लोक उद्यम की अवधारणा समाजवादी अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता के
रूप में देखा जा सकता है। इस प्रकाकर ऐसे उद्यम, लोक उद्यम कहलाते हैं जिनका
नियन्त्रण एवं प्रबन्ध तथा संचालन का उद्देश्य सामान्य जनता से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता
है। आपको यह ध्यान देना भी अत्यन्त आवश्यक है कि इन उद्यमों पर नियंत्रण एवं स्वामित्व
दोनों की अनिवार्यता नहीं पायी जा सकती है। नियंत्रण एवं स्वामित्व अलग-अलग संस्थाएँ
कर सकती हैं लेकिन एक का प्रत्यक्ष रूप से सरकार या लोक सत्ताओं के हाथ में पाया
जाना अति आवश्यक हो जाता है। दोनों की वास्तविक शक्ति अन्तः सरकाकर के अधीन ही
पायी जाती है, चाहे तो सरकार इन उद्यमों की स्थापना, संचालन आदि के लिए निजी एवं
अर्द्धसरकारी संस्थाओं का सहयोग ले सकती है।
लोक उद्यम के प्रकार
विभिन्न आधारों पर लोक उद्यमों को अलग-अलग श्रेणियों में विभक्त किया गया है, जिनको निम्न रूप में समझाया जा सकता है।- स्वामित्व एवं नियंत्रण के आधार पर लोक उद्यम
- उद्देश्यों के आधार पर लोक उद्यम
- विभागीय आधार पर लोक उद्यम
- प्रकृति के आधार पर लोक उद्यम
- शासकीय आधार पर लोक उद्यम
1. स्वामित्व एवं नियंत्रण के आधार पर लोक उद्यम
लोक उद्यमों पर स्वामित्व एवं
नियंत्रण के आधार पर ये निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं -
1. पूर्ण स्वामित्व एवं नियंत्रण वाले लोक उद्यम: ये लोक उद्यम वे उद्यम हैं जिस
पर सरकार या सरकारी संस्थाओं का पूर्ण स्वामित्व तथा नियंत्रण होता है। इन
उद्यमों को संचालन करने की पूर्ण जिम्मेदारी सरकार की ही होती है। ये उद्यम
सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों एवं कार्यक्रमों के आधार पर संचालित किये जाते हैं।
2. अपूर्ण स्वामित्व एवं नियंत्रण वाले लोक उद्यम: इन उद्यमों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण एवं स्वामित्व नहीं पाया जाता है। स्वामित्व एवं नियंत्रण का एक भाग अन्य निगम या संगठन के हाथ में होता है। लेकिन अन्तिम रूप से सरकार की प्रभावी मानी जाती है।
2. अपूर्ण स्वामित्व एवं नियंत्रण वाले लोक उद्यम: इन उद्यमों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण एवं स्वामित्व नहीं पाया जाता है। स्वामित्व एवं नियंत्रण का एक भाग अन्य निगम या संगठन के हाथ में होता है। लेकिन अन्तिम रूप से सरकार की प्रभावी मानी जाती है।
2. उद्देश्यों के आधार पर लोक उद्यम
लोक उद्यमों को उनके उद्देश्यों के आधार
पर वाणिज्यिक लोक उद्यम तथा गैर-वाणिज्यिक लोक उद्यम दो भागों में रखा गया
है।
1. वाणिज्यिक लोक उद्यम: वाणिज्यिक लोक उद्यमों से हमारा तात्पर्य ऐसे उद्यमों से है जो वाणिज्यिक / व्यापारिक क्रियाकलापों, कार्यक्रमों एवं नीतियों से सम्बन्धित होते हैं। इन लोक उद्यमों की स्थापना एवं संचालन वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये किया जाता है तथा लाभ अर्जन को महत्व दिया जाता है।
2. गैर-वाणिज्यिक लोक उद्यम: इस श्रेणी में ऐसे लोक उद्यमों को शामिल किया जाता है जिनका उद्देश्य लाभ अर्जन न करके सार्वजनिक कार्यों के अन्तर्गत लोक-कल्याण को रखा गया है। शिक्षण संस्थाएँ, स्वास्थ्य संस्थाएँ, जल संस्थाएँ आदि को गैर-वाणिज्यिक लोक उद्यम की श्रेणी में रखा जाता है।
