श्रवण कौशल क्या है? श्रवण कौशल के मुख्य आधार

बोलने सुनने और सुनकर उसका अर्थ एवं भाव समझने की क्रिया को श्रवण कौशल कहा जाता है। श्रवण कौशल का सैद्धान्ति पक्ष ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत दिया जाता है। सामान्यतः कानों द्वारा जो ध्वनियाॅं ग्रहण की जाती है और मस्तिष्क द्वारा उनकी अनुभूति तथा प्रत्यक्षीकरण को श्रवण कहते है। मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं विचारों को सुनकर समझना। भाषा के संदर्भ में अर्थ बोध एवं भाव की प्रतीति सुनने के आवश्यक तत्व होते है। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति हमारे सामने अपने भाव एवं विचार मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है और हम उसे सुनकर यथा भाव एवं विचार समझते और ग्रहण करते है तो हमारी यह क्रिया सुनना अथवा श्रवण कहलाती है यह बात दूसरी है कि हम यथा भाव एवं विचार किस सीमा तक समझते और ग्रहण करते है। यह कई कारकों पर निर्भर करती है।

श्रवण कौशल के मुख्य आधार

श्रवण कौशल की सार्थकता के लिए कुछ आवश्यक आधार होते है। उन आधारों का उल्लेख निम्नलिखित वाक्यांे में किया गया है -
  1. सुनने वाले की श्रवण इन्द्रिया सामान्य एवं क्रियाशील हो।
  2. भाषा की ध्वनियों से शब्दों का बोध होना।
  3. सुनने वाला ध्वनियों के प्रति सजग हो और उन्हें समझने का प्रयास करता है।
  4. सुनने की रूचि में तत्परता एवं एकाग्रता हो।
  5. ध्वनियों से जो भाव एवं विचार सम्पे्रषित किये जा रहे है उन्हें श्रोता बोधगम्य कर सके।
  6. ध्वनियों के सााि बोलने वाले के हाव-भाव से भी उसकी अभिव्यक्ति का अनुमान लगाना चाहिए।
  7. वाचन की प्रभावशीलता को सुनने के आधार पर आकलन किया जाता है कि वक्ता जो कहना चाहता है श्रोता उसको शुद्ध रूप में बोधगम्य कर लेता है अथवा नहीं।

श्रवण कौशल का विकास

 मौखिक भाषा सुनकर उनके अर्थ एवं भाव समझने की क्रिया में निपुण करना ही श्रवण कौशल का विकास है। और इसके लिए आवश्यक है कि उरनमें सुनने के आवश्यक तत्वों का विकास किया जाए। यह कार्य एक दो दिन, माह अथवा वर्षों में नहीं किया जासकता, इसके लिए तो सतत् प्रयास की आवश्यकता होती है। जहाॅं तक मातृभाषा के संदर्भ में सुनने के कौशल के विकास का प्रश्न है। इसका कुछ विकास तो बच्चों में विद्यालयों में प्रवेश लेने से पहले हो चुका होता है। परन्तु उसकी अपनी सीमा होती है और यह सीमा बहुत सीमित होती है। वि़द्यालयों में बच्चों को मातृभाषा के सर्वमान्य रूप को सुनने और सुनकर उसका अर्थ एवं भाव समझने में दक्ष किया जाता है। इसके लिए हमें विद्यालयी शिक्षा के भिन्न भिन्न स्तरों पर विभिन्न कार्य करने पड़ते है।

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