क्लाइव ने बंगाल में सन् 1765 में दोहरा शासन प्रबंधन स्थापित किया और ये सन् 1772 तक
विद्यमान रहा। 1770 ई. में भीषण अकाल पड़ा। प्रकृति ने भी बंगाल की दुव्र्यवस्था की ओर भी भयंकर
बना दिया। कृषि का हृास हुआ और भूमिकर से प्राप्त होने वाली आय घट गयी, कंपनी का व्यापार भी
कम हो गया। इससे कंपनी दिवालियेपन के कगार पर खड़ी हो गयी। जब अंग्रेज कंपनी के संचालकों को दोहरे प्रशासन और इसके दोष, बंगाल के दुर्भिक्ष और उससे हुई गहरी क्षति की सूचना मिली तो
उनहो ने अगस्त 1771 में बंगाल में कलकत्ता कौंसलि के अध्यक्ष को आदेश दिया कि वे स्वयं दीवान के
रूप में कार्य करें तथा भूमि कर की वसूली का कार्य कंपनी के कर्मचारी द्वारा ही किया जाय, नायब
दीवान और उसके अधीन कार्य करने वाले समस्त कर्मचारियों को पदच्युत किया जाय तथा मुहम्मद
राजखाँ और सिताबराय दोनों नायब दीवानों पर मुकदमा चलाया जाय जिससे गबन और रिश्वत का
पता चल सके। अतः कंपनी के संचालकों ने वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल की दशा को सुधारने के लिये
1772 ई. में यहाँ का गवर्नर बना कर भेजा। हेस्टिंग्स ने उपराक्ते आदेशों का पालन किया।
3. कोषालय- कंपनी के राजकोष पर संपूर्ण देखरेख और नियंत्रण रखने के लिये उसे नबाव की राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया गया।
2. राजस्व संभाग और राजस्व समितियाँ- राजस्व की समुचित वसूली और हिसाब-किताब के लिए बंगाल के सभी तीस जिलो को छः बड़ े संभागों कलकत्ता, बर्दवान, मुर्शिबाद, दीनाजपुर, ढाका और पटना में संगठित किया गया। प्रत्येक संभाग में राजस्व के निरीक्षण तथा दीवानी मुकदमों के हते ु एक राजस्व समिति स्थापित की गई। राजस्व समिति की सहायता के लिये प्रत्येक संभाग में एक भारतीय दीवान रखा गया। प्रत्येक संभाग की राजस्व समिति का अध्यक्ष कलकत्ता कोंसिल का सदस्य हाते ा था। इस अध्यक्ष को तीन सहस्र रुपये प्रतिमास का ऊँचा वेतन दिया जाने लगा जिससे वह निजी व्यापार कर आर्थिक लाभ न ले।
5. राजस्व का निरीक्षण अधिकारी- राजस्व के संपूर्ण हिसाब-किताब के निरीक्षण के हेतु एक भारतीय अधिकारी ‘‘रायरतन’’ पाँच सहस्र रूपये प्रतिमाह के वेतन पर नियुक्त किया गया। सेठ रायदुर्लभ का पुत्र राजवल्लभ इस पद पर नियुक्त किया गया।
6. कंपनी कोष का स्थानांतरण- इसको सुधारने के लिए तथा कोष पर समुचित और प्रत्यक्ष नियंत्रण रखने के लिए उसे मुर्शिदाबाद से कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया गया।
7. नबाव की पेंशन में कमी- आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए हेस्टिंग्स ने बंगाल के नबाव को दी जाने वाली पेंशन आधी करके 16 लाख रूपये प्रतिवर्ष कर दी।
8. शाहआलम की पेंशन बंद- दिल्ली के मुगल सम्राट शाहआलम को 26 लाख रूपये प्रतिवर्ष दी जाने वाली पेंशन भी बंद कर मितव्यता की गई। इस पेश्ं ान के बंद करने का राजनीतिक कारण यह थी था कि शाहआलम अंग्रेजों का संरक्षण त्यागकर मराठों के राज्याश्रय में चला गया था। इसलिए कड़ा और इलाहाबाद के जिले शाहआलम से वापिस लेकर उनहंे पचास लाख रूपये मेंअवध के नबाव को बचे दिये।
