नो डिटेंशन पालिसी (No Detention Policy) क्या है?

नो डिटेंशन पालिसी (No Detention Policy) क्या है

‘नो डिटेंशन पालिसी (No Detention Policy)’, शिक्षा के अधिकार अधिनियम (2009) का अहम हिस्सा है। इस नीति के तहत 1 से 8 कक्षा तक किसी भी छात्रा को फेल नहीं किया जाता है। इस पालिसी का मुख्य उद्देश्य यह है कि छात्रों की सफलता का मूल्यांकन केवल उनके द्वारा परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर न किया जाए बल्कि इसमें उनके सर्वांगीण विकास को भी ध्यान में रखा जाए।

नो डिटेंशन पालिसी की पृष्ठभूमि

निशुःल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) एक्ट, 2009 के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष के बीच के सभी बच्चों को अपने पड़ोस के स्कूल में प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1-8) प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। आरटीई एक्ट के अन्य प्रावधानों में, प्राथमिक शिक्षा समाप्त होने तक किसी भी बच्चे को किसी कक्षा में न रोकने का प्रावधान किया गया था। अगली कक्षा में इस आटोमैटिक प्रमोशन से यह माना जाता था कि पहले की कक्षा में बच्चे को न रोकने के परिणामस्वरूप वह स्कूल नहीं छोड़ते हैं। गौरतलब है कि आरटीई एक्ट के लागू होने से पहले राज्यों को नो डिटेंशन (बच्चे को पिछली कक्षा में न रोकने) नीति के संबंध में राहत भी मिली हुई थी। 

उदाहरण के लिए गोवा में कक्षा 3, तमिलनाडु में कक्षा 5 और असम में कक्षा 7 तक के बच्चे को पिछली कक्षा में नहीं रोका जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में दो विशेषज्ञ कमिटियों ने आरटीई एक्ट के नो डिटेंशन प्रावधान की समीक्षा की और यह सुझाव दिया कि इसे हटा दिया जाए या चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाना चाहिए। 

इस संदर्भ में 22 राज्यों ने भी इस पालिसी के कारण शिक्षा का स्तर गिरने की बात कहते हुए इसे समाप्त करने की माँग केंद्र सरकार से की थी। इसके बाद संशोधन का फैसला लिया गया।

नो डिटेंशन पालिसी के पक्ष में तर्क

1. बच्चों को उसी कक्षा में रोकने के परिणामस्वरूप बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं (ड्राॅप आउट)। चूंकि जब किसी बच्चे को उसकी उम्र से कम उम्र के बच्चों के समूह में बैठना पड़ता है, तो वह परेशान होता है तथा दूसरे बच्चे उसका मजाक उड़ाते हैं।

2. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, 2014-2015 में प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर लगभग 4» थी और बच्चों को परीक्षाओं के आधार पर फेल करने से स्कूल छोड़ने की दर में वृ(ि होगी।

3. विशेषज्ञों के अनुसार, परीक्षा में फेल होने के बाद कक्षा दोहराने पर यह माना जाता है कि सारी गलती बच्चे की है और शिक्षण परिणामों को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों को नकार दिया जाता है।

4. आर्थिक रूप से वंचित समूहों के पास इतना धन नहीं होता कि वे अपने बच्चों को निजी टड्ढूशन दिला सकें। पाॅलिसी में बदलाव के चलते पफेल होने वाले बच्चों को आगे की कक्षाओं में प्रोन्नति नहीं मिलेगी। ऐसे में उनके माता-पिता बच्चों को आगे पढ़ाने के बजाय कहीं काम पर लगा देगें जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरे नतीजतन ऐसे बच्चों का पढ़ाई से सरोकार टूटने की अधिक सम्भावना है।

5. बच्चे गुणवत्तायुक्त शिक्षा से वंचित रहते हैं तो इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे पेशेवर योग्य शिक्षकों की कमी, शिक्षकों का अनुपस्थित होना, सीमित आधारभूत संरचना) और शिक्षा एवं आकलन की सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली को पूरी तरह से लागू न करना।

