राजनीति विज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं अध्ययन क्षेत्र

राजनीति विज्ञान का अर्थ

राजनीति विज्ञान का तात्पर्य एक ऐसी विज्ञान से होता है जो नगर राज्य से सम्बंधित, सुव्यवस्थित और क्रमबद्ध ज्ञान की जानकारी देता है । आज राजनीति विज्ञान राज्य के भूत वर्तमान और भविष्य के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों के साथ भी सम्बंधित हो गया है । राजनीति विज्ञान में राज्य, सरकार जैसे संगठनों का अध्ययन होता है तथा इसमें मानवीय जीवन के राजनीतिक पक्षों का भी अध्ययन होता है ।

जे.डब्लू गार्नर के अनुसार ‘‘राजनीति का प्रारम्भ और अंत राज्य के साथ होता है।’’ उसी तरह से आर.जी. गैटेल ने कहा है कि राजनीति ‘‘राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन है।’’ 

हैरोल्ड जे. लास्की ने कहा है कि राजनीति के अध्ययन का संबंध मनुष्य के जीवन एवं एक संगठित राज्य से संबंधित है। इसलिए, समाज विज्ञान के रूप में, राजनीति विज्ञान, समाज में रहने वाले व्यक्तियों के उस पहलू का वर्णन करता है जो उनके क्रियाकलापों और संगठनों से संबंधित है और जो राज्य द्वारा बनाये गए नियम एवं कानून के अंतर्गत शक्ति प्राप्त करना चाहता है तथा मतभेदों को सुलझाना चाहता है।

राजनीति विज्ञान का अर्थ

राजनीति विज्ञान अंग्रेजी के दो शब्दों ‘Political’ और ‘Science’ से मिलकर बना है । राजनीति विज्ञान का प्रथम शब्द ‘Political’ यूनानी भाषा के ‘Polis’ शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है-नगर-राज्य, दूसरे शब्द का अर्थ होता है- सुव्यवस्थित क्रमबद्ध् अध्ययन करना । दोनों शब्दों के अर्थ को सामान्य रूप में संयुक्त करते है तो राजनीति विज्ञान का तात्पर्य एक ऐसे विज्ञान से होता है जो नगर राज्य से सम्बंध्ति, सुव्यवस्थित और क्रमबद्ध् ज्ञान की जानकारी देता है । इस प्रकार शब्द की व्युत्पत्ति की दृष्टि से राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन है । अरस्तू को राजनीति विज्ञान का जनक माना जाता है ।

राजनीति विज्ञान की परिभाषा: परम्परागत दृष्टिकोण

परम्परागत दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को चार अर्थों में परिभाषित किया जाता है-
  1. राज्य के अध्ययन के रूप में
  2. सरकार के अध्ययन के रूप में
  3. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में
  4. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में

राजनीति विज्ञान की परिभाषा: आधुनिक दृष्टिकोण

राजनीति शास्त्र की नवीन परिभाषाओं के संदर्भ में इसका अध्ययन निम्न रूपों में किया जाता है -
  1. राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है।
  2. राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है।
  3. राजनीति शास्त्र राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है।
  4. राजनीति शास्त्र निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है।

राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का पर्याय इसकी विषय-वस्तु है, परन्तु राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के विषय-वस्तु पर राजनीतिक वैज्ञानिक एकमत नहीं है। सभ्यता, संस्कृति तथा विकासशीलता के कारण राजनीति विज्ञान का क्षेत्र परिवर्तनशील रहा है। इस प्रकार राज्य, सरकार और मानव तीनों ही राजनीति विज्ञान के अध्ययन की विषय वस्तु हैं। इन तीनों में से किसी एक के बिना भी राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को पूर्णत्व प्राप्त नहीं हो सकता। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में सम्मिलित विषय सामग्री है-
  1. राज्य का अध्ययन 
  2. सरकार का अध्ययन 
  3. मनुष्य का अध्ययन 
  4. संघों एवं संस्थाओं का अध्ययन 
  5. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं संबंधों का अध्ययन 
  6. वर्तमान राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन 

1. राज्य का अध्ययन 

राजनीति विज्ञान के अध्ययन का प्रमुख तत्व राज्य है, क्योंकि डॉ. गार्नर ने तो यहाँ तक लिखा है, ‘‘राजनीति विज्ञान के अध्ययन का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है।’’ प्रो. लास्की ने कहा है- ‘‘राजनीति विज्ञान के अध्ययन का संबंध संगठित राज्यों से संबंधित मानव-जीवन से है।’’ गिलक्राइस्ट ने लिखा है- ‘‘राज्य क्या है? राज्य क्या रहा है? और राज्य क्या होना चाहिए?’’ राजनीति विज्ञान यह बताता है। 