1. वाणिज्यिक लोक उद्यम: वाणिज्यिक लोक उद्यमों से हमारा तात्पर्य ऐसे उद्यमों से है जो वाणिज्यिक / व्यापारिक क्रियाकलापों, कार्यक्रमों एवं नीतियों से सम्बन्धित होते हैं। इन लोक उद्यमों की स्थापना एवं संचालन वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये किया जाता है तथा लाभ अर्जन को महत्व दिया जाता है।
2. गैर-वाणिज्यिक लोक उद्यम: इस श्रेणी में ऐसे लोक उद्यमों को शामिल किया जाता है जिनका उद्देश्य लाभ अर्जन न करके सार्वजनिक कार्यों के अन्तर्गत लोक-कल्याण को रखा गया है। शिक्षण संस्थाएँ, स्वास्थ्य संस्थाएँ, जल संस्थाएँ आदि को गैर-वाणिज्यिक लोक उद्यम की श्रेणी में रखा जाता है।
3. विभागीय आधार पर लोक उद्यम
विभागीय हस्तक्षेप के आधार पर लोक उद्यमों को
निम्नलिखित दो भागों में रखा गया है।
1. विभागीय लोक उद्यम: विभागीय लोक उद्यमों से हमारा तात्पर्य ऐसे उद्यमों से है जो सरकारी विभागों के अधीन संचालित होते हैं तथा इन सम्बन्धित विभागों की जबावदेयता सीधे सराकर के प्रति होती है। जो लोक उद्यम जिस क्षेत्र से सम्बन्धित होता है उस पर उसी कार्यक्षेत्र के सरकारी विभाग का स्वामित्व एवं नियंत्रण पाया जायेगा। ये विभागीय लोक उपक्रम पूर्ण रूप से सरकारी कानून एवं नियमों के अधीन ही क्रियान्वित होते हैं। सम्बन्धित विभाग स्वयं की रणनीति एवं योजना बनाने एवं उसे क्रियान्वित करने के लिये स्वतंत्र नहीं हो सकता। इसीलिये विभागीय लोक उद्यमों के संचालन में अधिकारी एवं कर्मचारी किसी भी जिम्मेदारी से बचना चाहता है।
2. गैर-विभागीय लोक उद्यम: सरकारी विभागों में व्याप्त अनियमितताओं एवं बुराइयों से बचने के लिए सरकार जब लोक उद्यमों की स्थापना, संचालन एवं स्वामित्व किसी अन्य निगम, सार्वजनिक संस्था या बोर्ड को सौंप देती है तब उन उद्यमों को गैर-विभागीय लोक उद्यम की संज्ञा दी जाती है। इन उद्यमों के संचालन के लिये सम्बन्धित निगम, संस्था या बोर्ड स्वतंत्रता के साथ कार्य कर सकता है तथा उद्यमों के विस्तार एवं विास के लिए रणनीति एवं योजनायें बना सकता है। सरकार एवं सरकारी विभाग का सीधा हस्तक्षेप नहीं पाया जाता है।
1. विभागीय लोक उद्यम: विभागीय लोक उद्यमों से हमारा तात्पर्य ऐसे उद्यमों से है जो सरकारी विभागों के अधीन संचालित होते हैं तथा इन सम्बन्धित विभागों की जबावदेयता सीधे सराकर के प्रति होती है। जो लोक उद्यम जिस क्षेत्र से सम्बन्धित होता है उस पर उसी कार्यक्षेत्र के सरकारी विभाग का स्वामित्व एवं नियंत्रण पाया जायेगा। ये विभागीय लोक उपक्रम पूर्ण रूप से सरकारी कानून एवं नियमों के अधीन ही क्रियान्वित होते हैं। सम्बन्धित विभाग स्वयं की रणनीति एवं योजना बनाने एवं उसे क्रियान्वित करने के लिये स्वतंत्र नहीं हो सकता। इसीलिये विभागीय लोक उद्यमों के संचालन में अधिकारी एवं कर्मचारी किसी भी जिम्मेदारी से बचना चाहता है।
2. गैर-विभागीय लोक उद्यम: सरकारी विभागों में व्याप्त अनियमितताओं एवं बुराइयों से बचने के लिए सरकार जब लोक उद्यमों की स्थापना, संचालन एवं स्वामित्व किसी अन्य निगम, सार्वजनिक संस्था या बोर्ड को सौंप देती है तब उन उद्यमों को गैर-विभागीय लोक उद्यम की संज्ञा दी जाती है। इन उद्यमों के संचालन के लिये सम्बन्धित निगम, संस्था या बोर्ड स्वतंत्रता के साथ कार्य कर सकता है तथा उद्यमों के विस्तार एवं विास के लिए रणनीति एवं योजनायें बना सकता है। सरकार एवं सरकारी विभाग का सीधा हस्तक्षेप नहीं पाया जाता है।
