सार्वजनिक व्यय क्या है सार्वजनिक व्यय के महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या है?

सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक प्राधिकरणों अर्थात् केंन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय निकायों द्वारा किए जाने वाले उस व्यय से है जिन्हें वे लोगों की उन सामूहिक आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु करते हैं, जिन्हें लोग व्यक्तिगत रूप से संतुष्टि नहीं कर सकते। ये व्यय नागरिकों की सुरक्षा तथा उनके कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए होते हैं। अन्य शब्दों में, सार्वजनिक व्यय से अभिप्राय उन सब खर्चो से है जिन्हें किसी देश की केन्द्रीय, राज्य तथा स्थानीय सरकारें अपने प्रशासन, सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास तथा अन्य देशों की सहायता के लिए करती है।

सार्वजनिक व्यय सरकार के हाथों में एक ऐसा हथियार है जिससे वह आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। इसलिए इसका प्रयोग उचित प्रकार से किया जाना चाहिए जो कि स्वयं एक चुनौती के समान है।

सार्वजनिक व्यय क्या है 

सार्वजनिक व्यय सरकारी अधिकारियों अथवा सार्वजनिक सत्ताधारियों द्वारा किये जाने वाले व्यय को कहते हैं। सार्वजनिक अधिकारियों के अन्तर्गत केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों का समावेश होता है। यह उन व्ययों का सूचक हे जो प्रशासन के द्वारा देश के नागरिकों की भलाई अर्थात देश के नागरिकों की सामूहिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए अथवा उनके आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण की वृद्धि के लिए किया जाता है।

वर्तमान समय में सरकारी हस्तक्षेप प्रगतिशील और कल्याणकारी राज्यों की निशानी है। आज राज्य का प्रवेश आर्थिक क्षेत्र में हो चुका हे। परिणामस्वरूप सार्वजनिक व्यय में लगातार वृद्धि हो रही हे।

सार्वजनिक व्यय के महत्वपूर्ण सिद्धांत

अर्थशास्त्रियों ने सार्वजनिक व्यय से अधिकतम लाभ प्राप्त करने तथा इसे उचित ढ़ग से व्यय करने के लिए कई  सामान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। सार्वजनिक व्यय के महत्वपूर्ण सिद्धांत निम्नलिखित है:

1- लाभ का सिद्धांत: सार्वजनिक व्यय इस प्रकार का हो जिससे महत्वपूर्ण सामाजिक लाभ प्राप्त हो, जैसे उत्पादन में वृद्धि, संपूर्ण समाज की बाहर आक्रमण तथा आंतरिक अशांति से रक्षा करना इत्यादि।

2- मितव्ययता का सिद्धांत: इसका अर्थ है फिजूलखर्ची तथा व्यर्थ के व्यय से बचना चाहिए। सार्वजनिक व्यय कुशल और उत्पादक होना चाहिए।

3- स्वीकृति का सिद्धांत: इसके अनुसार खर्च करने के लिए उच्च प्राधिकरण से अनुमति लेना आवश्यक है। दूसरों शब्दों में कोई  भी सार्वजनिक व्यय बिना उपयुक्त अनुमति के नहीं होगा।

4- आधिक्य का सिद्धांत: इसका अभिप्राय है कि सरकार को घाटे से बचना चाहिए और आधिक्य का बजट बनाना चाहिए। उन्हें एक साधारण व्यक्ति की तरह आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए।

5- लोच का सिद्धांत: इसका अर्थ है कि सरकार की व्यय नीति में लोच होनी चाहिए अर्थात् देश की आवश्यकताओं के अनुसार सार्वजनिक व्यय के आकार और दिशा में परिवर्तन संभव हो।

6- उत्पादकता का सिद्धांत: इसका अभिप्राय है कि सार्वजनिक व्यय से देश के उत्पादन को बढ़ावा मिले। इसका अभिप्राय यह है कि देश के सार्वजनिक व्यय का अर्थात् ज्यादा भाग उत्पादन और विकास कार्यों पर आवंटित किया जाए।