वारेन हेस्टिंग्स के सुधार
1. बंगाल के नबाव के साथ व्यवहार और समझौता
बंगाल के अवयस्क नबाव मुबारिकउद्दौला पर नियंत्रण और संरक्षण रखने के लिए नबाव मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम को उसका संरक्षक नियुक्त किया जिससे कि वह उसके व्यक्तिगत व्यय और आचरण को भलीभाँति देख सके। मुन्नी बेगम ने अपनी इस नियुक्ति के उपलक्ष में हेस्टिंग्स की डेढ़ लाख रूपयांे की गहरी धनराशि उपहार (रिश्वत) में दी। बाद में 1775 ई. में मुन्नी बेगम को पृथक कर मुहम्मद रजाखाँ को नबाव का संरक्षक नियुक्त किया गया तथा राजा नंदकुमार के पुत्र गुरूदास को उसके प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया गया।2. वारेन हेस्टिंग्स के प्रशासकीय सुधार
1. बंगाल के नबाव की पेंशन में कमी- हेस्टिंग्स ने बंगाल के नबाव की पेंशन 32 लाख रूपये से कम करके सोलह लाख रूपये वार्षिक कर दी। उसने प्रशासन में मितव्यता के लिये कुछ अनावश्यक वतैनिक पदांे को समाप्त भी कर दिया। नबाव को प्रशासन के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया।2. नायब दीवान के पदों की समाप्ति और गबन के अभियोग-
हेस्टिंग्स ने बंगाल के नायब दीवान मुहम्मद रजाखाँ और बिहार के नायब दीवान सिताबराय को
पदच्युत कर दिया, उनके पद भी समाप्त कर दिये और उन पर धन अपहरण का अभियोजन लगाकार
न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। 2 वर्षाें के कष्टदायक मुकदमों में व े ससम्मान बरी कर दिये गये। इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी प्रतिष्ठा और प्रभाव पूर्ण रूप से समाप्त हो गये और कंपनी ने
अपनी गिरती हुई साख पुनः स्थापित कर ली। पर इस मुकदमे से अंग्रेजों की लूट, बेईमानी और
घूसखोरी के बावजूद कंपनी की ईमानदारी का प्रचार हुआ।
3. कोषालय- कंपनी के राजकोष पर संपूर्ण देखरेख और नियंत्रण रखने के लिये उसे नबाव की राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया गया।
3. राजस्व के सुधार
द्वैध शासन को समाप्त करने के लिये हेस्टिंग्स ने कंपनी के कर्मचारियों द्वारा भूमि कर वसूली का कार्य प्रारंभ किया।1. अंग्रेज कलेक्टरों की नियुक्ति-
1769 इ. में राजस्व के लिये जो निरीक्षक नियुक्त किये गये थे उनको कलेक्टर का पद दिया
गया। उन्हें ही भूमि कर वसूली का उत्तरदायित्व दिया गया। अंग्रेज इस पद पर नियुक्त किये गये। प्रत्येक जिले का एक कलेक्टर नियुक्त किया गया और उसकी सहायता के लिये एक भारतीय दीवान
नियुक्त किया गया। इस प्रकार कंपनी ने स्वयं अपने कर्मचारियों द्वारा बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भूमि
कर वसूल करने का कार्य प्रारंभ कर दिया।
