पाषाण काल किसे कहते हैं पाषाण काल कितने प्रकार के होते हैं?

जिस काल में पत्थर का प्रयोग किया जाता था उसे पाषाणकाल कहा जाता है । पाषाणकाल, मानव के उद्भव एवं विकास का काल है। मानव के प्रारंभिक काल के विषय में जो पुरात्विक साक्ष्य मिलते हैं उनमें पाषाण निर्मित उपकरणों की अधिकता के कारण ही इसे पाषाणकाल कहा जाता है। 

पाषाणकाल के प्रकार

भारतीय पुरातत्वविदों ने भी अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से पाषाणकाल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  1. पुरापाषाणकाल 
  2. मध्यपाषाणकाल 
  3. नवपाषाणकाल 

1. पुरापाषाणकाल

पुरापाषाण काल मानव के तकनीकी विकास का काल है। इस काल का समय-मान दीर्घकालिक है। इस सुदीर्घकाल में धीरे-धीरे अनेक तकनीकी परिवर्तन घटित हुए। इन तकनीकी परिवर्तनों एवं काल-क्रम आदि को ध्यान में रखते हुए एवं पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त पाषाण उपकरणों के अध्ययन के पश्चात् पुरापाषाणकाल को भी पुरातत्व वेत्ताओं ने भागों में विभाजित किया जो इस प्रकार हैं।

1. निम्न पुरापाषाण काल - निम्नपुरापाषाण काल के विषय में सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अनुसंधान का प्रारंभ फ्रांस से हुआ इसीलिए फ्रांस में प्रचलित प्रागैतिहासिक षब्दावली को मानक के रूप में स्वीकार किया जाता है। फ्रांस मंे पुरापाषाण काल के प्रथम सोपान के लिए निम्न पुरापाषाण काल षब्द का प्रयोग किया गया है।

2. मध्यपुरापाषाण काल - मध्य पुरापाषाण काल का एक प्रमुख पुरातात्विक लक्षण यह है कि इस काल के अधिकांश पाषाण उपकरण प्रायः फलक-निर्मित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विधिवत् तैयार किये गये क्रोडों से फलक निकालने की परम्परा का सर्वप्रथम विकास तत्कालीन विश्व के उत्तरी परिक्षेत्र में हुआ जिसमें उत्तरी फ्रीका तथा पश्चिमी एशिया से लेकर पश्चिमी, मध्यवर्ती एवं पूर्वी यूरोप के क्षेत्र सम्मिलित माने जा सकते हैं। 

3. उच्च पुरापाषाण काल -  पूर्ववर्ती पुरापाषाणिक कालों की तुलना में उच्च पुरापाषाण काल अथवा श्रेष्ठ पाषाण काल के संबंध में अधिक जानकारी प्राप्त है। पाषाण उपकरणों के निर्माण की तकनीकी प्रगति, मानव के शारीरिक एवं सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से यह काल अत्यन्त उल्लेखनीय है। कलात्मक अभिरुचि की अभिव्यक्ति भी इस काल में सर्वप्रथम दृष्टिगोचर होती है। यूरोप के अनेक क्षेत्रों तथा पश्चिमी एशिया में अप्रत्यक्ष संघात प्रविधि से निर्मित पतले एवं समानान्तर पार्श्व वाले ब्लेड इस काल की उपकरण परम्परा के प्रमुख तत्व के रूप में सामने आते हैं। इन
ब्लेडों का निर्माण नालिकायुक्त क्रोडो से प्रायः किया जाता था। बहुप्रयोजनीय उपकरणों का स्थान अत्यन्त विशिष्ट प्रकार के उपकरणों ने ले लिया। 

गिरमिट या ब्यूरिन इस काल का एक अत्यन्त विशिष्ट किस्म का उपकरण माना जाता है जिसका उपयोग हड्डी, सींग, हाथीदांत और लकड़ी आदि को तराशने, नक्काशी एवं छेद इत्यादि करने के लिए किया जाता था। तकनीकी विकास के इतिहास में उच्च पुरापाषाण काल के मानव का विशिष्ट स्थान है।
यूरोप में उच्च पुरापाषाण काल को श्रेष्ठ पाषाण काल कहा जाता है। 

इस काल के विशिष्ट प्रकार के पाषाणिक उपकरणों, कलात्मक पुरावषेषों तथा गुफा का निर्माता पूर्ण विकसित ‘होमो सेपियन मानव’ को माना जाता है। ये पुरावषेष उच्च प्रातिनूतन काल के भूतात्विक विभिन्न स्तरों से उपलबध हुए हैं यही कारण है कि उच्च पुरापाषाण काल षब्द का प्रयोग आफ्रीका तथा दक्षिण एषिया की प्रायः मिलती-जुलती पाषाणिक संस्कृतियों के लिए नहीं किया जाता है। इन क्षेत्रों की संस्कृतियों के लिए उत्तर पुरापाषाणिक षब्द का प्रयोग अधिक सार्थक एवं उपयुक्त प्रतीत होता है।

