भारत में साइमन कमीशन के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों को ध्यान में रखते हुए। भारत
सचिव लाॅर्ड ब्रेकनहैड ने भारतीयों को चुनौती दी थी कि वे विभिन्न दलांे और
संप्रदायों की सहमति से एक संविधान तैयार कर सके तो इंग्लैन्ड सरकार उस पर
गंभीरता से विचार करेगी। काँग्रेस ने इस चुनौती का सामना करने का निश्चय
किया। इस हेतु 28 फरवरी, 1928 ई. को दिल्ली में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया
गया। इसके पश्चात 19 मई, 1928 ई. को बंबई में डाॅ. अंसारी की अध्यक्षता में एक
सर्वदलीय बैठक हुई। इस बैठक में 9 व्यक्तियों की एक कमेटी बनायी गयी।
श्री मोतीलाल नेहरूजी इस कमेटी के अध्यक्ष थे।
कमेटी के अन्य सदस्य के सर तेज बहादुर सप्रू, सर अली इमाम, श्री. एम.
एस. बणे, श्री. कुरैशी, श्री. आर. प्रधान, जयकर, एम. एन. जोशी, सरदार मंगल सिंह
व सुभाषचन्द्र बोस थे। इस समिति को जुलाई, 1928 ई. से पहले ही इस कार्य को
पूर्ण करने के लिये कहा गया। पं. नेहरू क्योंकि इस कमेटी के अध्यक्ष थे, अतः इस
रिपोर्ट को ‘‘नेहरू-रिपोर्ट’’ कहा गया।
नेहरू रिपोर्ट के प्रावधान (Provisions of the Nehru Report)
संक्षेप में नेहरू रिपोर्ट के प्रावधान
निम्नलिखित थे-
- भारत की शासन व्यवस्था ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत औपनिवेशिक राज्यों के समान उत्तरदायित्व होनी चाहिये। ऐसे स्वशासन की स्थापना तत्काल ही कर देनी चाहिये।
- केन्द्रीय शासन में कार्यकारिणी कौसिंल को पूर्णतया व्यवस्थापन विभाग के प्रति उत्तरदायी होना चाहिये। इसी प्रकार प्रांतो की कार्यकारिणी कौसिले भी प्रांतीय विधानसभाओ के प्रति उत्तरदायी हो।
- कौन से मद केन्द्रीय सरकार के पास रहे और कौन से मद राज्य सरकार के पास रहे उनका उल्लेख भी किया गया था। जिनका उल्लेख नहीं किया गया था वह केन्द्रीय सूची के तहत् रखे जाये यह तय किया गया था।
- लखनऊ समझौते को मान्य करते हुये नेहरू रिपोर्ट में यह प्रतिपादित किया था कि पृथक प्रतिनिधित्व राष्ट्र की एकता में बाधक है, अतः उसका त्याग कर संयुक्त प्रतिनिधित्व के सिद्धान्तों को अपनाया जाना चाहिये। अल्पसंख्यक जातियों के लिये उनकी संख्या के अनुपात में स्थान दिये जाने चाहिये।
- भाषा के अनुसार प्रांतो का पुर्नगठन हो सिंध को बंबई से अलग करके नया प्रांत बना दिया जाये।
- उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त में भी वही शासन व्यवस्था हो जो अन्य प्रान्तों में हो।
Tags:
नेहरू रिपोर्ट