प्रार्थना समाज की स्थापना के क्या उद्देश्य थे?

बंगाल से प्रारंभ समाज सुधार की लहर महाराष्ट्र प्रांत में भी आई, जहाँ 31 मार्च 1867 ई. में ब्रहा समाज से प्रभावित डाॅ. आत्माराम पांडुरंग (1823-98) द्वारा उद्घाटित और केशवचंद सेन द्वारा प्रेरित प्रार्थना समाज का जन्म हुआ। इसकी सफलता का श्रेय महादेव गोविन्द रानाडे को जाता है, जो इसकी स्थापना के दो वर्ष बाद प्रसिद्ध संस्कृत विद्धान आर. जी. भंडारकर के साथ इसमें सम्मिलित हुए थे। 

प्रार्थना समाज का संगठन नवीन ज्ञान की पृष्ठभूमि में हिन्दु धर्म और समाज में सुधार लाने के उद्देश्य से किया गया था। सामान्यतः यह समाज उन्हीं आस्थाओं में विश्वास करता था, जिनमें साधारण ब्रहा समाज करता था। 

इस समाज ने अन्तर्जातीय विवाह, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा, आदि का समर्थन किया तथा अछूतों, दलितों एवं पीडि़तों की दशा सुधारने के निमित्त दलित जाति मंडल, समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा जैसी कई कल्याणकारी संस्थाओं का गठन किया। 

प्रार्थना समाज का उद्देश्य

प्रार्थना समाज का उद्देश्य हिन्दू समाज में सुधार करना था। ब्रह्म की उपासना का संदेश देकर धर्म को रूढि़वादी तथा जातिवाद से दूर करने का प्रयास किया। एक ईश्वरवाद के अलावा महाराष्ट्र में समाज सुधार कार्य न कि विश्वास पर बल दिया गया इस समाज ने जाति प्रथा का विरोध, अन्र्तजातीय विवाह, विधवा-विवाह, पुरुषों एवं स्त्रियों की विवाह आयु सीमा बढ़ाने तथा स्त्री शिक्षा पर बल दिया है।

प्रार्थना समाज के प्रमुख नेता

इस समाज के प्रमुख नेता न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाड़े (1842-1901)और एन.जीचन्द्रवरकर (1855-1923) थे। इसके अतिरिक्त अगरकर, गोपाल हरि देशमुख, मालाबारी, शिन्डे, केम्बल और विष्णु शास्त्री पंडित आदि नेताओं भी योगदान दिया इसी समाज द्वारा स्थापित दलित जाति मण्डल समाज सेवा संघ, तथा दक्कन शिक्षा सभा ने अछूतों, दलितों और पीडि़तों की दशा सुधारने हेतु महत्वपूर्ण कार्य किये।

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