के कारणों को पहचाना जा सके।

(5) सुधारात्मक कार्यवाही करना :- यह नियंत्रण प्रक्रिया का अंतिम चरण है। यदि विचलन अपनी निर्धारित सीमा के अन्दर है तो किसी सुधारात्मक कार्यवाही आवश्यकता नहीं पड़ती, परन्तु यदि अंतर अधिक हो तो योजनाओं में सुधार किए जाने चाहिए।

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