4. प्रकृति के आधार पर लोक उ़द्यम
लोक उद्यमों की प्रकृति के आधार पर सेवा
उद्यमों तथा विनिर्माण उद्यमों के अन्तर्गत रखा जा सकता है।
1. सेवा उद्यम: इस प्रकार के लोक उद्यमों में वे उद्यम शामिल किये जाते हैं जिनकी स्थापना जनता को आवश्यक सेवायें उपलब्ध कराने के लिये की जाती हैं। रेल, सड़क, परिवहन, ऊर्जा, बैंकिंग, स्वास्थ्य संस्थायें, शिक्षण संस्थायें, पर्यावरण संस्थायें, जल निगम आदि उद्यम इस श्रेणी में शामिल किये जाते हैं। इन उद्यमों के अन्तर्गत पूँजीगत वस्तुओं का उत्पादन नहीं किया जाता है। सामान्य रूप से ये उद्यम सामाजिक व आर्थिक सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं।
2. विनिर्माण उद्यम: विनिर्माण लोक उद्यम से तात्पर्य ऐसे उद्यमों से लगाया जाता है जिसके द्वारा वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है चाहे उन वस्तुओं का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों में हो या निजी कार्यों में। लोहा, कोयला, सुरक्षा सामग्री, खनन, कपड़ा, कागज, घड़ी, कार तथा अन्य वस्तुओं का सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत उत्पादन करने वाले उद्यम इस श्रेणी में रखे जाते हैं।
1. सेवा उद्यम: इस प्रकार के लोक उद्यमों में वे उद्यम शामिल किये जाते हैं जिनकी स्थापना जनता को आवश्यक सेवायें उपलब्ध कराने के लिये की जाती हैं। रेल, सड़क, परिवहन, ऊर्जा, बैंकिंग, स्वास्थ्य संस्थायें, शिक्षण संस्थायें, पर्यावरण संस्थायें, जल निगम आदि उद्यम इस श्रेणी में शामिल किये जाते हैं। इन उद्यमों के अन्तर्गत पूँजीगत वस्तुओं का उत्पादन नहीं किया जाता है। सामान्य रूप से ये उद्यम सामाजिक व आर्थिक सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं।
2. विनिर्माण उद्यम: विनिर्माण लोक उद्यम से तात्पर्य ऐसे उद्यमों से लगाया जाता है जिसके द्वारा वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है चाहे उन वस्तुओं का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों में हो या निजी कार्यों में। लोहा, कोयला, सुरक्षा सामग्री, खनन, कपड़ा, कागज, घड़ी, कार तथा अन्य वस्तुओं का सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत उत्पादन करने वाले उद्यम इस श्रेणी में रखे जाते हैं।
5. शासकीय आधार पर लोक उद्यम
शासकीय आधार पर लोक उद्यमों को
निम्नलिखित दो प्रकारों के उद्यमों के अन्तर्गत रखा गया है।
1. आरक्षित लोक उद्यम: आरक्षित लोक उद्यमों के अन्तर्गत वे लोक उद्यम शामिल
किये जाते हैं जो सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित वस्तुओं एवं
सेवाओं का ही उत्पादन कर सकते हैं जैसे सुरक्षा सामग्री, रेल, परमाणु ऊर्जा आदि
के क्षेत्र में संचालित उद्यम इस श्रेणी में रखे जाते हैं। इन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र वस्तुओं
एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं कर सकता है।
2. गैर-आरक्षित लोक उद्यम: गैर-आरक्षित लोक उद्यमों से हमारा तात्पर्य ऐसे उद्यमों से है जो ऐसे क्षेत्रों में वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं जिन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन कर सकता है। ऐसा सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के एकाधिकार को रोकने एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये किया जाता है।