2. राजस्व संभाग और राजस्व समितियाँ- राजस्व की समुचित वसूली और हिसाब-किताब के लिए बंगाल के सभी तीस जिलो को छः बड़ े संभागों कलकत्ता, बर्दवान, मुर्शिबाद, दीनाजपुर, ढाका और पटना में संगठित किया गया। प्रत्येक संभाग में राजस्व के निरीक्षण तथा दीवानी मुकदमों के हते ु एक राजस्व समिति स्थापित की गई। राजस्व समिति की सहायता के लिये प्रत्येक संभाग में एक भारतीय दीवान रखा गया। प्रत्येक संभाग की राजस्व समिति का अध्यक्ष कलकत्ता कोंसिल का सदस्य हाते ा था। इस अध्यक्ष को तीन सहस्र रुपये प्रतिमास का ऊँचा वेतन दिया जाने लगा जिससे वह निजी व्यापार कर आर्थिक लाभ न ले।
3. राजस्व की पंचवर्षीय और एक वर्षीय व्यवस्था-
भूमि, पाँच वर्ष के लिये उन व्यक्तियों को दी जाने लगी जो कंपनी को अधिकतम भूमि कर देने
का वचन देते थे। इस प्रकार से यह भूमि कर का पंचवर्षीय टेका था। जो जमींदार कंपनी को भूमि कर
देने की नीलामी में सबसे अधिक बोली लगाता था, उसे ही पाँच वर्ष के लिये कृषकों से भूमि कर वसूली
का अधिकार दिया जाता था। अंग्रेज कलेक्टर ने जमींदारों से भूमि कर वसूल कर कंपनी के काष्े ा में
जमा करते थे। यह निश्चित किया गया कि नवीन जमींदार कृषकों को ‘‘पट्ट’े ’ देंगे जिसमें कृषक की
भूमि की दशा, उसका क्षेत्रफल, स्थान, भूमि कर आदि का उल्लेख होगा।
भूमि कर के इन ठेकेदारों को भूमि कर संबंधी कोई जानकारी नहीं थी और न ही उनको भूमि के विकास और कृषि की प्रगति में कोई रूचि ही थी। उनका उद्देश्य तो कृषकों से कर के रूप में अधिकतम धन प्राप्त करना था। यह दुर्भाग्य आरै भष््र टता की बात थी कि कंपनी के अधिकारियों ने भी अपने निजी नौकरों और गुमाश्तांे तथा कारिंदों की सहायता से भूमि कर की नीलामियां े में भाग लेकर भूमि कर के कुछ ठेके हथिया लिये। अनेक बार भूमि की उर्वरता और उत्पादन की क्षमता अधिक मानकर भूमि कर की अत्यधिक राशि निश्चित की जाती थी। कर वसूल करने वालों की धन लोलुपता इसके अतिरिक्त थी। इसका परिणाम यह हुआ कि ठेकेदार पूर्ण रूप से भूमि कर वसूल नहीं कर पाते थे और भूि म कर की एक बड़ी धनराशि ठेकेदारों पर बकाया रह जाती थी। इसकी वसूल करने के लिये कई लोग पकड़कर बंदी बना लिये जाते थे और कई भूमि छोड़कर भाग जाते थे।
इन दाष्े ाांे के कारण 1776 ई. में भूिम कर के पंचवषीर्य ठेके की प्रथा समाप्त कर एक वर्षीय ठेके की प्रथा अपनायी गयी और भूमि कर वसूल करने के अधिकार प्रति वर्ष नीलाम किये जाने लगे और सबसे ऊँची बोली में अधिकतम भूमि कर देने वाले को भूमि कर वसूली का एक वर्षीय ठेका दिया जाता था पर इससे भी परिस्थिति नहीं सुधरी। 1781 ई. में पुनः इस अवस्था में सुधार किये गये। भूमि कर संबध्ं ाी प्रांतीय परिषद समाप्त कर दी गयी। भूि म कर वसूली और निरीक्षण के लिये जिलो ं में अंग्रेज कलेक्टर पुनः नियुक्त किये गये पर उन्हें भूमि कर निर्दिष्ट करने का अधिकार नहीं था। इन कलेक्टरों की सहायता के लिये दीवान नियुक्त किये गये। ग्रामों और कस्बों के लिये काूननगो पुनः नियुक्त किये गय।े भूि म कर या राजस्व संबंधी कार्य कलकत्ता स्थित राजस्व समिति मेंनिहित कर दिया गया।