2. मध्य पाषाण काल

मध्य पाषाण काल, मानव संस्कृति के उस काल से संबंधित है जो कि सर्वनूतन काल के प्रारम्भिक समय में उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति के बाद विकसित हुआ है। इस काल को पुरापाषाण काल तथा नव पाषाणकाल के बीच का संक्रान्ति काल भी कहते हैं। यह काल लगभग दस हजार ई. पू. से प्रारम्भ होकर पाँच-छः हजार ई.पू. के बीच माना जाता है। पुरापाषाण काल में मानव ने अनेक प्रकार के उपकरणों का निर्माण किया तथा कला के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति की परन्तु उसे आर्थिक क्षेत्र में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। उच्च पुरापाषाण में उसने सामूहिक रूप से विशालकाय पशुओं का षिकार करके अपनी खाद्य समस्या को एक सीमा तक हल कर लिया, तथा बचे हुए समय का सदुपयोग कला के क्षेत्र में व्यतीत किया किन्तु फिर भी पुरापाषाणकालीन मानव प्रकृतिजीवी ही रहा। इस समय तक मानव इस बात से अनभिज्ञ था कि किस प्रकार कृषि तथा पशुपालन के माध्यम से प्रकृति को अधिक खाद्य सामग्री प्रदान करने के योग्य बनाया जा सकता था। 

यूरोप तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में मानव सभ्यता पुरापाषाण काल के पश्चात एक अन्य संस्कृति में परिवर्तित हो जाती है जिसे मध्य पाषाण काल के नाम से जाना जाता है।

3. नवपाषाण काल

मानव के सांस्कृतिक इतिहास में नवपाषाण काल, पाषाण युग का अंतिम चरण है। भौतिक प्रगति की दिषा में इस काल का महत्वपूर्ण स्थान है। यूरोप में प्रातिनूतन काल के अन्त एवं सर्वनूतन काल के आरम्भ में जब भूमि वनों से आच्छादित हो रही थी। तब वहाँ के उच्च पुरापाषाण काल के मानव बदली हुई परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के प्रयास में मध्यपाषाण कालीन संस्कृति में रहे। इसी समय पश्चिम एशिया तथा उत्तरी आफ्रीका में भी महत्वपूर्ण भौगोलिक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों का प्रभाव मानव के रहन-सहन पर भी पड़ा। इसीलिये इस काल के समाजों ने, जिन्हें आजीविका की पर्याप्त सुविधाएँ नहीं थीं, ऐसे क्रांतिकारी कदम उठाये कि एक नवीन अर्थव्यवस्था में मानव जीवन बदल गया जिसके परिणामस्वरूप एक अधिक उन्नत संस्कृति विकसित हो गई। जिसे पुरातत्ववेत्ता ‘‘नवपाषाण काल’’ तथा जाति विज्ञान ‘‘बर्बर युग’’ कहते हैं। इस काल के पूर्व तक मानव अपनी उदरपूर्ति के लिये पूर्णरूपेण प्रकृति पर निर्भर था। 

इस काल में उसने पहली बार कृषि तथा पशुपालन के द्वारा स्वयं खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना प्रारम्भ किया। खाद्योत्पादन से एक सच्ची आर्थिक तथा तकनीकी क्रान्ति का जन्म हुआ। इन साधनों ने समाज के सम्मुख खाद्य समस्या की पूर्ति का एक सम्भावीय विकल्प प्रस्तुत कर दिया। पुरापाषाण काल तथा मध्यपाषाण काल के बर्बर समाजों को प्रकृति कृपा से प्राप्त खाद्यान्न, सीमित मात्रा में मिलते थे। इसी कारण मानव आबादी भी सीमित रहती थी। परन्तु नव पाषाणकाल में कम से कम भूमि से अधिक अन्न का उत्पादन करके उसी अनुपात में बढ़ती हुई आबादी का भरण-पोषण किया जा सकता था। 

इसके अतिरिक्त इस काल में मानव ने वनों से प्राप्त लकड़ी से नाव, मकान तथा कृषि कर्म में आने वाले औजार अर्थात् काष्ठकला, मृदभांडकला तथा कपड़ा बुनना जैसी कलाओं का आविष्कार भी किया। इन सब उद्योगों में उसे नये ढंग के मजबूत उपकरणों की आवश्यकता पड़ी। इसी कारण नवपाषाण काल में मानव ने पाषाण उपकरणों को अभीष्ट आकार देने के लिए फलकीकरण के पश्चात् गढ़ना, घिसना तथा चमकाना जैसी विधियाँ सीखीं। इन उपकरणों के कारण पुरातत्ववेत्ता इस युग को नवपाषाण काल के नाम से पुकारते हैं।

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