1. जहाँ तक लोक उद्यमों की उपयोगिता का सम्बन्ध है, इन उद्यमों की उपयोगिता का पूर्ण एवं सही रूप में आंकलन करना इतना आसान नहीं है। इन उद्यमों की उपायोगिता का आंकलन इन उद्यमों की कार्यक्षमता तथा उत्पादन क्षमता की मात्रा पर निर्भर किया जाता है। यदि लोक उद्यमों का संचालन पूर्ण कुशलता के साथ किया जाये तो समाज के कल्याण को एक बढ़ी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है तथा समाज इन उद्यमों के वास्तविक उद्देश्यों के नजदीक पहुँच सकता है। यहाँ पर आपको यह समझना अत्यनत आवश्यक होगा कि लोक उद्यमों की उपयोगिता का सम्बन्धकेवल वर्तमान समयावधि तक ही सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की प्रकृति के आधार पर इन उद्यमों का क्रियान्वयन भविष्य के लिये भी सामाजिक एवं आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। इसके विपरीत इन उद्यमों को सरकार की गलत नीतियों के साथ जोड़ा जाय तो राष्ट्रीय हितों के लिये उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकते।
2. लोक उद्यमों की उपयोगिता का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि इन उद्यमों का विभिन्न अवधियों में किसी देश के अन्दर जनता का किस रूप में विकास हुआ है। एक ओर इन उद्यमों के भौतिक निष्पादन के साथ इनकी उपयेागिता को जोड़ा जाता है वहीं अनेक ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो लोक उद्यमों के बिल्कुल विपरीत होने पर भी उनकी सफलता लोक उद्यमों की उपयोगिता पर निर्भर करती है।
3. लोक उद्यमों की उपयेागिता का आंकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनके उपयोगिता का प्रभाव प्रसरणात्मक होता है जिससे निजी क्षेत्र के उद्यम भी इन लोक उद्यमों की उपयेागिताओं का उपयोग करने में पीछे नहीं हैं। विकासशील तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में भी लोक उद्यमों की उपयोगिता का उपयोग जनता के साथ पूंजीवादी वर्ग द्वारा भी सामान्य तथा अनिवार्य रूप से किया जा रहा है।
4. एक बार लोक उद्यमों की उपयोगिता का उपयोग करने के बाद नये विकसित सार्वजनिक तथा निजी उद्यमों को लोक उद्यमों के महत्व के विपरीत नहीं देखा जा सकता। भारत में पूँजीवादी ताकतों द्वारा न्याय, शान्ति, सुरक्षा एवं अन्य महत्वपूर्ण सुविधाओं का लाभ लेते हुए ही विदेशी एवं स्वदेशी पूँजीवादियों ने विभिन्न क्षेत्रों में सफलतायें प्राप्त की हैं।
5. सामान्य रूप से यह देखा गया कि लोक उद्यमों की उपयोगिता का प्रयोग उसी देश के लिये अधिक महत्वपूर्ण है। लोक उद्यमों की उपयोगिताओं का उच्च स्तर सरकार के आर्थिक तथा सामाजिक दवि को भी इंगित करता है। वर्तमान में विकसित तथा पिछड़े देशों में अनेक प्रकाकर की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याओं को देखा जा रहा है। लोक उद्यमों की उपयोगिता का अलग-अलग तथा विभिन्न दिशाओं में जो आंकलन किया गया है उसी के परिणाम स्वरूप अलग-अलग राष्ट्रों में विभिन्न प्रकार की समस्यायें विद्यमान हैं।
2. गैर-आरक्षित लोक उद्यम: गैर-आरक्षित लोक उद्यमों से हमारा तात्पर्य ऐसे उद्यमों से है जो ऐसे क्षेत्रों में वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं जिन क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन कर सकता है। ऐसा सरकार द्वारा निजी क्षेत्र के एकाधिकार को रोकने एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिये किया जाता है।
