सत्याग्रह का एक अलग रूप असहयोग है । गाँधी जी का विचार था कि अन्याय करने वाला भी
अन्याय सहने वाले के सहयोग के बिना अत्याचार नहीं कर सकता, गाँधी जी ने जन
साधारण से अँग्रेजी सरकार के साथ असहयोग करने की अपील की । असहयोग का विचार उनकी
मौलिक देन नहीं थी किन्तु राजनीतिक संघर्ष में एक साधन के रूप में इसका सर्वप्रथम प्रयोग गाँधी
जी ने ही किया ।
स्थानीय काँग्रेस समितियों के प्रयासों से विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार हुआ । जगह-जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई । खादी के उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास हुए तथा उसकी लोकप्रियता भी बढ़ी । शराब की दुकानों पर पिकेटिंग की गई । मद्य- निषेध की अपील का भी काफी प्रभाव रहा । काँग्रेस महासमिति द्वारा मार्च 1921 ई. में बैजवाड़ा की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार -एक करोड़ रुपये धनराशि संग्रहित करने, राजकोष में तेजी से राशि संग्रहित होने लगी । काँग्रेस द्वारा 30 लाख स्वयं-सेवकों की सूची तैयार की गई और 20 हजार चरखे तैयार किये गये । नये विधान के अन्तर्गत बनने वाली व्यवस्थापिका सभाओं का बहिष्कार किया गया। इस आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण बात हिन्दु-मुस्लिम एकता की थी जो सर्वत्र देखने को मिली ।
असहयोग आंदोलन प्रारम्भ करने के प्रमुख कारण
असहयोग आंदोलन के प्रारम्भ करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे -
(1) प्रथम विश्व युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध के समय भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार
ने घोषणा की थी कि इस विश्व युद्ध का उद्देश्य विश्व को प्रजातंत्र के लिये सुरक्षित बनाना तथा
प्रत्येक देश को आत्मनिर्णय लेने का अधिकार दिलाना है । भारत के संबंध में भी घोषणा की गई थी
कि भारतीयों को धीरे-धीरे प्रत्येक विभाग में उत्तरोत्तर अधिक संख्या में शामिल किया जायेगा
तथा स्वशासन संबंधी संस्थाओं का विकास किया जायेगा ताकि भारत में ब्रिटिश सरकार के अंग के
रूप में उत्तरदायी सरकार की स्थापना हो सकें ।
भारतीय नेताओं ने सरकार की इस घोषणा को
सच मानते हुए विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड की सहायता करने का निर्णय लिया था । गाँधी जी ने 1922
ई. में स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए कहा था कि - ’’साम्राज्य की सेवा करने के ये तमाम
प्रयत्न मैंने इस विश्वास के साथ किए थे कि इस प्रकार की सेवाओं के द्वारा मैं अपने देश वासियों
के प्रति पूर्ण समानता का स्थान प्राप्त कर सकूंगा’’ किन्तु युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार
अपने वायदे पूरे करने से मुकर गई ।
युद्ध के बाद युद्ध का खर्चा वसूल करने के लिए भारतीयों से
अधिक कर वसूल किए गये परिणाम स्वरूप कीमतें बहुत बढ़ गईं भारतीय किसानों की आर्थिक
स्थिति शोचनीय हो गई । इसी समय काले बुखार की महामारी भारत में फैली जिससे भारतीयों की
स्थिति और भी खराब हो गई लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस दिशा में सुधार लाने के कोई प्रयत्न
नहीं किए जिससे भारतीय नेताओं में और जनता में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असंतोष और रोष
फैल गया ।
(2) 1917 की रूसी क्रांति
असहयोग आंदोलन को प्रारम्भ करने में इस घटना की
प्रेरणा भी सहयोगी रही है । यह एक ऐसी घटना थी जिसने यह प्रदर्शित किया कि आम जनता
अपनी शक्ति और साहस के आधार पर अपने अधिकारों को प्राप्त करने में सफल हो सकती है ।
