वर्ण एवं वर्णमाला का अर्थ

वर्ण - वे मूल ध्वनियां वर्ण कहलाती हैं, जिनके खंड न हो सकें। जैसे, पुस्तक में- प्+उ+स्+त्+अ+क्+अ- इन सात ध्वनियों में किसी का भी खंड नहीं हो सकता, अतः ये वर्ण हैं।

वर्णमाला - किसी भाषा के समस्त वर्ण-समूह को वर्णमाला कहा जाता है। हिंदी भाषा की वर्णमाला में जो वर्ण हैं, उन्हें स्वर और व्यंजन दो वर्ण-समूहों में विभाजित किया गया है।

वर्ण एवं वर्णमाला का अर्थ

भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। इसी ध्वनि को वर्ण कहते हैं। वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड न हों, जैसे - अ,ई, व, च, क, ख, त आदि।

इस प्रकार वर्ण हमारी उच्चारित भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इन्हीं इकाइयों को मिलाने पर शब्द बनता है और शब्दों के सार्थक समूह से वाक्य बनते हैं। उदाहरणार्थ - पानी वर्ण में प+अ+न+ई चार खंड हैं। किन्तु इस शब्द की दो ध्वनियां हैं। पा+नी चार खंडों के टुकड़े नहीं किये जा सकते, क्योंकि यह मूल ध्वनियां वर्ण हैं, अर्थात अक्षर है।

वर्णमाला: किसी भाषा के समस्त वर्णों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं।

हिन्दी की मानक वर्णमाला (स्वर, व्यंजन, मात्रा)

हिन्दी का वर्ण रूप ध्वनियों के सबसे प्रचलित और प्राचीन वर्गीकृत स्वर एवं व्यंजन में मिलता है।

1. स्वर: स्वर उन ध्वनियों को कहते हैं, जो स्वयं उच्चारित होते हैं। स्वर वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में वायु अबाग गति से मुख विवर से निकल जाती है। स्वर की अपनी स्वतंत्र सत्ता है, क्योंकि व्यंजन तो व्र की सहायता से बिना उच्चारित नहीं हो सकते। इस तरह स्वरों का उच्चारण अकेले और देर तक किया जा सकता है।

2. व्यंजन: व्यंजन उन ध्वनियों को कहते हैं जो स्वर की सहायता से उच्चारित होते हैं। अर्थात (1) व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में वायु अबाध गति से निकल पाती है। (2) इसे या तो पूर्ण रूप से अवरूद्ध होकर आगे बढ़ना पड़ता है या तो पूर्ण रूप से अवरूद्ध होकर आगे बढ़ना पड़ता है या संकीर्ण मार्ग से घर्षण करते हुए, निकलना पड़ता है। (3) या पिफर किसी भाग को कंपित करते हुए निकलना पड़ता है। इस प्रकार ध्वनि मार्ग में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध उपस्थित होता है।

हिन्दी की वर्णमाला में 13 (तेरह) स्वर हैं, हिन्दी स्वर - अ, आ, ई, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः

व्यंजन - हिन्दी स्वयंजनों की संख्या 33 (तैंतीस) है।
‘क‘ वर्ण (कंण्य) क, ख, ग, घ ड।
‘च‘वर्ण (तालण्य) च, छ, ज, झ, ´।
‘ट‘ वर्ग (मूर्धन्य) ट, ठ, ड, ढ, ण।
‘त‘ वर्ग (दन्तण्य) त, थ, द, ध, न।
‘प‘ वर्ग (औष्ठय) प, फ, ब, भ, म।
अंतस्य: वर्ग य, र, ल, व
उष्म वर्ग श, ष, स।
प्राण - ह्
इसके अतिरिक्त वर्ग है -
अनुस्वार (.), चन्द्र बिन्दु ( ँँँ) विसर्ग (ः)
संयुक्त वर्ग - क्ष, त्र, ज्ञ, श्र (क् + ष) (त् + र) (ग + य)
हल या हलन्त चिन्ह (् ् ) सभी व्यंजन वर्णों में ‘ऊ‘ स्वर का प्रयोग होता है जैसे क+ऊ = क। जब हमें स्वर रहित व्यंजन का प्रयोग करना होता है, अर्थात स्वर वर्ग से व्यंजन ध्वनि को अलग करना होता है, तो उसके नीचे हलन्त लगाया जाता है।

3. मात्रा: किसी भी व्र के उच्चारण में लगने वाले समय की नाम को मात्रा कहते हैं। हिन्दी में हस्व व दीर्घ (प्लुत) एवं ह्स्वार्ध का प्रयोग होता है। मात्राएं इस प्रकार हैं - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
  1. ह्स्व - ये मूल स्वर हैं। इनके उच्चारण में एक मात्रा का समय अर्थात सबसे कम समय लगता है। उदाहरण अ, इ, उ
  2. दीर्घ व्र - जिनके उच्चारण में दो मात्राओं का या अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं - जैसे आ, ई, ऊ,, ए ऐ, ओ, औ ये स्वतंत्र ध्वनियां हैं। इसमें संयुक्त ध्वनि का प्रयोग भी होता है जैसे भइया, नइया, कऊवा।
  3. प्लुत - जो दीर्घ से कुछ दीर्घ हो, अर्थात जिनके उच्चारण में तिगुना समय लगता है। अतएव इसे त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं, जैसे आअम् में ओ के बाद अ प्लूत स्वर है।
  4.  हृस्वार्ध - जो हृस्व स्वर से भी कम समय में उच्चारित हो, जैसे कुछ लोगों के उच्चारण में ब्रह्म, विश्व, स्त्री, स्टूल में हल्की सी सुनाई देने वाली ध्वनि होती है।
संदर्भ - 
  1. डाॅ. भोलानाथ तिवारी - भाषा विज्ञान - 2002 - प्रकाशक किताब महल, 22 ए सरोजनी नायडू मार्ग इलाहाबाद।
  2. डाॅ. बदरीनाथ कपूर - परिष्कृत हिन्दी व्याकरण - 2006 - प्रकाशन प्रभात प्रकाशन 4/19 आसफ अली रोड, नई दिल्ली।
  3. डाॅ. कपिलदेव द्विवेदी - भाषा विज्ञान एवं भाषा शास्त्र - 1992 - विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी।
  4. डाॅ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री - भाषा शास्त्र तथा हिन्दी भाषा की रूपरेखा - 1990 - विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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