समस्या समाधान विधि के गुण और दोष

समस्या समाधान विधि विज्ञान शिक्षण की महत्वपूर्ण विधि है। इसे वैज्ञानिक विधि के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि में विद्यार्थियों के समक्ष किसी समस्या को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है जिससे वे उद्देश्यपूर्ण गहन चिन्तन कर सकें तथा अपने पूर्व ज्ञान व अनुभवों के आधार पर समस्या समाधान सम्बन्धी विकल्प प्रस्तुत कर सकें। इस कार्य में अध्यापक उनकी सहायता करता है। विद्यार्थी प्रयोग एवं अनुभव द्वारा विकल्पों की पुष्टि करके समस्या का समाधान करने का प्रयत्न करते हैं। समस्या समाधान विधि के मुख्य चरण हैं- समस्या को महसूस करना, समस्या को परिभाषित करना, समस्या का विश्लेषण, उपयुक्त आंकड़ों का संकलन, परिकल्पनाओं का निर्माण व परीक्षण, निष्कर्ष निकालना आदि।

समस्या समाधान विधि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में, वैज्ञानिक विधि से कार्य करने का प्रशिक्षण देने में, दैनिक जीवन से संबंधित समस्याओं के समाधान में और अध्यापक-विद्यार्थी मधुर संबंधों के निर्माण में विशेष रूप से सहायक है। यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है और इसमें अध्यापक का कार्य अपेक्षाकृत कम हो जाता है। परन्तु यह विधि वर्तमान भारतीय शिक्षण परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है। इसके मुख्य कारण हमारे विद्यालयों में संसाधनों का अभाव, सुयोग्य शिक्षकों की अनुपलब्धता, पाठ्यक्रम की कमियां, विद्यार्थियों से अत्यधिक अपेक्षा आदि हैं।

समस्या समाधान विधि के चरण 

समस्या समाधान विधि के चरण हैं-
  1. समस्या को महसूस करना, 
  2. समस्या को परिभाषित करना, 
  3. समस्या का विश्लेषण,
  4. उपयुक्त आंकड़ों का संकलन, 
  5. परिकल्पनाओं का निर्माण व परीक्षण, 
  6. निष्कर्ष निकालना आदि।
शिक्षण की इस विधि में विद्यार्थियों को समस्या को हल करने का प्रशिक्षण दिया जाता है विद्यार्थियों के समक्ष एक समस्या के शिक्षक द्वारा रखा जाता है जिसे विद्यार्थी पूर्व ज्ञान के आधार पर हल करने की कोशिश करते है। उन्हें यह एहसास होता है कि वो समस्या का हल ढूंढ़ रहें है। उद्देश्य प्राप्ति में महसूस की बाधाएं समस्या कहलाती हैं।

योकाम एवं सिक्पसन के अनुसार ‘‘किसी परिस्थिति में एक समस्या उत्पन्न होती है जब उसे करते समय कठिनाई महसूस होती है। ऐसी समस्या वास्तविकता में मौजूद रहती है और उसकी पहचान विधारक/चिन्तक द्वारा की जाती है। यह समस्या पूर्ण रूप से मानसिक या फिर शारीरिक हो सकती है और इसमें आॅंकड़ों को निकाला जाता है। हालांकि सबसे अलग बात समस्या की यह होती है कि वो विचारक को प्रभावित करता है।’’

उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि समस्या समाधान करते समय या समस्या का हल ढूंढ़ते हुए विचारक (विद्यार्थी) आने वाली कठिनाईयों को पहचानता जाता है और वो समस्या से और ज्यादा प्रभावित होकर उसका हल निकालने का प्रयास करता है। क्योंकि गणित विषय समस्याओं पर आधारित है। अतः समस्या समाधान में परीक्षण अति महत्वपूर्ण है।

1. समस्या की पहचान एवं दिए गए तथ्यों तथा उनके संबंधों को समझना - समस्या निवारण विधि का यह पहला पद है जिसमें एक शिक्षक समस्या विद्यार्थियों के समक्ष रखता है और उन्हें पर्याप्त समय देता है जिससे कि वो समस्या की पहचान कर सकें और साथ ही साथ समस्या में क्या, क्यों और कैसे का बोध कर सकें।

2. समस्या का विश्लेषण - समस्या का विश्लेषण करने के लिए शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों से प्रश्नोत्तर माध्यम से यह समझाने का प्रयास करना चाहिए कि समस्या के अंतर्गत क्या दिया है ओर उन दिये हुए तथ्यों के आधार पर क्या निकाला जाता है। इस पद से छात्र यह समझ सकेंगे कि कौन सा तथ्य अनावश्यक है और कौन - सा आवश्यक है?

