भक्ति आंदोलन के उदय के क्या कारण थे भारतीय समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ सर्वप्रथम दक्षिण भारत में हुआ और उसके उपरान्त यह आन्दोलन उत्तर भारत में शुरू हुआ। इसके उपरान्त धीरे-धीरे यह आन्दोलन सम्पूर्ण भारत में फैल गया। रामानुाचार्य के पश्चात् भक्ति आन्दोलन का विकास तीव्रगति से हुआ। और भारत के प्रायः सभी भागों में सन्तों की मधुर वाणी गुंजार उठी। पंजाब में गुरुनानक ने इस भावना का नेतृत्व किया, राजस्थान में मीरा, उत्तरप्रदेश में रामानन्द व उनके शिष्यों ने भक्ति परम्परा को प्रबलतर बना दिया। कबीर, नानक, रैदास, बल्लभचार्य, तुलसीदास ने इस परम्परा की को विकसित किया। बंगाल के चैतन्य महाप्रभु दक्षिण भारत में निम्बार्क, माधवाचार्य, सन्त तुकाराम, नामदेव, लक्ष्मणभट्ट इत्यादि सन्तों ने भक्ति आन्दोलन को बढ़ाया। भक्ति आन्दोलन का प्रभाव मानव के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ा। 14वीं 15वीं तथा 16वीं शताब्दियों में भक्ति की लहर विशेष रूप से प्रभावित हुई। 

भक्ति आंदोलन के उदय के कारण

भक्ति आन्दोलन के उदय के कारण अग्र प्रकार थे। (1) ब्राह्मणवाद का जटिल स्वरूप (2) जाति प्रथा की जटिलता (3) मुस्लिम अत्याचारों से रक्षा का मार्ग

भक्ति आंदोलन का धार्मिक जीवन पर प्रभाव

भक्ति आन्दोलन के सन्तों ने पौराणिक धर्म के निर्जीव पूजा-पाठ, व्रत, प्रभाव आदि बाह्य आडम्बरों का जी भरकर विरोध किया और चरित्र की पवित्रता पर बल दिया। इस आन्दोलन के फलस्वरूप हिन्दू तथा मुसलमानों में एकत्व की स्थापना हुई और प्राचीन काल से चले आ रहे धार्मिक पृथक्करण का अन्त होने लगा। भक्ति आन्दोलन के सन्तों ने प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर की सन्तान बताते हुए सभी को आध्यात्मिक अधिकार दिलाने की चेष्टा की। भक्ति आन्दोलन के उपदेशकों एवं सुधारकों ने भारत में चेतना तथा प्रगतिशील विचारों की नई विचारधारा को जन्म दिया। सारे हिन्दू धर्म पर नवीन विचारों का प्रभाव पड़ा।

भक्ति आंदोलन का भारतीय समाज पर प्रभाव

भक्ति आन्दोलन के सन्तों ने जात-पात का खण्डन किया तथा सामाजिक सामनता पर बल दिया। इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप जनता में समाज सेवा की भावना उत्पन्न हुई जो भक्ति आन्दोलन का अच्छा प्रभाव था। भक्ति आन्दोलन के सन्तों ने सभी धर्मो की आधारभूत समानता पर बल दिया। एकेश्वरवाद का प्रचार किया। भक्ति आन्दोलन का भारतीय इतिहास में विशेष महत्व है। इसने भक्ति का अक्षय स्त्रोत खोल दिया। संस्कृत तथा क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य में वृद्धि हुई। मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन से समाज सुधार के साथ-साथ साहित्य, धर्म, की कीर्ति में वृद्धि हुई।

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