अत: स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान में राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों का ही अध्ययन किया जाता है, जिसका विवेचन निम्नवत् है-

1. राज्य का अतीत या ऐतिहासिक स्वरूप- राज्य के सही अध्ययन के लिए राज्य के अतीत या उसके ऐतिहासिक स्वरूप को जानना आवश्यक है, क्योंकि अतीत में राज्य को ‘नगर-राज्य’ कहा जाता था और राज्य में ईश्वर का अंश मानते हुए उसे ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। राजा की आज्ञा सर्वोपरि कानून थी। इस प्रकार राज्य के पास असीमित शक्तियाँ थीं, परन्तु धीरे-धीरे नगर राज्यों के आकार में वृद्धि होती गयी और राज्य संबंधी विचारधाराओं में भी परिवर्तन होता रहा। 

राज्य के अतीत के अध्ययन में राज्य की उत्पत्ति, उसके संगठन, उसके आधारभूत तत्वों, यूनानी शासन-व्यवस्था, प्रजातान्त्रिक विचारों का विकास, राजनीतिक क्रान्तियाँ, उनके कारण और परिणाम, राज्य के सिद्धांत, उद्देश्य एवं प्रभुसत्ता का ऐतिहासिक स्वरूप आदि सम्मिलित हैं और ये तत्व ही राजनीति विज्ञान के अध्ययन की विषय वस्तु है जिनका परिणाम राज्य का वर्तमान स्वरूप है।

2. राज्य का वर्तमान स्वरूप- राज्य का वर्तमान स्वरूप, उसके अतीत के क्रमिक विकास का ही परिणाम है, जो कि प्राचीन ‘नगर-राज्यों’ की सीमाओं में वृद्धि हो जाने के कारण ही संभव हो सका। उन्होंने ‘राष्ट्रीय राज्यों’ का रूप धारण कर लिया है और इससे भी अधिक अब तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना के आधार पर सम्पूर्ण विश्व के लिए ही एक राज्य अर्थात् ‘विश्व राज्य’ की कल्पना की जाने लगी है। इसीलिए विदेश नीति, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ एवं अन्र्तराष्ट्रीय सन्धि एवं समझौते भी राजनीति विज्ञान के अध्ययन की विषय वस्तु बन गये हैं। आधुनिक युग में राज्य को एक लोक-कल्याणकारी संस्था माना जाता है। अत: आज मानव-जीवन का को भी ऐसा पक्ष नहीं है, जो किसी न किसी रूप में राज्य के संपर्क में न आता हो। इसीलिए मानव व सामाजिक जीवन को सुखी बनाने और उसके सर्वांगीण विकास हेतु राज्य द्वारा किये गये कार्यों का अध्ययन व राजनीति विज्ञान के अध्ययन के क्षेत्र में सम्मिलित है।

3. राज्य की भविष्य या भावी स्वरूप- राज्य के अतीत के आधार पर वर्तमान के आधार पर राज्य के भावी आदर्श एवं कल्याणकारी स्वरूप की कल्पना की जाती है। इस प्रकार वर्तमान सदैव ही सुधारों का काल बना रहता है। अतीत एवं वर्तमान की त्रुटियों एवं असफलताओं के दुष्परिणाम के अनुभवों से भविष्य का पथ प्रशस्त होता है। इन अनुभवों के आधार पर ही राज्य के भावी आदर्श स्वरूप के निर्धारण में इस प्रकार की व्यवस्थाएँ करने का प्रयास किया जाता है कि अतीत औ वर्तमान की समस्त उपलब्धियाँ तो राज्य के आधार के रूप में बनी रहें, परन्तु त्रुटियों एवं असफलताओं की पुनरावृत्ति न हो। राज्य के अतीत और वर्तमान स्वरूप के अध्ययन के आधार पर ही विभिन्न राजनीतिक विचारकों द्वारा एक आदर्श राज्य के स्वरूप की भिन्न-भिन्न रूपरेखाएँ प्रस्तुत की ग हैं। इस प्रकार राजनीति विज्ञान राज्य के एक श्रेष्ठ, सुखद, कल्याणकारी एवं आदर्श स्वरूप की कल्पना करता है।
      उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन, राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों ही कालों से घनिष्ठ रूप में संबंधित है।

