टेलर का वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत

एफ. डब्लू. टेलर (1856-1915) मिडवेल स्टील वक्र्स में कम समय में ही एक मशीनमैन से मुख्य अभियन्ता के पद तक पहुँचे (1878-1884)। उन्होंने यह जाना कि कर्मचारी अपनी क्षमता से कम कार्य कर रहे हैं तथा दोनों पक्षों प्रबंधकों एवं श्रमिकों की एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक सोच है। इसलिए विभिन्न प्रयोगों के आधार पर उन्होंने ‘‘वैज्ञानिक प्रबंध’’ को विकसित किया। उन्होंने अंगूठे के नियम को अपनाने के बजाय वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित नियमों पर बल दिया। इसलिए उन्हें ‘‘वैज्ञानिक प्रबंध का जनक’’ माना जाता है।

वैज्ञानिक प्रबंध ठीक से यह जानने की कला है कि आप अपने कर्मचारियों से क्या करवाना चाहते हैं तथा वे कैसे कार्य को सर्वोत्तम एवं न्यूनतम लागत पर करते हैं।

वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत

(1) विज्ञान, न कि अंगूठा टेक शासन : इस सिद्धांत के अनुसार निर्णय तथ्यों पर आधारित होने चाहिए न कि अंगूठा टेक नियमों पर अर्थात् संगठन में किये जाने वाले प्रत्येक कार्य, वैज्ञानिक जाँच पर आधारित होना चाहिए न कि अन्तर्दृष्टि व निजी विचार पर।

(2) मधुरता न कि विवाद : इस सिद्धांत के अनुसार प्रबंध एवं श्रमिकों में विश्वास एवं समझदारी होनी चाहिए। उन्हें एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करनी चाहिए जिससे वे एक टीम के रूप में कार्य कर सके।

(3) सहयोग न कि व्यक्तिवाद : यह सिद्धांत मधुरता, न कि विवाद का संशोधित रूप है। इसके अनुसार संगठन में श्रमिकों एवं प्रबंधकों के बीच सहयोग होना चाहिए जिससे कार्य का सरलता से किया जा सके।

(4) अधिकतम कार्यक्षमता एवं श्रमिकों का विकास : टेलर के अनुसार श्रमिकों का चयन कार्य की आवश्यकता के अनुसार, क्षमता एवं योग्यता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए तथा उनकी कार्यक्षमता एवं कुशलता बढ़ाने हेतु उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इससे कम्पनी एवं श्रमिकों की खुशहाली बढ़ेगी।

वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकें

(1) क्रियात्मक फौरमैनशिप : इसका उद्देश्य विशेषज्ञ फोरमैन नियुक्त करके श्रमिकों के पर्यवेक्षण की गुणवत्ता बढ़ाता है। उनके अनुसार नियोजन को निष्पादन से अलग रखना चाहिए तथा नियंत्रण हेतु आठ फोरमैन होने चाहिए। जिनमें से चार नियोजन विभाग तथा चार उत्पादन विभाग के अधीन होने चाहिए। इन सभी के द्वारा प्रत्येक श्रमिक का पर्यवेक्षण करना चाहिए जिससे श्रमिकों के कार्य की गुणवत्ता बढ़ सके।
  1. निर्देश काड क्लर्क-कार्य के साधारण अनुदेशों को देने के लिए उत्तरदायी है।
  2. कार्यक्रम / मार्ग क्लर्क-कार्य को करने के लिए चरणों के क्रम को निश्चित करता है।
  3. समय और लागत क्लर्क - कार्य को आरम्भ करने और पूरा करने के समय को निश्चित करता है।
  4. अनुशासक : व्यवस्थित और क्रमबद्ध ढंग से कार्य के निष्पादन के लिए उत्तरदायी है।
(1) उत्पादन विभाग
  1. गति नायक : कार्य के समय पर पूरा होने को सुनिश्चित करता है।
  2. टोली नायक : सभी मशीनों, उपकरणों और दूसरे संसाधनों की व्यवस्था करता है।
  3. मरम्मत नायक : मशीनों एवं उपकरणों को कार्य करने की स्थिति में रखता है।
  4. निरीक्षक : उत्पादन के गुणवत्ता नियंत्रण का निरीक्षण करता है।
(2) कार्य का मानकीकरण एवं सरलीकरण : कार्य के मानकीकरण का आशय मानक उपकरणों, विधियों, प्रक्रियाओं को अपनाने तथा आकार, प्रकार, गुण, वचन, मापों आदि को निर्धारित करने से है। इससे संसाधनों की बर्बादी कम होती है तथा कार्य की गुणवत्ता बढ़ती है। कार्य को उत्पाद की अनावश्यक विविधताओं को समाप्त करके सरल बनाया जा सकता है।

