1909 ई. में भारतीय संसद द्वारा अधिनियम पारित किया गया। जिसे मार्ले मिंटो सुधार भी कहते हैं।
इसके पारित होने के निम्न कारण थे।
- 1892 ई. के अधिनियम के प्रति असंतोष।
- उग्रवादी आंदोलनों का प्रभाव।
- क्रान्तिकारी आंदोलन।
- उदारवादियों को संतुष्ट करने का प्रयास।
- मुस्लिम साम्प्रदायिकता का अर्थ।
- इग्लेण्ड में उदारवादी दल की विजय ।
1909 ई. के अधिनियम की धारायें
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा के कुल सदस्यों की संख्या 69 निर्धारित की गई। अतिरिक्त सदस्यों में 27 निर्वाचित और 33 मनोनित होते थें। उसमें चार प्रकार के सदस्य थे।
- 1. पहले सदस्य 2. नामजद सरकारी सदस्य 3. नामजद गैर सरकारी सदस्य 4. निर्वाचित सदस्य
- बम्बई, मद्रास, बंगाल और उतर प्रदेश के प्रांतीय विधान परिषदों के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढाकर 50 कर दी गई।
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा तथा विधान परिषद के कार्यो एवं अधिकारों में वृद्धि।
मार्ले मिंटो सुधार के दोष
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा का त्रुटिपूर्ण गठन ।
- उतरदायी शासन का अभाव ।
- शक्तिहीन प्रांतीय विधान परिषदें में ।
- दोषपूर्ण निर्वाचन प्रणाली ।
- कुछ प्रदेशों को प्रतिनिधित्व के विकार से वंचित रखना।
Tags:
मार्ले मिंटो सुधार