क ख ग घ ङ (क वर्ग)च छ ज झ ञ (च वर्ग)ह ठ ड ढ ण (त वर्ग)त थ द ध न (त वर्ग)प फ ब भ म (प वर्ग)य र ल व वर्गहीन (अन्तस्थ)श ष स ह वर्ग हीन (उष्म) 33
इसके अतिरिक्त हिंदी में छः चिह्नों का प्रयोग होता है-
1. अयोगवाह - अनुस्वार (.) और विसर्ग (ः)- ये दो चिह्न अयोगवाह कहलाते हैं।
अनुस्वार और विसर्ग का भी स्वरों के बिना प्रयोग नहीं होता, अर्थात स्वरों की सहायता से ही उनका उच्चारण हो सकता है।
2. अनुस्वार- स्वर के ऊपर जो बिंदी लगायी जाती है, उसे अनुस्वार कहा जाता है। जैसे- अंग, कंघी, चंद्रमा, टंकार, तंदूर, पंखा।
3. अनुनासिक- अनुस्वार का कोमल रूप अनुनासिक कहलाता है। जैसे- आंखें, अंगूठी, हंसना।
4. विसर्ग - स्वर से परे जो बिंदियां लगायी जाती हैं, वे विसर्ग कहलाती हैं। जैसे- अतः, प्रातः, छः। विसर्ग का उच्चारण आधे ‘ह्’ जैसा होता है।
5. निम्न बिंदु - फारसी तथा अंग्रेजी से हिंदी में आये कुछ शब्दों तथा हिंदी के भी कुछ शब्दों के कुछ वर्णों की मूल ध्वनियों का उच्चारण कोमल बनाने के लिए उनके नीचे एक बिंदी लगायी जाती है, इसे निम्न बिंदु कहते हैं। जैसे-
क़ (क़लम) ख़ (खा़की) ग़ (ग़म)
ज़ (कागज़) फ़ (फ़ासला) ड़ (पड़ा)
ढ़ (पढ़ी)
6. अर्धवृत्त - हिंदी में अंग्रेजी के कुछ शब्दों को लिखते हुए उनके कुछ स्वरों पर ( ॅ) ऐसा चिह्न लगाया जाता है। इसे अर्धचंद्र (अर्धवृत्त) कहते हैं, जैसे- डाॅक्टर, काॅलिज।
इस चिह्न से ‘आ’ तथा ‘ओ’ के बीच की ध्वनि सूचित होती है।
7. हल् का चिह्न - स्वर से रहित व्यंजनों का ठीक रूप जिस चिह्न से सूचित होता है, उसे हल् का चिह्न कहते हैं, जैसे- महान्, विद्वान्, राजन्, ओ3म्, चित् आदि।
व्यंजन के प्रकार
1.उच्चारण स्थान के आधार पर
- ओष्ठ्य- जिन व्यंजनों का उच्चारण दोनों ओष्ठों से उच्चरित होता है। जीभ की सहायता नहीं ली जाती है। जैसे प, फ, ब, भ, म,
- दन्त्य- जब जीभ की नोेंक ऊपर वाली दंत पंक्ति को स्पर्ष करती है। जैसे त, थ, द, ध, ताल, धान, दवाज।
- दन्तोष्ठ्म- इसके उच्चारण में दन्त ओर ओष्ठ के क्षणिक संपर्क से हवा बाहर निकल आती है इसलिए इसे दन्तोष्ठ्म ध्वनि कहा जाता है, यथा व, वीणावादिनी।
- वत्स्र्य - जब जीभ मसूड़ों का स्पर्श करती है जैसे-न, र, ल, स, ज, नम्रता, निनाद ।
- तालव्य- जब जिह्ना कठोर तालु से स्पर्श करती है- च, छ, ज, झ, ञ, य, श, ष। जैसे शब्द है-शीला, ऋषि, जहाज, छाया आदि।
- पूर्व तालव्य- जब जीभ मूर्धा तथा कठोर तालु की संधि को स्पर्श करती है-ट, ठ, ड, ढ, ण, ड, ढ़ ।
- कोमल तालव्य- जब जीभ तालु के सबसे पिछले भाग को छूती है क, ख, ग, घ, ङ । यथा कमला, खड़ा, घड़ी आदि।
- स्वरयंत्रीय- गले के अंदर स्वर यंत्र के मुख से उच्चारित होने वाली
2. श्वास के आधार पर-
- अल्पप्राण- जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा की मात्रा कम निकले - क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, (प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, और पाँचवा व्यंजन) य, र, ल, व, ड़।
- महाप्राण- जब हवा की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक निकले- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, घ, फ, म (प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चैथा व्यंजन) श, ष, स, ह, ढ़ ।
3. स्वर-तत्रियों के कंपन के आधार पर
- सघोष- जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरयंत्र में स्वर- तत्रियों सें हवा टकराती हुई बाहर आती है, उन्हें सघोष ध्वनियाॅ कहते है-ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न ब भ, म (प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चैथा और पाँचवा व्यंजन ) यह ट, ल, व, ह, ङ, ढ़, ज।
- अघोष- जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय स्वर-तंत्रियाँ दूर-दूर रहती है, क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,ष,ष,स
- अनुराधा (2013), व्याकरण वाटिका, विकास पब्लिषिंग हाउस प्रा.लि. न्यू दिल्ली।
- जीत, भाई योगेन्द्र (2008), हिन्दी भाषा शिक्षण, अग्रवाल पब्लिकेषन, आगरा।
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- यादव, सियाराम (2016) पाठ्य क्रम एवं भाषा विनोद पुस्तक मन्दिर, आगरा।
- कौशिक, जयनारायण (1990), हिन्दी शिक्षण, हरियाणा साहित्य अकादमी, चण्डीगढ़।