लोक उद्यमों की उपयोगिता
आपको यह भी स्पष्ट होना अत्यन्त आवश्यक समझा गया है कि लोक उद्यमों की क्या उपयोगिता है। लोक उद्यमों की उपयोगिता को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर आसानी से समझाया जा सकता है।1. जहाँ तक लोक उद्यमों की उपयोगिता का सम्बन्ध है, इन उद्यमों की उपयोगिता का पूर्ण एवं सही रूप में आंकलन करना इतना आसान नहीं है। इन उद्यमों की उपायोगिता का आंकलन इन उद्यमों की कार्यक्षमता तथा उत्पादन क्षमता की मात्रा पर निर्भर किया जाता है। यदि लोक उद्यमों का संचालन पूर्ण कुशलता के साथ किया जाये तो समाज के कल्याण को एक बढ़ी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है तथा समाज इन उद्यमों के वास्तविक उद्देश्यों के नजदीक पहुँच सकता है। यहाँ पर आपको यह समझना अत्यनत आवश्यक होगा कि लोक उद्यमों की उपयोगिता का सम्बन्धकेवल वर्तमान समयावधि तक ही सीमित नहीं किया जा सकता बल्कि सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की प्रकृति के आधार पर इन उद्यमों का क्रियान्वयन भविष्य के लिये भी सामाजिक एवं आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। इसके विपरीत इन उद्यमों को सरकार की गलत नीतियों के साथ जोड़ा जाय तो राष्ट्रीय हितों के लिये उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकते।
2. लोक उद्यमों की उपयोगिता का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि इन उद्यमों का विभिन्न अवधियों में किसी देश के अन्दर जनता का किस रूप में विकास हुआ है। एक ओर इन उद्यमों के भौतिक निष्पादन के साथ इनकी उपयेागिता को जोड़ा जाता है वहीं अनेक ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो लोक उद्यमों के बिल्कुल विपरीत होने पर भी उनकी सफलता लोक उद्यमों की उपयोगिता पर निर्भर करती है।
3. लोक उद्यमों की उपयेागिता का आंकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनके उपयोगिता का प्रभाव प्रसरणात्मक होता है जिससे निजी क्षेत्र के उद्यम भी इन लोक उद्यमों की उपयेागिताओं का उपयोग करने में पीछे नहीं हैं। विकासशील तथा पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में भी लोक उद्यमों की उपयोगिता का उपयोग जनता के साथ पूंजीवादी वर्ग द्वारा भी सामान्य तथा अनिवार्य रूप से किया जा रहा है।
4. एक बार लोक उद्यमों की उपयोगिता का उपयोग करने के बाद नये विकसित सार्वजनिक तथा निजी उद्यमों को लोक उद्यमों के महत्व के विपरीत नहीं देखा जा सकता। भारत में पूँजीवादी ताकतों द्वारा न्याय, शान्ति, सुरक्षा एवं अन्य महत्वपूर्ण सुविधाओं का लाभ लेते हुए ही विदेशी एवं स्वदेशी पूँजीवादियों ने विभिन्न क्षेत्रों में सफलतायें प्राप्त की हैं।
5. सामान्य रूप से यह देखा गया कि लोक उद्यमों की उपयोगिता का प्रयोग उसी देश के लिये अधिक महत्वपूर्ण है। लोक उद्यमों की उपयोगिताओं का उच्च स्तर सरकार के आर्थिक तथा सामाजिक दवि को भी इंगित करता है। वर्तमान में विकसित तथा पिछड़े देशों में अनेक प्रकाकर की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याओं को देखा जा रहा है। लोक उद्यमों की उपयोगिता का अलग-अलग तथा विभिन्न दिशाओं में जो आंकलन किया गया है उसी के परिणाम स्वरूप अलग-अलग राष्ट्रों में विभिन्न प्रकार की समस्यायें विद्यमान हैं।
Tags:
लोक उद्यम