5. उल्लेखनीय है कि अगस्त, 2017 में आरटीई (संशोधन) एक्ट, 2017 को पारित किया गया ताकि आरटीई एक्ट के अंतर्गत शिक्षकों की जो न्यूनतम योग्यता निर्दिष्ट की गई है, उसे हासिल करने की समय सीमा को चार वर्षों तक बढ़ाया जा सके। यह अतिरित्तफ समय सीमा इसलिए दी गई थी क्योंकि राज्यों ने सेवारत अप्रशिक्षित शिक्षकों का प्रशिक्षण पूरा नहीं किया था।

6. लड़कियों के लिये तो यह बदलाव और भी गंभीर साबित हो सकता है। दरअसल कम उम्र में लड़कियों का विवाह, स्कूल का घर से दूर होना और स्कूलों में शौचालयों का अभाव आदि ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से लड़कियाँ माध्यमिक स्तर तक आते-आते स्कूल छोड़ देती हैं। ऐसे में ‘नो डिटेंशन पाॅलिसी’ में बदलाव उनके स्कूल छोड़ने का एक और कारण बन जायेगा।

7. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (एनसीईआरटी) ने इस संदर्भ में सरकार को सलाह दी कि आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल न करने की नीति (नो डिटेंशन पाॅलिसी) को समाप्त नहीं किया जाए। 

8.  मौजूदा बिल में भी कई कमी है जैसे- बिल सभी स्कूलों में शैक्षणिक वर्ष के अंत में कक्षा 5 और कक्षा 8 में नियमित परीक्षा कराने के लिए आरटीई एक्ट में संशोधन करता है लेकिन बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन परीक्षाओं को कौन कराएगा, यानी परीक्षाएँ केंद्र द्वारा संचालित की जाएगी अथवा राज्य या स्कूल द्वारा। उल्लेखनीय है कि एक्ट का जो प्रावधान प्राथमिक शिक्षा में बोर्ड की परीक्षाओं को प्रतिबंधित करता है, उसमें भी परिवर्तन नहीं किया गया है।

नो डिटेंशन पालिसी के विपक्ष में तर्क

1. स्वतः अगली कक्षा में प्रवेश देने से बच्चों में सीखने और शिक्षकों में सिखाने का भाव कम हो जाता है।

2. केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड 2014, राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (2012) और आर्थिक सर्वेक्षण (2016-17) से पता चला है कि आरटीई एक्ट के लागू होने के बाद भी प्राथमिक शिक्षा में शिक्षण स्तर गिरा है। 

3. गैर-लाभकारी संगठन ‘प्रथम’ द्वारा प्रकाशित ग्रामीण भारत के लिये शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति के अनुसार, पाँचवीं कक्षा के सभी छात्रों का अनुपात जो कि कक्षा दो के स्तर की पाठ्य पुस्तक पढ़ सकते थे, 2014 में 48.1% से गिरकर 2016 में 47.8% हो गया। अंकगणित और अंग्रेजी विषय में भी यही स्थिति देखी गई।

4. इसी तरह 2016 के एक सर्वेक्षण में कक्षा 3 के 58» बच्चे कक्षा 1 के स्तर का पाठ पढ़ने में असमर्थ थे, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 3 के 73% बच्चे अंकगणित के प्रश्न हल करने में असमर्थ थे।

5. अधिकतर राज्यों ने जो सुझाव दिए थे, बिल के मूल्यांकन और डिटेंशन संबंधी प्रावधान उससे भिन्न थे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक, चार या पाँच राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्य नो-डिटेंशन पाॅलिसी खत्म करने के पक्ष में थे।

6. कमजोर बच्चों में सुधार के लिए सीसीई सतत तथा व्यापक मूल्यांकन की व्यवस्था दी गई थी, लेकिन अधिकांश राज्यों में स्कूलों में इस दिशा में कोई काम ही नहीं हुआ। नतीजतन बड़ी संख्या में अक्षर ज्ञान तक नहीं होने के बावजूद बच्चों को आठवीं कक्षा तक प्रमोट कर दिया गया।

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