पाठ्यक्रम निर्माण के प्रमुख सिद्धांत

पाठ्यक्रम हिन्दी भाषा का शब्द है । इसे अंग्रेजी भाषा में ‘Curriculum’ कहते है। ‘Curriculum’ शब्द की उत्पति लेटिन भाषा के शब्द ‘Currer’ से हुई है , जिसका अर्थ है दौड़ना । वर्तमान युग में पाठ्यक्रम का अर्थ अध्ययन में आने वाली सभी क्रियाओं तथा विषयों से लिया जाता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम से अभिप्राय उन सभी अनुभवों से है जो कक्षा , विद्यालय , खेल , का मैदान एवं अन्य सहगामी क्रियाओं द्वारा प्राप्त होते है।

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पाठ्यक्रम की परिभाषा

हार्न का कथन है - पाठ्यक्रम अनुभवों का भण्डार है । वह जीवन की समस्याओं की एक श्रृंखला है जो जीवन में समय-समय पर प्राप्त होती है।

कनिंघम - पाठ्यक्रम का अभिप्राय मनुष्य जाति के सम्पूर्ण ज्ञान और अनुभव के सार से लिया जाता है । संक्षेप में वह पाठ्य-विषयों का व्यवस्थित स्वरूप है जो अनेक विद्वानों के सहयोग से निर्मित होता है।

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पाठ्यक्रम निर्माण के प्रमुख सिद्धांत

पाठ्यक्रम निर्माण के आधारभूत एवं महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित है -

1. वैयक्तिक भिन्नताओं का सिद्धांत:- पाठ्यक्रम के निर्माण के प्रमुख सिध्दातों में वैयक्तिक भिन्नता का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण माना जाता है। मनुष्य में अनुभव , रुचि , जन्मजात योग्यता एवं यौन सम्बन्धी कई भिन्नताएं होती है। इसलिए पाठ्यक्रम भी वैयक्तिक भिन्नताओं के अनुरूप ही होना चाहिए।

2. बाल-क्रेन्द्रित पाठ्यक्रम:- पाठ्यक्रम , बाल-क्रेन्द्रित होना चाहिए , जिसमें बालक को केन्द्र मानकर शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए । पाठ्यक्रम का निर्माण बालक की प्रकृति के आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसे पाठ्यक्रम का संगठन अथवा पाठ्य विषयों आदि का एकत्रीकरण बालक के विकास के स्तर उसकी आवश्यकताओं व रुचियों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

3. विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रमः- यह पाठ्यक्रम सर्वाधिक प्रचलित है। पाठ्यक्रम संगठन का वह रूप है जिसमें प्रत्येक विषय को अलग स्थान दिया जाता है। प्रत्येक विषय के शिक्षण हेतु विशेष समय दिया जाता है। इसमें प्रत्येक विषय का अध्ययन विधार्थी एक निर्धारित रूप से अपनी उम्र के विभिन्न स्तरों पर कर सकते है।

4. रचनात्मकता का सिद्धांत:- पाठ्यक्रम के अन्तर्गत इस तरह के कार्यक्रमों को स्थान दिया जाए जिससे बालक की रचनात्मक एवं सृजनात्मक शक्ति का निर्माण हो सके । ऐसा पाठ्यक्रम जो कि वर्तमान एवं भविष्य की जरूरतों की पूर्ति करता है। अवश्य ही निश्चित सृजनात्मक कार्यक्रमों पर आधारित होता है।

5. कोर पाठ्यक्रम:- कोर पाठ्यक्रम का प्रचलन अमरीका के विधालयों में व्यापक स्तर पर हो रहा है । इसका मुख्य सिद्धांत सामाजिक दृष्टि के महत्वपूर्ण अनुभवों का समान रूप से सभी छात्र-छात्राओं को प्रदान कर , सामाजिक मूल्यों पर बल देना है।

6. जीवन सम्बन्धी तैयारी का सिद्धांत:- शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है बच्चों को जीवन के लिए जुटाना । पाठ्यक्रम में वे सभी कार्यक्रम सम्मिलित होने चाहिए , जिससे बच्चे बड़े हो जाने पर सामाजिक कार्यों में प्रभाव पूर्ण रूप से भाग ले सके।

7. प्रगतिशील सिद्धांत:- आज के बच्चे कल के आदर्श नागरिक है। अतः उनका शिक्षण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वे उन्नतीषील विचारों के व्यक्ति बन सके । शिक्षा उन्हें इस प्रकार के विचार व इच्छा-शक्ति प्रदान करें, जिससे वे अपने वातावरण को अपने अनुकूल बना ले ।

8. बहुमुखी विकास का सिद्धांत:- इस सिद्धांत के अनुसार विद्यार्थियों के लिए हर प्रकार की ज्ञान जुटाने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वे अपना मानसिक , शारीरिक ,नैतिक , संवेगात्मक एवं आध्यात्मिक विकास कर सके।

9. लचीला पाठ्यक्रम:- एक आदर्श पाठ्यक्रम में लचीलापन अवश्य होना चाहिए। ऐसा पाठ्यक्रम बालक की आयु, रुचि , जिज्ञासा एवं स्तरानुकूल होना चाहिए। संक्षेप में हम यह कह सकते है कि, पाठ्यक्रम न तो अधिक कठोर न ही अधिक सरल बल्कि यह लचीला होना चाहिए।

पाठ्यक्रम का महत्व

पाठ्यक्रम का शिक्षा क्षेत्र में अत्यधिक महत्व है पाठ्यक्रम के महत्व एवं उपयोगिता को निम्न रूप से समझा जा सकता है-

  1. पाठ्यक्रम की सहायता से बालक-बालिकाओं को सुयोग्य नागरिक बनाया जा सकता है।
  2. बालक के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास पाठ्यक्रम के माध्यम से ही संभव है।
  3. पाठ्यक्रम सामाजिक जीवन में सफलता पूर्वक जीवन व्यतीत करना सीखता है।
  4. पाठ्यक्रम शिक्षा का आधार है। इसके द्वारा शिक्षा के महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति की जाती है।
  5. अध्यापक पाठ्यक्रम के माध्यम से बालक-बालिकाओं के बौद्धिक ,नैतिक, शारीरिक , संवेगात्मक , आध्यात्मिक, सांस्कृतिक ,सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता है । इस प्रकार पाठ्यक्रम अध्यापक तथा छात्र दोनों को जोडता है।
  6. छात्र एवं छात्राएं नियमित रहकर कार्य करते है। छात्रों के लिए लक्ष्य निर्धारित होने से उनमें एकाग्रता आती है।
  7. पाठ्यक्रम विषयों के अतिरिक्त पाठ्यक्रम में विद्यालयों के सभी कार्यक्रमों के सम्बन्ध में भी कुछ न कुछ दिशा-निर्देशों अवश्य होते है।
  8. पाठ्यक्रम छात्र-छात्राओं में अपार संभावनाएं , क्षमताएं , योग्यताएं तथा पोषण आदि उत्पन्न करता है।
  9. छात्रों में आवश्यक राष्ट्रीय एकता , भावनात्मक एकता , संकीर्णता को दूर करना देशप्रेम तथा धर्मनिरपेक्षता आदि गुणों का निर्माण पाठ्यक्रम के माध्यम से किया जाता है।
  10. पाठ्यक्रम शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं छात्र-छात्राओं में आपसी ताल-मेल को सन्तुलित बनाये रखने तथा कक्षा-कक्ष में अच्छे वातावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण होता है।

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