ग्राफ्टिंग (कलम बंधन) क्या है? कलम बांधने की विधियां

कलम बंधन (Graftting)

कलम बंधन (Graftting) एक ऐसी कला हैं जिसमें दो विभिन्न पौधों के सजीव भागों को इकट्ठा कर इस तरह से मिलाप किया जाता है कि बाद में वे नये पौधे के रुप में अपना विकास कर सके।  
इस विधि में पौधे के दो भाग उपयोग में लाए जाते हैं।

1. सांकुर शाख : कलम का उपरी भाग जिसे मूलवृंत पर लगाया जाता है, तथा तना, टहनी एवं शाखाओं के रुप में विकसित होते है और फल धारण करते है, सांकुर शाख कहलाता है।

2. मूलवृंत:  कलम का वह भाग जिसपर सांकुर शाख लगाए जाते है तथा जड़ एवं धड़ के रुप में विकसित होते है मूलवृंत कहलाता है।

ग्राफ्टिंग की विधियां / कलम बांधने की विधियां

1. साधारण कलम बंधन (Simple Grafting): इस विधि में मूलवृंत को जमीन की सतह से 20-25 से0मी0 की उॅचाई से काट देते है। ग्राफ्टींग नाईफ (चाकू) की सहायता से छाल तथा लकड़ी के भाग को तिरछा काटते हुए 2.5-3.0 से0मी0 की लम्बाई में कट लगाते है। स्वेछानुसार चयनित प्रभेद के मातृवृक्ष से सांकुर शाखा को काट लिया जाता है। तत्पष्चात् मूलवृंत के कटान के बराबर सांकुर शाखा में भी कटान बना दिया जाता है। फिर दोनों को आपस में मिलाकर पाॅलीथीन की पट्टी से बाॅध दिया जाता है। 

2. जिह्वा कलम बंधन (Tongue Grafting): यह साधारण कलम बंधन का ही विकसित रुप है। इसमे मूलवृंत के आकार बनाकर दोनों को एक दूसरे में फंसाकर पाॅलीथीन पट्टी से बाॅध दिया जाता है। 

3. दीर्ण कलम बंधन (Wedge or cleft Grafting): प्रवर्धन के इस विधि में मूलवृंत को 20-25 स0मी0 की उॅचाई से काटने के पश्चात् चाकू से 3-4 से0मी0 लम्वाई में एक दीर्ण बना दिया जाता है। मातृवृक्ष से काटकर लाये गये सांकुर शाखा पर समान लम्बाई के स्फान बना दिया जाता है। इसके पश्चात् सांकुर शाखा के स्फान को मूलवृंत के दीर्ण में फसाकर पाॅलीथीन पट्टी की सहायता से बाॅध दिया जाता है। 

4. पार्श्व कलम बंधन (Side Grafting): मूलवृंत के पार्श्व में चाकू की सहायता से 30 डिग्री के कोण पर 2. 5-3.0 से0मी0 लम्बाई में तिरछा कटान लगा दिया जाता है। फिर चयनित कर शाखा कचले पर समान लम्बाई में कटान लगाकर दोनों को एक दूसरे से सटाकर पाॅलीथीन पट्टी से बांध दिया जाता है। 45-60 दिनों  के पश्चात् नये पौधे का विकास होना प्रारंभ हो जाता है। 

5. विनियर कलम बंधन (Veneer Grafting): कलम बंधन की यह सामान्य तकनीक है, जिसमें पेंसिल की मोटाई के लगभग एक वर्ष पुराने मूलवृंत का उपयोग किया जाता है। चयनित सांकुर शाख के पत्तियों को कलम उद्यान विज्ञान 37 बंधन के एक सप्ताह पूर्व काटकर हटा दिया जाता है। मूलवृंत के मध्य भाग पर 3-5 से0मी0 आकार का एक तिरछा चीरा लगाया जाता है। सांकुर शाखा पर भी इसी आकार का तिरछा चीरा लगाया जाता है। उसके बाद साकुर शाखा एवं मूलवंृत के चीरा वाले भाग को एक दूसरे से सटाकर पालीथीन पट्टी की सहायता से बाॅध दिया जाता है। इसके लिए जुलाई-अगस्त माह सर्वोत्तम होता है। 

