रंग के प्रकार प्राथमिक रंग द्वितीयक रंग तथा पूरक रंग

रंग वस्तुतः प्रकाश का गुण है जो नेत्रों के द्वारा मस्तिष्क के द्वारा अनुभव किया जाता है। प्रकाश की किरणें जब किसी वस्तु के ऊपर पडती हैं तो वह वस्तु प्रकाश के कुछ भाग को आत्मसात् कर परावर्तित (प्रतिबिम्बित) करती हैं आरै वह प्रतिबिम्ब हमें रगं के रूप में दिखाई देता है। इसे इन्द्रधनुष के उदाहरण से भी समझा जा सकता है जहाँ प्रकाश की किरणें विबग्यारे, बैगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी एवं लाल रंगों की आभाओं में दिखाई देते हैं इसे त्रिकोण शीशे के द्वारा भी समझा जा सकता है।

रंग के भौतिक गुण

प्रत्येक रंग के कुछ भौतिक गुण होते हैं, जिन्हें निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
  1. रंगत
  2. मान
  3. प्रबलता
  4. हल्की रंगत
  5. गहरी रंगत
रंग के प्रकार

1. रंगत - रंगों का स्वभाव रंगत कहलाता है। ‘रंगत’ रंग का वह गुण होता है जिसके द्वारा हम लाल, पीले व नीले के बीच का भेद समझते है।

2. मान - मान रंगत में हल्केपन व गहरेपन का सूचक है। इसे रंगों का गहरापन व हल्कापन भी कहते हैं। किसी भी रंग में काला रंग मिलाने से गहरा तथा श्वेत रंग मिलाने से हल्का प्रभाव प्राप्त होता है। प्रकाश से लेकर अन्धकार तक सफेद व काले रंग के अनेक मिश्रण हो सकते है। इनके मिश्रण से रंगों के मान को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। यही श्वेत व काले रंग के विभिन्न मान कहलाते हैं।

3. प्रबलता - रंगों की प्रबलता का अभिप्राय प्रायः चटकदार रंगों से होता है। रंगों में चटकपन शुद्धता के कारण भी हो सकता है और किन्हीं रंगों के मिश्रण द्वारा भी अर्थात जिन रंगों में चटकपन हो या जिन रंगों के मिश्रण से रंगों में तेजपन आ जाए, उन रंगों का यह गुण प्रबलता कहलाती है।

4. हल्की रंगत - किसी भी रंग में श्वेत रंग मिलाने से उस रंग का हल्का रंग बनता है। इसे उक्त रंग के मान का बढ़ना कहते हैं या उक्त रंग की आभा कहते है। किसी एक रंग के उपवर्ण जिससे उसके हल्के-गहरेपन का आभास होता है।

5. गहरी रंगत - किसी भी रंग में काला रंग मिलाने से गहरा रंग बनता है। इसे उक्त रंग छाया कहते हैं तथा यह उक्त रंग के मान का घटना कहलाता है। इससे वस्तुओं में ठोस पन या धुँधलापन का प्रभाव उत्पन्न होता है।

रंग के प्रकार

1. प्राथमिक रंग - प्राथमिक रंग तीन होते हैं - लाल, पीला और नीला। ये मौलिक रंग द्रव्य होते है। ये किन्हीं अन्य रंगों के मिश्रण से नहीं बनते बल्कि इनके मिश्रण से अन्य रंग बनते हैं।

2. द्वितीयक रंग - किन्हीं दो प्राथमिक रंगों को मिलाकर प्रायः तीन द्वितीयक रंग बनते हैं। यह रंग होते हैं - नारंगी, बैंगनी और हरा। इन्हें हम ‘‘द्वितीय श्रेणी के रंग कहते हैं।

        पीला + लाल = नारंगी
        लाल + नीला = बैंगनी
        नीला + पीला = हरा

3. समीपवर्ती या तृतीयक रंग - द्वितीय श्रेणी के दो रंगों के मिश्रण से जो रंग तैयार होते हैं। उन्हें हम समीपवर्ती या तृतीयक रंग कहते हैं।

        नारंगी + बैंगनी = तृतीयक रंग
        बैंगनी + हरा = तृतीयक रंग
        हरा + नारंगी = तृतीयक रंग

समीपवर्ती या तृतीयक रंग

4. पूरक या विरोधी रंग - वर्ण-क्रम में एक दूसरे के ठीक सामने आने वाली रंगते एक-दूसरे की विरोधी रंगते होती हैं अथवा किन्हीं भी दो प्रमुख रंगतों को मिला दिया जाये तो इससे प्राप्त द्वितीयक रंगत शेष बची हुई मुख्य रंगत की विरोधी रंगत होती है। जैसे - लाल का विरोधी या पूरक है - हरा, नारंगी का पूरक है नीला और बैंगनी का पूरक है पीला।