      2. सरकार का अध्ययन 

      राज्य के अध्ययन के साथ ही साथ राजनीति विज्ञान में राज्य के अभिन्न अंग सरकार क भी अध्ययन किया जाता है। प्राचीन काल में जहां निरंकुश राजतन्त्र थे, वहाँ आज लोकतान्त्रिक सरकारें हैं। इस समय राजा की आज्ञा ही सर्वोपरि कानून थी, परन्तु आज सरकार के तीनों अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) में शक्ति- पृथक्करण का सिद्धांत क्रियाशील है और राजा की आज्ञा कानून न होकर लोकतांत्रिक सरकारों की वास्तविक शक्ति जनता में निहित है।

      3. मनुष्य का अध्ययन 

      मनुष्य, राज्य की इकाई है। मनुष्यों के बिना राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती, अत: मनुष्य राजनीति विज्ञान के अध्ययन का प्रमुख तत्व है। मनुष्य का सर्वांगीण विकास एवं कल्याण करना ही राज्य का प्रमुख कर्तव्य हैं परन्तु जहाँ नागरिकों के प्रति राज्य के कर्तव्य होते है वहा राज्य के प्रति नागरिकों के भी कर्तव्य होते हैं। आदर्श नागरिक ही राज्य को आदर्श स्वरूप प्रदान कर सकते हैं और उसकी प्रगति में योगदान कर सकते हैं।

      4. संघों एवं संस्थाओं का अध्ययन 

      प्रत्येक राज्य में अनेक समाजोपयोगी संस्थाएं होती है, जो नागरिकों के उत्थान एवं विकास के लिए कार्य करती हैं। इन संस्थाओं में राज्य एक सर्वोच्च संस्था होती है और अन्य सभी संस्थाएँ राज्य द्वारा ही नियन्त्रित होती हैं।

      5. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं संबंधों का अध्ययन 

      आधुनिक युग में को भी राष्ट्र पूर्णत: स्वावलम्बी नहीं है। विश्व के समस्त राष्ट्र किसी न किसी न रूप में एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इस पारस्परिक निर्भरता के कारण ही आज एक राष्ट्र की घटना से अन्य राष्ट्र भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। इस प्रकार विश्व के विभिन्न राष्ट्रों की पारस्परिक निर्भरता ने उन्हें एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप में संबंध कर दिया है। यातायात एवं संचार-साधनों के माध्यम से आज समस्त राष्ट्र एक दूसरे के बहुत ही निकट आ गये हैं और उनमें परस्पर विभिन्न प्रकार के संबंध स्थापित हो गये हैं। अतएव विश्व के समस्त राष्ट्रों के पारस्परिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, राजनयिक एवं अन्य विभिन्न प्रकार के अंतराष्ट्रीय संबंध, राजनीति विज्ञान के अध्ययन के प्रमुख विषय बन गये हैं।

      6. वर्तमान राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन 

      वर्तमान राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन राजनीति विज्ञान का प्रमुख विषय है। प्रत्येक राष्ट्र में, चाहे वहाँ शासन प्रणाली किसी भी प्रकार की क्यों न हो, स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर की अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती ही रहती हैं। उदाहरणार्थ, भारत इस समय सम्प्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, एवं भाषावाद जैसी अनेक समस्याओं से ग्रसित है। इसी प्रकार विश्व के अन्य देश भी अपनी-अपनी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इस प्रकार, विभिन्न राष्ट्रों की स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की समस्त राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अध्ययन में सम्मिलित है।

      निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि अब राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में समुदाय, समाज, श्रमिक, संगठन, राजनीतिक दल, दबाव समूह और हित समूह आदि का अध्ययन भी सम्मिलित है, इसके साथ ही साथ आधुनिक व्यवहारवादी दृष्टिकोण की नूतन प्रवृत्तियों ने स्वतंत्रता, समानता और लोकमत जैसी नवीन अवधारणाओं तथा मानव-जीवन के अराजनीतिक पक्षों को भी उसकी विषय वस्तु में सम्मिलित करके राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को अत्यधिक व्यापक बना दिया है।

      वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए रॉबर्ट ए. डहल ने लिखा है, ‘‘राजनीति आज मानवीय अस्तित्व का एक अपरिहार्य तत्व बन चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में किसी न किसी प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था से संबंद्ध होता है।’’

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