इस क्रांति की सफलता ने भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त करने की प्रेरणा दी वहीं इस क्रांति ने राष्ट्रों के आत्मनिर्णय के प्रश्न को विश्व के सामने इस प्रकार रखा कि साम्राज्यवादी शक्तियाँ यह सोचने के लिए विवश हो गई कि यदि अतिशीघ्र इस संबंध में कुछ नहीं किया गया तो उपनिवेशों का उनके हाथों से निकलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा । इसी कारण 1919 ई. का अधिनियम पारित किया गया ।
इस क्रांति की सफलता ने भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्त करने की प्रेरणा दी वहीं इस क्रांति ने राष्ट्रों के आत्मनिर्णय के प्रश्न को विश्व के सामने इस प्रकार रखा कि साम्राज्यवादी शक्तियाँ यह सोचने के लिए विवश हो गई कि यदि अतिशीघ्र इस संबंध में कुछ नहीं किया गया तो उपनिवेशों का उनके हाथों से निकलने का सिलसिला शुरू हो जाएगा । इसी कारण 1919 ई. का अधिनियम पारित किया गया ।
(3) 1919 ई. का अधिनियम
इस अधिनियम के द्वारा भारत में द्वैघशासन प्रणाली की स्थापना की
गई । इसके साथ ही आंशिक उत्तरदायित्व तथा केन्द्रीय, प्रान्तीय विषयों का बँटवारा भी किया गया
। फलतः अनेक काँग्रेसी उदारवादी नेताओं के साथ-साथ गाँधी जी भी इससे संतुष्ट हुए और
उन्होंने इसे प्रथम विश्वयुद्ध में सरकार का साथ देनेका पुरस्कार माना किन्तु काँग्रेस के अधिकांश
नेताओं ने इसे अपर्याप्त, निराशाजनक और कूटनीतिपूर्ण ही बताया क्योंकि इसके द्वारा काँग्रेस में
और हिन्दू-मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास किया गया था जिसके चलते गाँधी जी को
छोड़कर शेष सभी उदारवादी नेता काँग्रेस से अलग हो गये और उन्होंने नेशनल लिबरेशन
फेडरेशन की स्थापना की । दिसम्बर 1919 ई. में काँग्रेस ने इस अधिनियम की आलोचना के साथ
आत्म निर्णय के सिद्धांत के अनुसार पूरी तौर पर उत्तरदायी सरकार कायम करने की माँग का
प्रस्ताव पारित किया ।
(4) रोलट अधिनियम
गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन चलाये जाने
का एक प्रमुख कारण रौलट अधिनियम का पारित किया जाना था । प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश
सरकार की नीतियों के परिणाम स्वरूप भारत में असंतोष एवं क्षोभ की भावनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़
रही थी । सरकार को यह डर था कि स्थिति किसी भी समय विस्फोटक हो सकती है । अतः
स्थिति को संभालनें के लिये सरकार कुछ कानून पारित करना चाहती थी । तत्कालीन परिस्थितियों
में किन कानूनों की आवश्यकता है इस पर विचार करने के लिए सर सिडनी रौलट को नियुक्त
किया गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा-सरकार को ऐसे कानून की आवश्यकता है जिसके द्वारा
राजद्रोहात्मक गतिविधियों के संदेह में किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये बंदी बनाने, उससे
जमानत लेने व उसके कार्यो पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार सरकार को प्राप्त हो । अर्थात् न
अपील, न वकील और दलील । सिडनी रौलट की इस सिफारिश पर इस प्रस्ताव को 17 मार्च 1919
ई. को कानून का रूप दे दिया गया जिसे भारतीयों ने काला विधेयक कहा और इसका घोर विरोध
हुआ ।
(5) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड
गाँधी जी ने रौलट अधिनियम का विरोध करने के
लिए ’’सत्याग्रह लीग’’ की स्थापना की । उनके ही प्रयत्नों से भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने 30 मार्च
1919 ई. को सम्पूर्ण देश में रौलट अधिनियम के विरुद्ध शांतिपूर्ण हड़ताल एवं प्रदर्शन करने का
निर्णय लिया । बाद में इसकी तिथि बदल कर 6 अप्रैल कर दी गई किन्तु समय पर सभी जगह
