कुषाणों के शासन काल में आचार-व्यवहार एवं
संस्कृति के आदान-प्रदान द्वारा भारतीय संस्कृति को नया आयाम मिला। शक - कुषाण काल में गांधार प्रदेश
में ग्रीक कलाकारों ने अपनी शैली से जिन भारतीय विषयों एवं प्रतीकों का कलात्मक रूपायन किया, उसे ही
गांधार शैली कहा जाता है। गांधार शैली की मूर्तियां काबुल से खुतान तक उपलब्ध होती हैं। इस शैली के शिल्पकार ग्रीक
थे, किंतु उनकी कला का आधार भारतीय अभिप्राय एवं प्रतीक थे।
कुमार स्वामी ने तक्षषिला से प्राप्त गांधार शैली की सुंदर सर्वतोन्द्रिका नारी मूर्ति, शिवमूर्ति, चतुर्भुजी
नारी मूर्ति का उल्लेख किया है। वस्तुतः कुषाणकालीन राजाओं की छत्रछाया में गांधार शैली का विकास हुआ।
गांधार प्रदेश के विभिन्न स्थानों से प्राप्त मूर्ति सम्पदा भूरे - स्लेटी पत्थर की बनी है। इस शैली की बहुत सी ऐसी भी मूर्तियां हैं, जिन्हें पाषाण, महीन पिसे चूने और पकाई मिट्टी
से बनाया गया है, तथा उन्हें स्वर्णिम रंग से रंग कर और अधिक सुंदर बना दिया जाता है।
गांधार शैली की विशेषताएं
गांधार कला की विशेषताएं निम्नांकित है :-
- बुद्ध के जीवन की घटनाएं मुख्य विषय रहे।
- बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्ति की अधिकता।
- जातक कथाओं का चित्रण।
- यूनानी भारतीय शैली का मिश्रित प्रभाव।
- इस कला की मूर्तियों में शरीर की आकृति को हमेशा यथार्थ रूप में दर्शाया गया है।
- बुद्ध की मूर्तियों का मुख ग्रीक देवता अपोल से मिलता है।
- यूनानी देव-देवी और गाथाओं के दृश्य।
- भारतीय देवता और देवियां।
- भारतीय अलंकरण।
- ग्रीक प्रभाव से उत्पन्न होने पर भी आंतरिक एवं बाह्म रूप से पूर्णतः भारतीय हैं।
- कलात्मकता एवं परिवेष में मिश्रण से समृद्ध हुई, इस मूर्तिकला में नाक-नक्ष व परिधान का भारतीयकरण हुआ है। एक मूर्ति में यूनानी वृक्ष की पत्तियां के मध्य बुद्ध का आसन है।
- परिधान का कंधे पर रखना, सिलवटें होना इसकी लोकप्रिय विधा है।
- शरीर के अपेक्षित उभारों को सुव्यक्त किया है।
- कुबेर को आसवपायी, यक्षराज को भारी उदय के रूप में रूपायित किया है। यह भारतीय रूप है।
- गांधार शैली में ऊंचे घुटनों तक के जूते, फ्राॅक, चुन्नटदार अधोवस्त्र, विशिष्ट केष-विन्यास अपनी विशेषता है।
- गांधार शैली में अंलकारों का बाहुल्य है। यहां तक कि बुद्ध एवं अन्य बौद्ध भिक्षु भी राजसी प्रतीत होते हैं।
- प्रतीकों का प्रचुरता में प्रयोग हुआ है। अनुपम नक्काशी है, किन्तु प्रभामंडल भारतीय है।
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गांधार शैली