मंगोल कौन थे ? मंगोलो की पराजय के क्या कारण थे?

मंगोल जाति, मंगोलिया की बहादुर तथा लड़ाकू जाति थी। उन्होंने मध्य एशिया में आतंक मचा रखा था। मंगोलों ने मध्य एशिया के मुस्लिम राज्यों को छिन्न-भिन्न कर दिया और अफगानिस्तान, गजनी तथा पेशावर पर अधिकार कर लिया। उसके परिणामस्वरूप दिल्ली सल्तनत की पश्चिमी सीमाएं सुरक्षित नहीं रही। दिल्ली सुल्तानों के सामने पश्चिमी सीमा की सुरक्षा की समस्या पैदा हो गयी। दिल्ली सल्तनत काल में मंगोलों ने भारत पर अनेक बार आक्रमण किये, जिसका दिल्ली सल्तनत पर गंभीर प्रभाव पड़ा।

मंगोलो की पराजय के कारण

मंगोल आक्रमणकारियों की असफलता के अनेक कारण थे। 
  1. चंगेज खां ने भारत पर आक्रमण नहीं किया। उसकी मृत्यु के पश्चात् मंगोल में फूट पड़ गयी। ऐसी स्थिति में मंगोलों की आपसी वैमनस्यता के कारण उनकी शक्ति दुर्बल हो गयी। 
  2. मंगोल आक्रमणकारी अपने साथ अपने स्त्रियों तथा बच्चों को भी साथ लाते थे। इससे उनकी सैनिक कुशलता में कमी हो जाती थी। मंगोलों ं में अपने पूर्वजों के समान फुर्ती, गतिशीलता, धैर्य गुण नहीं थे।
  3. इल्तुतमिश तथा बलबन ने कूटनीति अपनाकर मंगोलों को भारत में प्रवेश नहीं करने दिया था, किन्तु अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सैन्य योग्यता एवं श्रेष्ठ सैनिकों द्वारा मंगोलों को बहुत बरु ी तरह पराजित किया। मंगोलों की अपक्ष्े ाा तुर्क सैनिक प्रशिक्षित एवं निपुण थे। अपने श्रेष्ठ सेनानायको की वजह से अलाउद्दीन मंगोलों के आक्रमण विफल कर पाया।

मंगोल आक्रमण का प्रभाव

दिल्ली सल्तनत की आंतरिक एवं बाह्य नीति पर मंगोलों के आक्रमण का गंभीर प्रभाव पड़ा। जब तक यह संकट रहा, तब तक दिल्ली के शासकों को अपनी सैनिक शक्ति मजबूत रखनी पड़ी। इल्तुतमिश से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक तक सभी सुलतानों को अपनी सेना पर सबसे अधिक ध्यान देना पड़ा था और अधिक धन व्यय करना पड़ा था। इसके अतिरिक्त उन्हें आंतरिक विद्रोहों तथा फूट को रोकने के लिये सतर्कता अपनानी पड़ी, जिससे आक्रमणकारी कोई लाभ न उठा सके। इन सुल्तानो ने शक्तिशाली सीमान्त नीति अपनाई। अपनी उत्तर-पश्चिम सीमा की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा, जिससे राजधानी दिल्ली सुरक्षित रह सके। बड़ा मात्रा मे  अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण करवाया गया। साथ ही एक बड़ी विशाल प्रशिक्षित सेना बनाई, जिसमें सैनिकों की भरती एवं विशेष सुविधायें सैन्य सामग्री का पूरा ध्यान रखा गया। 

दिल्ली सल्तनत कालीन सुल्तानांे में अलाउद्दीन खिलजी ही एकमात्र एसे ा सुल्तान निकला, जिसने मंगोल आक्रमणों का सामना करने के साथ-साथ साम्राज्य विस्तार की भी नीति अपनायी। जब मुहम्मद तुगलक ने ऐसा करने का प्रयास किया तो उसे विफलता का सामना करना पड़ा। इस प्रकार मंगोलों के आक्रमण के भय से सल्तनत की नीति प्रभावित होती रही। इस प्रकार मंगोल आक्रमणों  ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों को प्रभावित किया।

दिल्ली सुलतानों की मंगोल नीति

के.ए. निजामी के अनुसार दिल्ली के सुलतान उत्तर-पश्चिमी सीमा की रक्षा और मंगोलों के आक्रमणों को रोकने के लिए अपनायी गयी नीति निम्न है।
  1. अलगाव की नीति (1221 ई. से 1240 ई.)
  2. उदासीनता की नीति (1240 ई. से 1266 ई.)
  3. संघर्ष की नीति (1266 ई. से 1355 ई.)

