वे वर्ण जो अन्य वर्णों की सहायता के बिना बोले जाते हैं वे स्वर कहलाते हैं। स्वर वर्ण निम्नलिखित हैं- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ - (11)
इनमें से आ (अ+अ), ई (इ+इ), तथा ऊ (उ+उ) दीर्घ स्वर कहलाते हैं और ए (अ+इ), ऐ (अ+ए), ओ (अ+उ), तथा औ (अ+ओ) संयुक्त स्वर कहलाते हैं।
स्वर किसे कहते हैं
वे अक्षर जिनके उच्चारण में ध्वनि फेफड़ों से अनुस्फुटित होकर कंठ से होती हुई। मुख-विवर के उच्चारण स्थानों को स्पर्श किये बिना द्वार से बाहर निकल जाती है, स्वर कहलाते हैं। स्वरों का उच्चारण किसी दूसरे अक्षर की सहायता के बिना होता है। इस प्रकार:- जो ध्वनियाॅ/अक्षर बिना किसी सहायता के उच्चरित हो सकती हैं और जिनके उच्चारण में हवा निकलने में कोई बाधा नहीं होती है, वे स्वर कहलाते हैं।
स्वर के प्रकार / वर्गीकरण
(1) मात्रा के आधार पर
हिन्दी में स्वरों की संख्या 11 है। मात्राओं की दृष्टि से स्वरों को तीन भागों में बांटा गया हैं।
- हृस्व स्वर
- दीर्घ स्वर
- प्लुत स्वर
1. हृस्व स्वर -जिन स्वरों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है उन्हें हृस्व स्वर कहते हैं। जैसे- अ, इ,उ ।
2. दीर्घ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता हैं उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, आॅ ।
3. प्लुत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दो मात्राओं के उच्चारण से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। इनका प्रयोग दूर से पुकारने के समय होता है इन स्वरों को लिखते समय अन्त में ३ का अंक बना देते है जैसे- ओइम, रेइ
(2) मुँह और नाक से हवा निकलने के आधार पर
- निरनुनासिक
- सानुनासिक
1. निरनुनासिक - जिन स्वरों के उच्चारण में हवा केवल मुंह से निकलती है, जैसे - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, आॅ।
2. सानुनासिक - जिन स्वरों का उच्चारण करते समय हवा नाक व मुख दोनांेे से निकलती है- अँ, अँा, इँ, उँ, ऊँ, एँ, ऐं, ओ, औं ।
- अनुराधा (2013), व्याकरण वाटिका, विकास पब्लिषिंग हाउस प्रा.लि. न्यू दिल्ली।
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