ऊर्जा के वे स्रोत जैसे-जीवाश्म ईधन, कोयला जिन्हें दोबारा उत्पन्न किया जा सकता है, नवीनीकरण स्रोत कहलाते है। यह स्रोत निःशुल्क उपलब्ध हैं तथा वातावरण को भी प्रदूषित नहीं करते हैं जैसे- (1) फासिल ऊर्जा (2) जल ऊर्जा (3) पवन ऊर्जा (4) सौर ऊर्जा।
ऊर्जा के नवीनीकरण स्रोत
1. फासिल ऊर्जा-
यह जैव ऊर्जा होती है। समुद्र में अनेक ऐसे पेड़-पौधे हैं जिनसे जैव गैस बनायी जा सकती है और उसका उपयोग ईधन के रूप में सरलता से किया जा सकता है। समुद्री ऊर्जा के दोहन से अत्यधिक उपयोगी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस दिषा में फ्रांस में समुद्र तट पर सिथत लारेन्स एलर्जी स्टेशन एक उदाहरण है। भारत में भी इसके प्रयास चल रहे है। इसके संयंत्र काफी महंगे हैं। अतः पूर्णरूपेण इनका उपयोग नहीं हो पाता।
2. जल ऊर्जा-
पानी को ऊपर से गिरने पर उसमें गतिज ऊर्जा उत्पन्न होती है। वर्तमान में बहुत बड़े स्तर पर जल ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। इसके लिये बड़े-बडे़ बाॅध बनाये जाते है। बाॅध से पानी निकालकर टरबाइन को घुमाया जाता है। फलस्वरूप विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। भारत में इसकी क्षमता 1,00,000 मेगावाट है। भारत में भाखड़ा नंगल, कोसी एवं दामोदार घाटी आदि जल विद्युत परियोजनाएं हैं। राजस्थान में कोटा के समीप चम्बल नदी पर राणा प्रताप सागर और जवाहर सागर बाॅध बाॅधकर जल-विद्युत स्टेशन बनाये गये हैं। इसका उपयोग कल-कारखानों तथा सिंचाई एवं घरेलू उपयोग के कार्यों में किया जाता है। इस प्रकार ऊर्जा स्रोतों में इसका प्रयोग बहुत ही उपयोगी है।
3. पवन ऊर्जा-
जिन स्थानों पर तेज हवाएं चलती है, वहाॅ पर वायु शक्ति का प्रयोग हवा मिलें लगाकर किया जा सकता है। पवन चक्कियाॅं बहुत समय से प्रचलित हैं। तेज हवाओं के कारण पवन चक्की का पहिया तेजी से घूमता है। इस घूर्णन शक्ति का उपयोग पानी निकालने के लिये पम्प को चलाने तथा विद्युत उत्पादन में किया जाने लगा है। गुजरात एवं राजस्थान में डब्ल्यू पी-2 हवा मिलें बहुत से स्थानों पर पानी के पम्प चलाने के लिये लगायी गयी हैं। इसके निम्नलिखित उपयोग हैं-
- पवन ऊर्जा चक्कियों का उपयोग पानी निकालने के लिये पम्प को चलाने के रूप में किया जाता है।
- विद्युत उत्पादन में भी पवन ऊर्जा चक्कियों का उपयोग किया जाता है।
इस प्रकार ऊर्जा स्त्रोतांे में इसका भी बहुत उपयोग है।
4. सौर ऊर्जा-
सौर ऊर्जा के प्रत्यक्ष रूप ऊष्मा तथा प्रकाश हैं। पृथ्वी के लिये सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। सूर्य से प्रतिषत लगभग 3X1021 जूल ऊर्जा प्राप्त होती है जबकि प्रतिवर्ष हमारी ऊर्जा की आवश्यकता 3X1040 जूल है। सूर्य की ऊर्जा हमें निरन्तर नहीं मिल पाती तथा यह अत्याधिक विसरित होती है। सौर ऊर्जा वर्तमान में दो प्रकार से प्रयोग में आ रही है।