(3) विधि अध्ययन : यह एक कार्य को करने की विधियों से सम्बन्धित होता है। इसके अन्तर्गत उत्पादन की सम्पूर्ण प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है जिससे कार्य को करने की सर्वोत्तम विधि का पता लगाया जा सके।

(4) गति अध्ययन : इसके अन्तर्गत श्रमिकों की गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है ताकि अनावश्यक गतियों को कम करके समय की बर्बादी रुक जाए तथा कार्यक्षमता एवं उत्पादकता बढ़े।

(5) समय अध्ययन : यह तकनीक कार्य को करने में लगने वाले मानक समय का निर्धारण करती है। इसका उद्देश्य- श्रम लागत का अनुमान लगाना, वांछित श्रमिकों की संख्या का निर्धारण करना एवं उपयुक्त प्रेरणा योजना का निर्धारण करना है।

(6) थकान अध्ययन : इससे यह तय किया जाता है कि मध्यान्तर कितनी बार एवं कितने समय के लिए हो ताकि कर्मचारी उचित प्रकार से कार्य कर सके।

(7) विभेदात्मक कार्य मजदूरी प्रणाली : यह मजदूरी भुगतान की ऐसी विधि है जिसमें श्रमिकों को उनकी कार्यक्षमता के अनुसार भुगतान किया जाता है। मानक स्तर तक या अधिक कार्य करने वाले श्रमिकों को अधिक तथा मानक स्तर से कम कार्य करने वाले श्रमिकों को कम पारिश्रमिक मिलता है।

उदाहरण के लिए : मानक कार्य 10 इकाइयाँ मजदूरी दरें: रुपये 50 प्रति इकाई  जो 10 या ज्यादा इकाईयों का उत्पादन करें तथा रुपये 40 प्रति इकाई  जो 10 से कम इकाइयों का उत्पादन करें।

• श्रमिक A ने 11 इकाइयों का उत्पादन किया, उसे Rs. 550 मजदूरी प्राप्त होगी (11 x 50)

• श्रमिक B ने 9 इकाइयों का उत्पादन किया, उसे Rs. 360 मजदूरी प्राप्त होगी।

        (9 x 40 ) परिणामस्वरूप अकुशल मजदूर भी अधिक कार्य के लिए अभिप्रेरित होंगे।

(8) मानसिक क्रांति : इसके द्वारा श्रमिकों व प्रबन्धों की एक-दूसरे के प्रति सोच को बदलने पर जोर दिया गया है। जिससे संगठन में परस्पर विश्वास की भावना उत्पन्न हो सके तथा उत्पादन को बढ़ाया जा सके।

दोनों पक्षों को लाभ के बंटवारे की अपेक्षा लाभ में वृद्धि की बात सोचनी चाहिए। 

टेलर तथा फेयोल के सिद्धान्तों में अन्तर

टेलर और फेयोल के योगदान एक-दूसरे के पूरक हैं।

(1) टेलर ने मुख्य रूप से कार्य, श्रमिकों एवं पर्यवेक्षकों के सम्बन्ध में सुझाव दिये हैं, जबकि फेयोल ने प्रशासन या प्रबंधकों की कार्यक्षमता के बारे में सुझाव दिये हैं।

(2) टेलर ने कार्य एवं उपकरणों के मानकीकरण पर अधिक बल दिया है, जबकि फेयोल ने सामान्य प्रबनध के सिद्धान्तों तथा प्रबंधकों के कार्यों पर अधिक बल दिया है।

(3) टेलर ने ‘‘वैज्ञानिक प्रबंध’’ पदों की अभिव्यक्ति की है जबकि फेयोल ने ‘‘प्रशासन के सामान्य सिद्धान्तों’’ की अभिव्यक्ति की है।

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