बौद्ध धर्म के संस्थापक, चार आर्य सत्य, साहित्य

बौद्ध धर्म के संस्थापक
गौतम बुद्ध

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध हैं । जिनका जन्म नेपाल की तराई में कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी गाँव में हुआ । बुद्ध ने जो उपदेश और शिक्षा दी वह बौद्ध धर्म के नाम से जानी जाती है । भारत में बौद्ध धर्मावलम्बियों की संख्या करीब 60.30 लाख है जो कुल जनसंख्या का 0.77 प्रतिशत है । 

बौद्ध धर्म की विशेषताएँ चार आर्य सत्य

बौद्ध धर्म की विशेषताएँ चार आर्य सत्य हैं:- 
  1. जीवन दुःखमय है । 
  2. प्रत्येक दुःख का कारण होता है । 
  3. दुःख से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है । 
  4. दुःख से छूटने का मार्ग भी है जिसे दुःख निरोधगामिनी प्रतिपक्ष कहते हैं । 
बौद्ध धर्म में मोक्ष प्राप्ति को जीवन का मुख्य लक्ष्य बताया गया है । बौद्ध धर्म पुर्नजन्म में विश्वास नहीं करता है बल्कि यह स्वीकार करता है कि आत्मा शरीर की तरह नश्वर है । 

बौद्ध धर्म की लोकप्रियता इसी से लगाया जा सकता है कि भारत ही नहीं इसे मानने वाले की संख्या भारत के बाहर भी है । जैसे चीन, जापान, मलाया एवं तिब्बत आदि ।

बौद्ध धर्म के साहित्य

बौद्ध साहित्य की भी सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्ता है। बौद्ध साहित्य का संकलन चार बौद्ध संगीतियों के माध्यम से हुआ। कई स्वतंत्र ग्रथ भी लिखे गए। बौद्धों का अधिकांश साहित्य पालि भाषा में है । संस्कृत में भी बौद्ध साहित्य लिखा गया है। पालिभाषा में लिखा गया समस्त बौद्ध साहित्य तीन पिटकों में संकलित है। ये तीन पिटक है - विनयपिटक, सुत्तपिटक, अभिम्मपिटक, इनके अतिरिक्त अट्ट्टकहा, जातक कथा, इतिहास ग्रंथ। 

बौद्ध साहित्य का मूल आधार है-त्रिपिटक साहित्य, इसके बाद जो कुछ भी लिखा गया वह इनकी व्याख्या स्वरूप ही लिखा गया। इसे अनुपिटक साहित्य कहा जाता है। इसका प्रमुख साहित्य है- अट्टकहा।

(1) त्रिपिटक

इनकी रचना ई0पू0 तीसरी शताब्दी तक हो चुकी थी।

(क) विनयपिटक: - विनयपिटक में बौद्ध धर्म एवं संघ के नियमों का संकलन है। इसमें बौद्ध भिक्षु तथा भिक्षुणियों के दिनचर्या के सामान्य नियमों का विस्तृत वर्णन है। इसके तीन भाग है। सुत्तविभंग - महाविभंग और भिक्षुणीविभंग खन्धक - महावग्ग और चुल्लवग्ग परिवार पाठ। 

(ख) सुत्तपिटक:- अथार्त सूत्रों का पिटक। इसमें बौद्ध धर्म का वर्णन किया गया है बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण विश्लेषण इसके पांच भागों में संकलित है। दीघ निकाय, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय, खुद्दक निकाय।

(ग) अभिधम्मपिटक:- अभि अर्थात उच्चतर। इस प्रकार इसका अर्थ हुआ उच्चतर धर्म। इसमें बुद्ध के विचारों का वर्णन है। इसके प्रमुख भाग है:- धम्मसंर्गाण, विभंग, धातुकथा, पुग्गनपंचति, कथावत्थु, यमक, पट्ठाण। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कथावत्थु। इसका संकलन तीसरी बौद्ध संगीति में मोग्गलिपुत्र तिस्स ने किया था।

2. जातक कथाएं

549 जातक कथाआ ंे का बौद्ध साहित्य में बहुत अधिक महत्व है। महात्मा बुद्ध के पर्वू जन्मों की विस्तृत कथाएं इनमें संकलित है। बुद्ध बुद्धत्व प्राप्त करने से पूर्व बोधिसत्व कहलाते थे। उनके पूर्व जन्मों के मनुष्य तथा पशु-पक्षी के रूपों का वर्णन है। वास्तव में जातक कथाओं का महत्व अमूल्य है। मात्र कला एवं साहित्य के संदर्भ में ही नहीं बल्कि जातक कथाओं का महत्व भारतीय संस्कृति एवं भारतीय मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में काफी है। 
बुद्ध के बाद से लगभग 1500 वर्षांे तक बौद्ध साहित्य लिखा जाता रहा। 

बौद्ध संस्कृति हमें सदाचार एवं सत्कर्म की शिक्षा देती है। सामाजिक समानता का भाव हमें मानवता सिखाता है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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