7- समान वितरण का सिद्धांत: इसका अर्थ है कि सार्वजनिक व्यय इस प्रकार हो कि संपत्ति और आय का वितरण समान हो। जिन देशों में गंभीर असमानता की स्थिति है, वहां पर इसका विशेष महत्व है।

8- निश्चितता का सिद्धांत: सार्वजनिक व्यय जिन क्षेत्रों में तथा जिस भाग में किया जाना है वह निश्चित हो जाना चाहिए ताकि विकास के कामों को ठीक ढंग से चलाया जा सके।

9- समन्वय का सिद्धांत: सार्वजनिक व्यय के सम्बन्ध में यह भी निश्चित हो जाना चाहिए कि केन्द्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों को कौन-कौन सी मदों पर कितनी मात्रा में खर्च करना है। इस प्रकार उचित समन्वय स्थापित होने के फलस्वरूप दोहरे खर्च की आशंका नहीं रहती।

सार्वजनिक व्यय के प्रभाव

प्रत्येक देश की आर्थिक क्रियाओं जैसे उत्पादन, उपभोग, वितरण, रोजगार, आर्थिक प्रगति तथा सामाजिक कल्याण पर सार्वजनिक व्यय का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक व्यय के मुख्य प्रभावों की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है:

1- उत्पादन पर सार्वजनिक व्यय के प्रभाव

सार्वजनिक व्यय नीति इस प्रकार निर्धारित की जाए कि सार्वजनिक व्यय से उत्पादन को बढ़ावा मिले। सार्वजनिक व्यय के प्रभाव तीन घटकों पर निर्भर करते हैं:
  1. रोजगार, लाभ, शिक्षा, चिकित्सा, सुविधाएं इत्यादि पर खर्च करने से लोगों की कार्य, बचत और निवेश करने की क्षमता प्रभावित होती है।
  2. पैंशन, भविष्य निधि, बीमारी, लाभ, बीमा इत्यादि की सुविधाएं देने से कार्य बचत और निवेश करने की इच्छा बढ़ती है।
  3. सार्वजनिक व्यय के लिए विशिष्ट क्षेत्रों या उद्योगों का चयन करना होगा जिससे अधिकतम राष्ट्रीय उत्पादन या लाभ मिले। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय इन सभी को बढ़ाने वाला होना चाहिए।

2- वितरण पर सार्वजनिक व्यय के प्रभाव

सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार तय करके संपत्ति का समान वितरण कर सकती है। अधिकांश पिछड़े देशों में धन की असमानता आम बात है। इसको दूर करने के लिए सरकार आंशिक रूप से कर प्रणाली का और आंशिक रूप से व्यय का सार्वजनिक प्रयोग करती है।

3- आर्थिक स्थिरता पर सार्वजनिक व्यय के प्रभाव

आर्थिक स्थिरता पर सार्वजनिक व्यय के प्रभावों का इस प्रकार से उल्लेख किया जा सकता है:
  1. बेरोजगारी को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार पूर्ण रोजगार की स्थिति को प्राप्त करें और बनाए रखे।
  2. मुद्रा स्फीति के दौरान इस प्रकार का सार्वजनिक व्यय करना चाहिए जिससे अल्प अवधि में पर्याप्त उत्पादन प्राप्त हो।
  3. मंदी के समय में इस प्रकार का सार्वजनिक व्यय हो कि निवेश में वृद्धि हो, जिससे उत्पादन बढ़े।
  4. आर्थिक वृद्धि पर सार्वजनिक व्यय का प्रभाव: सार्वजनिक व्यय इस प्रकार का होना चाहिए, जिससे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का विकास एक साथ में हो। विकासशील देशों में सार्वजनिक व्यय इस प्रकार का होना चाहिए जिससे क्षेत्रीय असमानताएं कम हो, सामाजिक उपरि पूंजी का विकास हो और शिक्षा और प्रशिक्षण बढ़े।
अन्त में, निष्कर्ष रुप में हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक व्यय सरकार के हाथों में एक ऐसा हथियार है जिससे वह आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। इसलिए इसका प्रयोग उचित प्रकार से किया जाना चाहिए जो कि स्चयं एक चुनौती के समान है।

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