नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) क्या है ?

नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019

संसद ने 11 दिसंबर, 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को पारित कर दिया। राज्यसभा ने 11 दिसंबर को जबकि लोकसभा ने 9 दिसंबर, 2019 को इसे पारित किया। राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 12 दिसंबर, 2019 को इस विधेयक को अपनी अनुमति प्रदान कर दी। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही यह विधेयक एक्ट बन गया है। इस एक्ट के माध्यम से नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किए गए हैं। ये संशोधन क्या हैं, आईए जानेंः

1. नागरिकता अधिनियम 1995 में सेक्शन 2 में एक नया क्लाॅज जोड़कर कहा गया है कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या इसाई समुदाय का कोई भी व्यक्ति जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से भारत में 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले आएं हो, ऐसे व्यक्तियों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

2. नागरिकता अधिनियम 1995 के सेक्शन 6 में संशोधन के द्वारा उपर्युक्त व्यक्तियों को प्राकृतिकरण या पंजीकरण का प्रमाणपत्र के माध्यम से भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। जिस दिन वे भारत में प्रवेश करते हैं या किए हैं, तब से उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा।

3. उल्लेखनीय है कि नागरिकता अधिनियम 1955 की तीसरी अनुसूची के क्लाॅज ‘डी’ में नेचुरलाइजेशन के माध्यम से भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि संबंधित व्यक्ति विगत 11 वर्षों से भारत में रह रहा हो। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के माध्यम से अफगानिस्तान, बांग्लादेश व पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या इसाई समुदाय के शरणार्थियों के लिए उपर्युक्त अवधि को न्यूनतम 11 वर्ष से घटाकर न्यूनतम पांच वर्ष कर दिया गया है।

4. उपर्युक्त संशोधन के माध्यम से सेक्शन 6B में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के लागू होने की तिथि तक उपर्युक्त व्यक्तियों पर अवैध प्रवासी या अवैध नागरिकता संबंधी किसी भी प्रकार के मुकदमा को समाप्त माना जाएगा।

5. उपर्युक्त संशोधन एक्ट के द्वारा सेक्शन 6B में यह भी कहा गया है कि उपर्युक्त कोई संशोधित प्रावधान भारत के संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम व त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों में लागू नहीं होंगे। इसी तरह उपर्युक्त प्रावधान ‘बंगाल पूर्वी सीमांत विनियमन 1873 (बेंगाल इस्टर्न प्रफंटियर रेगुलेशन 1873) के तहत अधिसूचित ‘इनर लाइन परमिट’ राज्यों/क्षेत्रों में भी लागू नहीं होंगे।

उपर्युक्त एक्ट के लागू होने के पश्चात देश के कई हिस्सों में व्यापक प्रदर्शन देखा गया। कई क्षेत्रों में हिंसक प्रदर्शन भी हुए। पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर असम में इस एक्ट का बड़े पैमाने पर विरोध किया गया। उनके मुताबिक 1985 के असम एकाॅर्ड में 24 मार्च, 1971 को कट आफ डेट रखा गया है और इस तिथि के पश्चात आए सभी अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजे जाने का प्रावधान किया गया है, भले ही वह किसी भी देश के हों।

इनर लाइन परमिट क्या है

सीएए के प्रावधान उन राज्यों/क्षेत्रों में नहीं लागू होंगे जो इनर लाइन परमिट के तहत आते हैं। इनर लाइन परमिट वह दस्तावेज है जो संबंधित राज्य सरकारों द्वारा वैसे भारतीय नागरिकों को जारी किये जाते हैं जो उस राज्य या क्षेत्र में यात्रा करना चाहते हैं या रहना चाहते हैं। इसके बिना न तो यहां जाने की या रहने की अनुमति है। पहले यह व्यवस्था केवल तीन राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड एवं मिजोरम में लागू थी। नागरिकता संशोधन एक्ट के साथ ही इनर लाइन परमिट के तहत मणिपुर को भी ला दिया गया है। इनर लाइन परमिट औपनिवेशिक व्यवस्था की देन है। बंगाल पूर्वी सीमांत विनियमन एक्ट 1873 के तहत ब्रिटिश शासन ने निर्धारित क्षेत्रों में बाहरियों के प्रवेश व ठहरने को सीमित कर दिया था। ऐसा ब्रिटिश वाणिज्यिक हितों की रक्षा के लिए किया गया था। 

NRC बनाम CAA

राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण एवं नागरिक संशोधन एक्ट को लेकर भी काफी विवाद है। भारत सरकार के मुताबिक जहां सीएए एक अलग कानून है जिसे संसद से पारित होने के पश्चात देश भर में लागू किया गया है, वहीं एनआरसी से संबंधित नियम व प्रक्रियाओं को अभी बनाया जाना शेष है। दूसरी बात यह कि असम में जो एनआरसी प्रक्रिया चलायी गई, उसका उल्लेख असम एकाॅर्ड में है और इसका क्रियान्वयन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया। भारत सरकार का यह भी मानना है कि एनआरसी से संबंधित अभी नियम नहीं बनाया गया है और यह लागू होता भी है तो किसी को भी अपनी नागरिकता सिद्ध करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सरकार की मानें तो यह नागरिकता पंजीकरण में अपना नाम दर्ज करवाने जैसा है, ठीक वैसे ही, जैसे कि मतदान पहचान पत्र या आधार कार्ड बनवाते समय पहचान पत्र के रूप में दस्तावेज जमा करते हैं। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि लोगों को 1971 से पूर्व का प्रमाण पत्र भी सौपने की जरूरत नहीं है। केवल असम एकाॅर्ड में व्यवस्था होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशन में असम में इस तरह की व्यवस्था लागू की गई थी।

शेष भारत के लिए एनआरसी प्रक्रिया बिल्कुल अलग होने की बात कही गई है और यह नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण तथा राष्ट्रीय पहचान कार्ड) नियम, 2003 के अनुरूप होगा। हालांकि इस बीच यह भी सवाल खड़े किए गए हैं कि भारत में ऐसी बहुत सारी आबादी है जिनके पास अपना घर नहीं है या शिक्षित नहीं है और उन्हें अपनी पहचान बताने का कोई आधार नहीं है, उनका क्या होगा? उन निरक्षर लोगों का क्या होगा, जिनके पास अपना कोई दस्तावेज नहीं है। केंद्र सरकार के अनुसार यह पूरी तरह सही नहीं है कि गरीबों के पास या निरक्षर के पास अपनी पहचान बताने का कोई आधार नहीं है। इन लोगों के पास ऐसा कोई आधार जरूर है जिसके बल पर ये लोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। ऐसे लोगों की पहचान इसी आधार पर स्थापित की जाएगी। दूसरा यह कि कोई व्यक्ति यदि निरक्षर है और उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है तो अधिकारी ऐसे लोगों को किसी अन्य साक्षी लाने को कह सकते हैं। इसके अलावा सामुदायिक सत्यापन इत्यादि की भी अनुमति दी जा सकती है।

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