भूमि कर के इन ठेकेदारों को भूमि कर संबंधी कोई जानकारी नहीं थी और न ही उनको भूमि के विकास और कृषि की प्रगति में कोई रूचि ही थी। उनका उद्देश्य तो कृषकों से कर के रूप में अधिकतम धन प्राप्त करना था। यह दुर्भाग्य आरै भष््र टता की बात थी कि कंपनी के अधिकारियों ने भी अपने निजी नौकरों और गुमाश्तांे तथा कारिंदों की सहायता से भूमि कर की नीलामियां े में भाग लेकर भूमि कर के कुछ ठेके हथिया लिये। अनेक बार भूमि की उर्वरता और उत्पादन की क्षमता अधिक मानकर भूमि कर की अत्यधिक राशि निश्चित की जाती थी। कर वसूल करने वालों की धन लोलुपता इसके अतिरिक्त थी। इसका परिणाम यह हुआ कि ठेकेदार पूर्ण रूप से भूमि कर वसूल नहीं कर पाते थे और भूि म कर की एक बड़ी धनराशि ठेकेदारों पर बकाया रह जाती थी। इसकी वसूल करने के लिये कई लोग पकड़कर बंदी बना लिये जाते थे और कई भूमि छोड़कर भाग जाते थे।
इन दाष्े ाांे के कारण 1776 ई. में भूिम कर के पंचवषीर्य ठेके की प्रथा समाप्त कर एक वर्षीय ठेके की प्रथा अपनायी गयी और भूमि कर वसूल करने के अधिकार प्रति वर्ष नीलाम किये जाने लगे और सबसे ऊँची बोली में अधिकतम भूमि कर देने वाले को भूमि कर वसूली का एक वर्षीय ठेका दिया जाता था पर इससे भी परिस्थिति नहीं सुधरी। 1781 ई. में पुनः इस अवस्था में सुधार किये गये। भूमि कर संबध्ं ाी प्रांतीय परिषद समाप्त कर दी गयी। भूि म कर वसूली और निरीक्षण के लिये जिलो ं में अंग्रेज कलेक्टर पुनः नियुक्त किये गये पर उन्हें भूमि कर निर्दिष्ट करने का अधिकार नहीं था। इन कलेक्टरों की सहायता के लिये दीवान नियुक्त किये गये। ग्रामों और कस्बों के लिये काूननगो पुनः नियुक्त किये गय।े भूि म कर या राजस्व संबंधी कार्य कलकत्ता स्थित राजस्व समिति मेंनिहित कर दिया गया।
4. राजस्व समिति-
समस्त बंगाल राज्य के लिये कलकत्ता में एक राजस्व समिति स्थापित हो गई। इसे भूमि कर के
वसूली और निरीक्षण का कार्य दिया गया। इस समिति में कलकत्ता कोंि सल के दा े सदस्य तथा तीन
उच्च पदाधिकारी होते थे।
5. राजस्व का निरीक्षण अधिकारी- राजस्व के संपूर्ण हिसाब-किताब के निरीक्षण के हेतु एक भारतीय अधिकारी ‘‘रायरतन’’ पाँच सहस्र रूपये प्रतिमाह के वेतन पर नियुक्त किया गया। सेठ रायदुर्लभ का पुत्र राजवल्लभ इस पद पर नियुक्त किया गया।
6. कंपनी कोष का स्थानांतरण- इसको सुधारने के लिए तथा कोष पर समुचित और प्रत्यक्ष नियंत्रण रखने के लिए उसे मुर्शिदाबाद से कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया गया।
7. नबाव की पेंशन में कमी- आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए हेस्टिंग्स ने बंगाल के नबाव को दी जाने वाली पेंशन आधी करके 16 लाख रूपये प्रतिवर्ष कर दी।
8. शाहआलम की पेंशन बंद- दिल्ली के मुगल सम्राट शाहआलम को 26 लाख रूपये प्रतिवर्ष दी जाने वाली पेंशन भी बंद कर मितव्यता की गई। इस पेश्ं ान के बंद करने का राजनीतिक कारण यह थी था कि शाहआलम अंग्रेजों का संरक्षण त्यागकर मराठों के राज्याश्रय में चला गया था। इसलिए कड़ा और इलाहाबाद के जिले शाहआलम से वापिस लेकर उनहंे पचास लाख रूपये मेंअवध के नबाव को बचे दिये।
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