विश्लेषणात्मक एवं संश्लेषणात्मक, वो अलग - अलग विधि है। इसलिए इन्हें अलग - अलग समझने की आवश्यकता है।
विश्लेषण विधि
विश्लेषण शब्द का अर्थ है चीजों को छोटे छोटे हिस्सों में तोड़ना इसमें हम समस्या को हल करने के लिए उसे सरल हिस्सों में तोड़ देते है। इस विधि में हम अज्ञात से ज्ञातकी ओर अग्रसर होते हैं या कह सकते है कि हम निष्कर्ष से कल्पनाकी ओर जाते हैं। इस विधि में विद्यार्थी समस्या के हल के अंत से आरंभ करके समस्या के हल के आरंभ तक पहुंचता है।
विश्लेषण विधि के गुण
- यह विधि विद्यार्थियों की शंका का समाधान करते हुए विषय समझने में सहायता करती है।
- इस विधि में विद्यार्थी रूचि लेते है क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक है।
- यह सोचने समझने की शक्ति एवं जिज्ञासा का विकास करती है।
- यह विद्यार्थियों को रटने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती ।
- यह विद्यार्थियों में मौलिकता, आत्मविश्वास, और सृजनात्मकता का विकास करती है।
- यह विधि बोझिल और उबाऊ नहीं लगती।
- इस विधि में एक क्रमवार कड़ी बनी रहती है क्योंकि हर पद के अपने तर्क होते है।
- यह विधि विद्यार्थियों में खोजी एवं अन्वेषण संबंधी स्वभाव की वृद्धि करती है क्योंकि यह खोज पर आधारित होती है।
विश्लेषण विधि के दोष
- यह एक लम्बी विधि है ओर अधिक समय लेती है।
- इस विधि से विद्यार्थियों की निपुणता, गति और काम करने की शक्ति नहीं बढ़ाई जा सकती ।
- गणित के सारे शीर्षकों को इस विधि से प्रभावशाली ढंग से नहीं पढ़ाया जा सकता।
- अभ्यास के लिए यह विधि लाभकारी नहीं होती क्योंकि यह समस्या के हल पर आधारित होती है।
संश्लेषण विधि
यह विधि विश्लेषण विधि के विपरीत है और इसमें ज्ञात से अज्ञात की ओर जाते हैं। संश्लेषण का अर्थ है दो अलग खण्डों को फिर से जोड़ना। यह विधि-दिया हुआ से आरंभ होकर जो सिद्ध करना है उसकी तरफ बढ़ती है। दी हुई परिस्थितियों या तथ्यों को जोड़ना होता हैं और इस तरह जुड़े हुए तथ्यों हमें वहां क पहुंचाते है जहां से अज्ञात जानकारी सही हो जाती है और निष्कर्ष निकल आता है।
संश्लेषण विधि के गुण
- यह विधि अभ्यास के लिए उपयोगी है।
- यह विधि सरल एवं स्वाभाविक हैं। इसलिए इस विधि में कमजोर छात्र भी लाभान्वित होते हैं।
- इस विधि में समय और शक्ति की बचत होती है।
- यह विधि समस्याओं के हल को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करती है और यही कारण है कि विद्यार्थी सरलता से समझ पाते हैं।
- इस विधि में हम उन तथ्यों को पेश करते हैं जो कि पहले ही खोज जा चुके हैं। इसलिए यह विधि विचारों की उत्पत्ति है।
- यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है क्योंकि यह हमें ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाती है।
संश्लेषण विधि के दोष
- इस विधि द्वारा विद्यार्थियों में मौलिकता और नए तथ्यों को खोजने की भावना का विकास नहीं हो पाता।
- यह विधि विद्यार्थियों के मन में कई शंकाए उतपन्न करती है और उसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं देती ।
- इस विधि में क्रमवार चलने पर भी कई बार ‘‘कैसे हुआ’’ अनुत्तरित रहता है।
- क्योंकि यह विधि केवल निर्देश देने वाली विधि है इसलिए यह वैज्ञानिक नहीं है और इसमें विद्यार्थियों में खोजी प्रवृत्ति का विकास नहीं होता।
- यह विधि रट्टा लगाने पर बल देती है क्योंकि यदि एक भी पद भूल गए तो आगे बढ़ना मुश्किल होता है।
- गृह कार्य अधिक होता है।
- क्योंकि अध्यापक विद्यार्थी के साथ संबंध में नहीं आता इसलिए इस विधि द्वारा पढ़ाने पर अनुशासनहीनता की समस्या आती है।
विश्लेषण तथा संश्लेषण विधि की उपयोगिता
वैसे दोनो विधियां एक दूसरे की पूरक हैं फिर भी विश्लेषण विधि समझने में और संश्लेषण विधि याद करने में सहायक है। दूसरे शब्दों में विश्लेषण विधि नया शीर्षक या सम्प्रत्यय समझने में और उसको जोड़ने में काम आती है जब कि जो हमने समझा है उसे याद करने में संश्लेषण विधि सहायक हैं। भले ही दोनो स्वतंत्र विधियां है। फिर भी दोनो मिलाकर उपयोग करने में परिणाम प्रभावशाली रहते है।