6. प्राकुर कलम बंधन (Stone Grafting): इस विधि में 7-10 दिनों की आयू की मूलवृंतो पर जिह्वा कलम बंधन विधि द्वारा साकं ुर शाखा का प्रत्यारोपण किया जाता है। यह कलम बंधन उच्च अद्रता वाले क्षेत्रों में सर्वोत्तम पायी गयी है। अखरोट के पौधों के प्रवर्धन हेतु यह विधि अधिक उपयोगी है।

कलिकायन क्या है

कलिकायन कलम बंधन (Graftting) की एक प्रक्रिया है, जिसमें प्रवर्धन हेतु मात्र एक ही कली का उपयोग किया जाता है। कली को मूलवृंत पर चढ़ा कर नये पौधों का सृजन किया जाता है। 

कलिकायन द्वारा पौधा तैयार करने की विधियां 

कलिकायन द्वारा पौधा तैयार करने की विधियां निम्न प्रकार है: 

(i) ‘‘टी‘‘कलिकायन : तैयार मूलवृंत के जमीन की सतह से 20-25 से0मी0 की उॅचाई पर एक समानान्तर और मध्य में एक लम्बबत् (T) ‘टी‘ आकार का स्थान तैयार कर लिया जाता है। चयनित मातृवृक्ष से स्वस्थ कलिका चुनकर 2.5-3.0 से0मी0 लम्बाई काकलिका निकाल लेते है। उसके बाद मूलवृंत पर तैयार किये गये ‘‘टी‘‘ (T) शक्ल के बने स्थान पर प्रवेश कराकर इस प्रकार बांध दिया जाता है कि कालिका का बढ़ने वाला षिरा खुला रहे। 

(ii) ‘‘आई‘‘ (I) कलिकायन: इस विधि में कलिका को आयतकार आकृति में निकाला जाता है। मूलवंृत पर ‘‘आई‘‘ (I) आकार के चीरा लगाए जाते है। मूलवृंत के चीरा वाले भाग में बडींग नाइफ की सहायता से छाल को ढ़ीला किया जाता है। तदोपरांत कलिका को प्रवेश कराकर पाॅलीथीन पट्टी से बाॅध दिया जाता है।

(iii) बलय कलिकायन : इस विधि में मूलवृंत से छाल पर वलय (त्पदह) बनाकर वडींग नाईफ की सहायता से छाल को हटा दिया जाता है। पुनः कलिका को इसी आकार में वलय निकालकर मूलवृंत पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके लिए मूलवृंत और सांकुर शाखा की मोटाई एक जैसी होनी चाहिए। सामान्यतःयह विधि बेर, आडू,  शहतूत आदि फल वृक्षों के प्रवर्धन हेतु उपयुक्त है। 

(iv) उलटा ‘‘टी‘‘ कलिकायन : यह विधि ‘‘टी‘‘ कलिकायन के हीं समान है। अंतर सिर्फ इतना है कि मूलवृंत पर उलटा ‘‘टी‘‘ (┴) आकार का चीरा लगाकर उपयुक्त आकार का कलिका निकालकर मूलवृंत पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। 

(v) चिप कलिकायन: मूलवृंत पर जमीन की सतह से 20-25 से0मी0 की उँचाई पर लगभग 5 से0मी0 लम्बाई का एक खाॅचा  तैयार करते है। खाॅचे के दोनों षिरो  कोअंदर की तरफ 45 डिग्री का कोण बनाते हुए काटा जाता है। सामान आकार केकलिका को मूलवृंत पर बने खांचे में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह विधि से प्रवर्धन सामान्यतः फरवरी या मार्च के महीने में की जाती है। अंगुर, सेव आदि के पौधे इस विधि द्वारा सुगमता पूर्वकतैयार किये जाते है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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