5. अवर्णीय रंग - श्याम एवं श्वेत को अवर्णीय रंग माना जाता है। लेकिन किसी भी रंगत की तानों के लिए दो रंग महत्वपूर्ण होते हैं।

6. उष्ण तथा शीतल रंग - प्रकाश के प्रभाव से जब हम रंगों को देखते हैं। तब उत्तेजना के विचार से कुछ रंगों में उष्णता का प्रभाव और कुछ रंगों में शीतलता का प्रभाव उत्पन्न होता है। चित्र में उष्ण रंगों से वस्तु निकट व शीतल रंगों से वस्तु के दूर होने का आभास होता है, जो रंगों से वस्तु के दूर होने का आभास होता है। जो रंग सूर्य के आस-पास वाले रगंत के होते है वे उष्ण स्वभाव के और जो रंग प्राकृतिक सुन्दरता जैसे पेड़-पौधे, सागर-आकाश के सम्बद्ध होते हैं वे शीतल स्वभाव वाले होते हैं।
  1. उष्ण रंग - लाल, पीला, नारंगी या इनके संयोग से बने रंग उष्ण स्वभाव वाले हैं।
  2. शीतल रंग - नीला, हरा या इनके संयोग से बने रंग शीत (ठण्ड) स्वभाव वाले होते हैं।

उष्ण तथा शीतल रंग


7. उदासीन रंग - श्वेत, काला या इनके मिश्रण से बने रंग उदासीन रंग कहलाते हैं।

रंगों की विशेषताएं और प्रभाव

रंग दृष्यात्मक अनुभूति का महत्वपूर्ण पक्ष होता है। यह मानव के मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हैं। रंगों का अपना प्रतीकात्मक व मनोवैज्ञानिक अर्थ भी होता हैं। 

1. लाल - यह सर्वाधिक उत्तेजित करने वाला रंग है। इस रंग से सक्रियता एवं आक्रमणता प्रकट होती है। यह रंग क्रोध, प्रेम, श्रृंगार व वीरता को भी प्रकट करता है। 

2. पीला - पीला रंग ऊर्जा प्रदान करने वाला आकर्षक रंग है। यह मानसिक सक्रियता को बढ़ाने वाला है। इससे प्रकाष, दिव्यता, प्रोत्साहन, आशा एवं सन्तुष्टि आदि प्रकट होती है। 

3. नीला - नीला रंग शान्ति को प्रकट करने वाला होता है। यह शीतलता व एकाग्रता प्रदान करता है। इससे आशा, लगन, आनन्द, विशालता, ईमानदारी, मधुरता, निष्क्रियता, विस्तार, अनन्तता, विश्वास, आत्मीयता एवं सद्भाव आदि प्रकट होता है। 

4. हरा - यह रंग ताजगी का एहसास कराने वाला है और मन को सुख की अनुभूति प्रदान करता है। इससे हरियाली प्रकट होती है। यह रंग सौन्दर्य, माधुर्य, सुरक्षा, विश्राम आदि को प्रकट करता है। 

5. बैंगनी - यह रंग राजसी वैभव का प्रतीक है। इससे सम्मान, रहस्य, समृद्धि, प्रभावशीलता, एष्े वयर्, श्रेष्ठता, नाटकीय एवं वीरता आदि प्रकट होती है। इस रंग में लाल एवं नील े रंग के मिश्रित प्रभाव विद्यमान रहते हैं। 

6. नारंगी - नारंगी रंग अध्यात्मिकता का सूचक है। यह प्रेरणादायक है और ज्ञान प्रदान करता है। यह अत्यधिक क्रियाशील है तथा चित्त को शान्ति प्रदान करता है। इस रंग से वीरता, सन्यास, वैराग्य, दर्शन, ज्ञान एवं गर्व आदि प्रकट होते हैं। 

7. सफेद - सफेद रंग शान्ति, शुद्धता, पवित्रता एवं सत्य का प्रतीक है। यह प्रकाश युक्त हल्का तथा कोमल है तथा शुद्ध रंगों की श्रेणी में आता है। 

8. काला - काला रंग गम्भीरता एवं एकान्तवास का प्रतीक है। यह शुद्ध रंगों की श्रेणी में आता है। इससे भय, शोक, आतंक, अवसाद, अन्धकार एवं विश्वासघात आदि प्रभाव उत्पन्न होते हैं। 

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