सूचना न मिलने के कारण कुछ जगहों में यह हड़ताल 30 मार्च को ही हुई । 30 मार्च और 6 अप्रैल
दोनों ही दिनों की हड़ताल पूरी तरह सफल रहीं । हड़ताल की सफलता से सरकार बौखला गई ।
इस समय पंजाब का ले. गवर्नर माइकेल ओडायर तानाशाही प्रवृत्ति का था वह रौलट अधिनियम का
सहारा लेकर सार्वजनिक कार्यकर्ताओं को बार-बार धमका रहा था उसकी धमकी के बावजूद 9
अप्रैल को अमृतसर में हिन्दू और मुसलमानों का एक सम्मिलित जुलूस डाॅ. सत्यपाल और किचलू के
नेतृत्व में निकला । अगले ही दिन उन दोनों को गिरफ्तार कर अमृतसर से निष्कासित कर दिया
गया । इस घटना के विरोध में 10 अप्रैल 1919 ई. को पुनः लगभग 30 हजार लोगों का एक जुलूस
निकला । अमृतसर में दंगा भड़क उठा । गाँधी जी पंजाब के लिये रवाना हुए लेकिन पलवल में
गिरफ्तार कर लिए गए । पंजाब की इस गंभीर स्थिति पर विचार करने के लिए 13 अप्रैल 1919
ई. को बैशाखी के दिन जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 20
हजार लोगों ने भाग लिया । यह बाग चारों ओर से मकानों से घिरा हुआ एक मैदान है जिसका
रास्ता तंग है । जिस समय हंसराज के नेतृत्व में सभा चल रही थी तभी ओडायर ने उस तंग रास्ते
पर सेना खड़ी करके बाग से बाहर निकलने का रास्ता बन्द कर दिया तथा बिना किसी प्रकार की
चेतावनी दिए सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया । चूहें दानी में फँसे चूहों की तरह लोगों
का पूरा झुण्ड बाहर निकलने की कोशिश में निष्फल रहा । इस समूह पर 1650 गोलियाँ चलाई र्गइं
। हण्टर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार इसमें 379 लोग मारे गए और 1200 लोग घायल हुए । इस
हत्याकाण्ड की सर्वत्र आलोचना हुई । विस्टन चर्चिल ने भी इसकी निन्दा करते हुए इसे एक
पैशाचिक काण्ड बताया । असहयोग आंदोलन का एक अन्य कारण खिलाफ़त आंदोलन भी था
क्योंकि खिलाफ़त के समर्थन में गाँधी जी 10 मार्च 1920 ई. को ही असहयोग आंदोलन छेड़ने की
घोषणा कर चुके थे ।
उपरोक्त कारणों से प्रेरित हो गाँधी जी ब्रिटिश सरकार के प्रति असहयोगी हो
गये जबकि उन्हें आशा थी कि ब्रिटिश सरकार पंजाब और खिलाफ़त के मामलों में न्याय करेगी
लेकिन जब उन्हें सरकार की ओर से निराशा हुई तब उन्होंने असहयोग आंदोलन की घोषणा कर
दी । 30 मई 1920 ई. को बनारस के अखिल भारतीय काँग्रेस के अधिवेशन में गाँधी जी और
खिलाफ़त कमेटी ने इस आंदोलन का अनुमोदन किया । गाँधी जी द्वारा प्रस्तावित इस योजना पर
विचार करने के लिए 1920 ई. में 4 से 9 सितम्बर तक कलकत्ता में काँग्रेस का एक विशेष अधिवेशन
हुआ । इस अधिवेशन में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन का
प्रस्ताव रखा ।
असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम
कलकत्ता अधिवेशन में प्रस्तावित आंदोलन के कार्यक्रम निम्न थे -- सरकारी उपाधियाँ, अवैतनिक पद तथा स्थानीय संस्थाओं के नामजद स्थानों से त्याग-पत्र दें ।
- सरकारी तथा अर्द्धसरकारी उत्सवों में भाग न लें ।
- सरकारी स्कूल, काॅलेजों का परित्याग और राष्ट्रीय स्कूल काॅलेजों की स्थापना करना।
- वकील तथा मुवक्किलों द्वारा ब्रिटिश अदालतों का धीरे-धीरे बहिष्कार किया जाये तथा आपसी झगड़ों को तय करने के लिए पंचायती अदालतों की स्थापना की जाए ।
- सैनिक, क्लर्क तथा मजदूरी करने वाले लोग मेसोपोटामिया में नौकरी करने के लिए भर्ती होने से इंकार करें ।
- नई कौंसिलों के चुनाव के लिए खडे़ उम्मीदवार अपने नाम वापिस ले लें और मतदाता अपने मतों का प्रयोग न करें ।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हो ।