(1) सौर उष्मीय युक्तियाॅ- सौर विकिरणों का उपयोग कर ऊष्मा उत्पन्न करने की तकनीक बहुत समय से उपलब्ध है। सरलतम सौर ऊर्जा यन्त्र समतल प्लेट संग्राहक है। इनका उपयोग प्रायः पानी गर्म करने अथवा कमरे की हवा को गर्म करने के सौर यन्त्र में किया जाता है। आजकल समतल प्लेट संग्राहक का प्रयोग कर सौर चूल्हों (सौर कूकर) का निर्माण किया गया है। बड़े-बड़े सौर उपकरण समतल प्लेट संग्राहक प्रयुक्त करके बनाये गये हैं। कपड़ा मिलों, चिकित्सालयों एवं छात्रावासों आदि में पानी को गर्म करने के लिये सौर जल तापन यन्त्र प्रयोग किये जाते है। सौर ऊर्जा से जल पम्प बनाये गये हैं तथा समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाया जाने लगा है। सौर ऊर्जा की दक्षता बढ़े इसके लिये अनेक परियोजनाएं कार्यरत हैं।
सौर ऊर्जा के निम्नलिखित उपयोग है-
- सौर ऊर्जा का उपयोग पानी गर्म करने तथा सौलर कुकर के रूप में किया जाता है।
- सौर ऊर्जा का उपयोग जल पम्प बनाने में किया जाता है।
- सौर ऊर्जा का प्रयोग पानी को शुद्ध करने में किया जाता है।
(2) प्रकाश वोल्टीय उपयोग- इसका उपयोग सूर्य विकिरण से सीधे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। कुछ प्रकार के अर्द्ध चालक (सिलिकाॅन या जरमोनियम) केथोड़ो पर सूर्य विकिरण के प्रभाव से विद्युत वाहक बल या वोल्टता उत्पन्न हो जाती है। इससे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। गांवों में प्रकाश के लिये प्रकाश वोल्टीय फाइलों का उपयोग किया जाता है। कृत्रिम उपग्रहों पर ऊर्जा का स्रोत प्रकाश वोल्टीय सैलों का समूह है।
5. महासागरीय ऊर्जा -
महासागरीय ऊर्जा निम्नलिखित प्रकार की होती है-
(1) लहरों की ऊर्जा - इस प्रकार की ऊर्जा को समुद्री लहरों से प्राप्त किया जाता है। इसमे भी पर्यावरण प्रदूषण की कोई सम्भावना नही रहती। समुद्र से चलने वाली लहरों से सामान्य व्यय करने लायक ही ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। इस कार्य को समुद्री विकास केन्द्रीय विभाग के सहयोग से आई. आई. टी.के वेब इनर्जी ग्रुप ने सम्पन्न किया। 150 मेगावट शक्ति की इस परियोजना के कार्य को स्टेट हार्वर इन्जीनियरिंग विभाग केंद्रित सम्पन्न किया गया। इसकी प्रमुख समस्या यह है कि यह जल के विशाल संग्रह क्षेत्र में ही प्रभावी है। व्यापक रूप से सम्पूर्ण देष में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
(2) ज्वरीय ऊर्जा - ज्वरीय ऊर्जा का संबंध समुद्र के ज्वार के होता है। यह ज्वार के चढ़ने एवं उतरने के समय प्राप्त की जाती है। इस प्रकार की ऊर्जा के उत्पादन में चीन एवं रूप का प्रमुख स्थान है। विश्व के अनेक देशों ने इस ऊर्जा के उत्पादन से लाभ प्राप्त किया है। इस प्रकार की ऊर्जा प्रदूषित रहित और अधिक समय तक मिलने वाली होता है।
(3) समुद्री ताप ऊर्जा - इस प्रकार की ऊर्जा को समुद्री जल के ताप में अन्तर पाये जाने के परिणामस्वरूप प्राप्त किया जा सकता है। समुद्री जल की ऊपरी सतह का तापमान 270 c से 310c होता है, जबकि गहराई पर तापमान 50 c से 80 c तक होता है। इस अन्तर के कारण ही इस ऊर्जा का उत्पादन संभव होता है। इसका उपयोग प्रदूषण रहित एवं निरन्तर मिलने वाली ऊर्जा के रूप में होता है।