3. सम्भावित हल खोजना - समस्या के विश्लेषण के बाद आवश्यक तथ्यों के आधार पर विद्यार्थी यह समझ सकेगा कि गणित के कौन से नियम या सूत्र या सिद्धांत का प्रयोग आवश्यक है? इसी आधार पर वो निर्णय करता है कि किस गणितीय विधि का प्रयोग कर हल निकाला जा सकता है। विद्यार्थी अनुकूल विधि का चयन कर समस्या का संभावित हल निकालने का प्रयास करता है।

4. हल प्राप्ति के लिए सही गणना करना - शिक्षक को यह देखना जरूरी हो जाता है कि समस्या की हल प्राप्ती करते समय विद्यार्थी गणना में कोई भूल तो नहीं कर रहे ? शिक्षक को चाहिए कि वो विद्यार्थियों को त्रुटीहीन एवं शीघ्रता से गणना करने के लिए प्रेरित करे। प्रायः यह देखा जाता है क छात्र गणित संक्रियाएॅ दशमलव के गुणा- भाग करने में गलतियाॅ करते है। ऐसी स्थिति में चाहिए कि शिक्षक उन्हें सही गणना करने का अभ्यास कराए।

5. समस्या का हल ज्ञात कराना एवं स्पष्टीकरण - गणित में हम बिना स्पष्टीकरण के परिणाम या हल को सही नहीं मानते। अतः विद्यार्थियों को ज्ञात किए गए हल को तर्कसंगत रूप से समस्या के साथ जोड़कर जाॅचना चाहिए।

समस्या निवारण विधि के गुण

  1. यह विधि विद्यार्थी को समस्या निवारण के लिए तैयार करती है। इस तरह गणित समस्या निवारण जीवन में आने वाली समस्याओं को समझने और निवारण करने में सहायक होता है।
  2. इस विधि से विद्यार्थियों में चिन्तन, तर्क एवं कल्पना की प्रेरणा मिलती है।
  3. यह विधि विद्यार्थियों में स्वतंत्र कार्य करने की क्षमता और पहल करने की आदतों, का विकास करती है।
  4. यह विधि विद्यार्थियों को बौद्धिक जिज्ञासा के लिए प्रेरित करती है एवं अधिक प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है।
  5. यह स्व अध्ययन आदत का विकास करने में सहायक है।
  6. यह विधि करके सीखने पर आधारित होती है। इसलिए अधिगम प्रभावशाली होता है।
  7. शिक्षक विद्यार्थी मिलकर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में भाग लेते है। जिसमें शिक्षक विद्यार्थियों की शंका को दूर कर, सही हल प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन देते है।
  8. इस विधि से धैर्य, सहयोग आत्मविश्वास आदि जैसे गुणों का विकास होता है।

समस्या निवारण विधि के दोष

  1. यह विधि में शिक्षण धीमी गति से चलता है। बोध प्रश्न समस्या समाधान विधि के सोपान लिखिए। 
  2. यह विधि गणित के सभी शीर्षकों के लिए उपयुक्त नहीं है।
  3. कम उम्र के विद्यार्थियों या छोटी कक्षा के विद्यार्थियों में परिपक्वता न होने के कारण यह विधि अधिक में परिपक्वता न होने के कारण यह विधि अधिक उपयोगी एवं प्रभावी नहीं रहती।
  4. एक प्रशिक्षित शिक्षक ही इस विधि को प्रभावशाली रूप से उपयोग कर सकता है। औसत शिक्षक इस विधि का उपयोग करने में कठिनाई महसूस करते है।
  5. इस विधि की आवश्यकता के अनुरूप विषयवस्तु का संगठन एक कठिन कार्य है।
  6. इस विधि की उपयुक्त पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध नहीं है।
सन्दर्भ -
  1. भूषण, शैलेन्द्र. - ‘जीव विज्ञान शिक्षण’, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, 1989.
  2. कुलश्रेष्ठ, एस.पी - ‘जीव विज्ञान शिक्षण’, लायल बुक डिपो, मेरठ, 1993.

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