- स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने तथा इस हेतु हाथ के बने हुए कपड़ों के व्यवसाय को पुनर्जीवित करने की भी सलाह काँग्रेस ने दी ।
असहयोग आंदोलन का क्रियान्वयन एवं प्रसार
सन् 1921 का वर्ष भारतीय जनता के लिये असहयोग का संदेश लेकर अवतीर्ण हुआ। आंदोलन का सूत्रपात गाँधी जी ने अपने ’’केसर-ए-हिन्द’’ के पदक, जुलूयुद्धपदक, बोअरपदक को वापस देकर किया । अन्य नेताओं ने भी ऐसा ही किया। गाँधी जी, लाला लाजपतराय, चित्तरंजनदास, विपिनचन्द्र पाल आदि नेताओं के प्रभाव से विद्यार्थियों ने स्कूलों और काॅलेजों का बहिष्कार किया तथा अनेक राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं-काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, राष्ट्रीय काॅलेज-लाहौर, जामियामिलिया इस्लामिया-दिल्ली तथा अलीगढ़ विश्वविद्यालय की स्थापना की गई । अध्यापक इन संस्थाओं में गुजारे मात्र के लिए वेतन लेकर पढ़ाने लगे । कई लोगों ने उपाधियों तथा पदों का परित्याग कर दिया। सुभाषचन्द बोस ने आई.सी.एस. से इस्तीफा दे दिया । देश भर के अनेक वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया । पंडित मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, सी.आर. दास जैसे नामी वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी ।स्थानीय काँग्रेस समितियों के प्रयासों से विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार हुआ । जगह-जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई । खादी के उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास हुए तथा उसकी लोकप्रियता भी बढ़ी । शराब की दुकानों पर पिकेटिंग की गई । मद्य- निषेध की अपील का भी काफी प्रभाव रहा । काँग्रेस महासमिति द्वारा मार्च 1921 ई. में बैजवाड़ा की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार -एक करोड़ रुपये धनराशि संग्रहित करने, राजकोष में तेजी से राशि संग्रहित होने लगी । काँग्रेस द्वारा 30 लाख स्वयं-सेवकों की सूची तैयार की गई और 20 हजार चरखे तैयार किये गये । नये विधान के अन्तर्गत बनने वाली व्यवस्थापिका सभाओं का बहिष्कार किया गया। इस आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण बात हिन्दु-मुस्लिम एकता की थी जो सर्वत्र देखने को मिली ।
असहयोग आंदोलन का अंत
गाँधी जी द्वारा दिया गया 7 दिन का समय अभी पूरा नहीं हुआ था इससे पहले
गोरखपुर जिले के चैरीचैरा नामक स्थान पर एक ऐसी घटना हुई जिसने सम्पूर्ण स्थिति
को बदल दिया । 5 फरवरी 1922 को चोैरीचैरा ग्राम में काँग्रेस की ओर से एक जुलूस
निकाला गया जिसे पुलिस ने रोकने का प्रयत्न किया जिससे दोनों में मुठभेड़ हो गई इससे
जनता ने उत्तेजित होकर एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में खदेड़ दिया और थाने
में आग लगा दी । वे सब आग में जलकर मर गए । इस घटना से गाँधी जी के
अहिंसावादी मन को गहरा आघात पहुँचा और उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारडोली में
काँग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक बुलाई और चैरीचैरा की घटना के आधार पर
आंदोलन को स्थगित करने का प्रस्ताव किया तथा रचनात्मक कार्यक्रम पर बल दिया
। इस तरह असहयोग आंदोलन एका-एक बन्द हो गया ।
संदर्भ -
- भट्टाचार्य, प्रभात कुमार: गाँधी दर्शन, काॅलेज बुक डिपो जयपुर 1972-73
- गाँधी, एम. के.: गाँधी जी की आत्मकथा, अनु. पोद्दार, महावीर प्रसाद 1994
- गाँधी, एम. के.: माई एक्सपेरिमेन्ट विद ट्रूथ, वाल्यूम प्प् अहमदाबाद
- चिन्तामणि, वी. वाई.: भारतीय राजनीति के अस्सी वर्ष, 1940
- पट्टाभिसीतारमैया: काँग्रेस का इतिहास वाॅल्यूम II
Tags:
असहयोग आंदोलन