1. अलगाव की नीति -

मंगोल आक्रमण का भय सबसे पहले सुल्तान इल्तुतमिश के समय में उत्पन्न हुआ। चगंजे खान के आक्रमणों ने ख्वारिज्म साम्राज्य को तहस-नहस कर डाला। इन परिस्थितियां में जलाउद्दीन मंगबरनी भारत के लाहौर, मुल्तान के क्षेत्र में पहुंच गया, किन्तु चंगेज खां उसका पीछा करता रहा। इल्तुतमिश इस समय अपनी शक्ति संगठित करने में लगा हुआ था। मंगबरनी ने इल्तुतमिश से सहायता मांगी। सिन्धु नदी के उस पार चंगेज खान की उपस्थिति ने इल्तुतमिश की स्थिति कमजोर कर दी। इन परिस्थितियों में इल्तुतमिश ने प्रतिरक्षा की नीति अपनाई, जिसके अनुसार दिल्ली सल्तनत को मध्य एशिया की राजनीति से दूर रखने के लिये अलगाव की नीति अपनायेगा।

जलाउद्दीन मंगबरनी के दूत की इल्तुतमिश ने हत्या करवा दी और शरण देने के लिए मना कर दिया। इस पक्र ार इल्तुतमिश ने मंगोलों ं को आपत्ति प्रकट करने का कोई मौका नहीं दिया। रजिया बेगम ने भी इल्तुतमिश की नीति का ही पालन किया। गजनी पर निरन्तर मंगोल आक्रमण से परेशान होकर करलूग ने भागकर भारत में आकर रजिया से मंगोलों के विरूद्ध संधि का एक प्रस्ताव किया, परन्तु संधि से इंकार कर रजिया ने अलगाव नीति को लागू रखा।

2. उदासीनता की नीति

1240 से 1266 ई. के मध्य तीन सुल्तानों बहराम शाह, मसूद शाह और नासिरूद्दीन महमदू ने शासन किया। इन सुलतानों की निर्बलता का लाभ उठाकर मंगोल पंजाब, सिंध, मुल्तान तक पहुंच गये थे। इन सुल्तानो के उदासीनता के नीति के कारण पश्चिमात्त्े ार सीमा पर मंगाले का प्रभाव बढ़ने लगा था।

3. संघर्ष की नीति

बलबन के गद्दी पर बैठते ही उसने मंगोलों के प्रति आक्रामक नीति अपनाई। व्यास नदी सल्तनत की सीमा मान ली गई। बलबन ने मंगोलों से सल्तनत की रक्षा करने के लिये सेना और प्रशासन में परिवर्तन किये। उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांतों में सैनिक क्षमता को बढ़ाया। लाहौर को सैनिक प्रांत बनाया। शेर खा को सूबेदार  नियुक्त कर उन प्रातं ो में नये किल े बनवाये एवं कुशल सेना नियुक्त की। मंगोलों के आक्रमण के भय से साम्राज्य विस्तार की नीति का परित्याग किया। फिर भी बलबन के दृढ़ प्रयासों के बावजूद 1279 में मंगोलों ने आक्रमण कर सतलज पार किया, जिसमें बलबन ने जवाब में अपने पुत्र को सेना लेकर भजे ा, जिसमें उसने मंगोलो को प्रभावी रूप से रोका, किन्तु इस युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई।

1292 ई. में हलाकू के पौत्र अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण किया। मुल्तान प्रांत के सुल्तान द्वारा मंगोलों को पराजित कर वापस जाने को विवश किया। अभी तक मंगोलों के आक्रमण लूटमार तक सीमित थे, परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के समय में उन्होंने भारत-विजय तथा प्रतिकार की भावना से आक्रमण किये। अलाउद्दीन के शासनकाल में मंगोलों का पहला आक्रमण कादर के नेतृत्व में 1297-98 ई. में हुआ। उलुग खां एव जफर खा के नेतृत्व में खिलजी सेना ने मंगोलों का े पराजित किया, जिसमें हजारो मंगोल मारे गये। सन् 1299 ई. मे ‘साल्दी’ के नेतृत्व मे  मंगोलों ने सिन्ध पर आक्रमण किया। अलाउद्दीन ने इस आक्रमण का े रोकने क े लिये जफर खां को भेजा, जिसने मंगोलों को बुरी तरह पराजित किया। उसने साल्दी मंगोल नेता एवं कई मंगोलों को बंदी बनाकर दिल्ली लाया। साल्दी के आक्रमण के कुछ समय पश्चात् 1299 ईमें ही कुतुमुलुग ख्वाजा ने आक्रमण किया। वह आक्रमण करता हुआ सीधा दिल्ली के पास पहुंचा। इस आक्रमण का सामना उलुग खां तथा जफर खां ने मिलकर किया। मंगोलों को पराजित होकर भागना पड़ा। भागते समय पीछा करते हुये जफर खां मारा गया।

1303 ई. में तरगी के नेतृत्व में चालीस हजार मंगोल पुनः दिल्ली के निकट पहुंच गये। अलाउद्दीन की सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। उसने सीरी के दुर्ग में शरण ली। मंगोल अलाउद्दीन की सुरक्षा व्यवस्था ताडे ़ नहीं पाय े और उन्हे वापस लौटना पड़ा। मंगोल ने दा े बार दिल्ली को संकट में डाल दिया था। अतः उत्तर-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा के लिए प्रभावकारी उपाय किये। उसने इन स्थानो में नये किलो का निर्माण कराया एव पुराने किलो की मरम्मत करवायी तथा यहां अनुभवी याग्ेय सैनिक एव सेनापतियो की नियुक्ति की। तरगी के पश्चात् 1305 ई. मे अलीबगे तथा ख्वाजाताश की सम्मिलित सेनाओं तथा उसके बाद कुबुक और इकबालमन्द ने भारत पर आक्रमण किये, परन्तु शाही सेनाओ ने मंगोलों को बुरी तरह पराजित किया, हजारो मंगाले मार डाले गय।े सन् 1308 ई. के बाद मंगोलों का े भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। 

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