सघन बागवानी किसे कहते है? सघन बागवानी से लाभ और नुकसान

सघन बागवानी किसे कहते है

प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक से अधिक संभावित पौधों का समावेश करके तथा मृदा की उर्वर क्षमता को बिना क्षति पहुँचाये प्रति पौधा अधिकतम उत्पादन एवं लाभ प्राप्त करने को ही सघन बागवानी कहते है। 

हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या एवं प्रतिव्यक्ति फलों की कम उपलब्धता को देखते हुए सघन बागवानी एक असरदार तकनीक है क्योंकि इसमें क्षेत्रफल न बढक़र पौधों की संख्या में बढ़ोतरी होती है। इस विधि में छोटे एवं बौने किस्में के पौधों का चयन किया जाता है तथा उनको रूपान्तरित छत्रक प्रबंधन द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है जिससे ज्यादा से ज्यादा सूर्य की रोशनी पौधों  के अंदरूनी भागों तक आसानी पहुँच सके। इसी कारण से इसमें गुवत्तायुक्त अधिक उत्पादन प्राप्त होता है और साथ ही इसमें इकाई क्षेत्रफल में पारम्परिक की अपेक्षा अधिक संख्या में पौधे लगाये जाते है। इसमें प्रति इकाई समय में उपलब्ध जगह का अधिकतम उपयोग किया जाता है जिससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 

सघन बागवानी में पौधों को कटाई-छंटाई एवं सधाई करके नियंत्रित करते है तथा इसके लिए केवल वे ही पौधे उपयुक्त होते है जो कि काट छांट के प्रति सकारात्मक हो और जिनमें फलन हेतु नवीन कल्लों की आवश्यकता हो। साथ ही साथ जो पौधे पर्णपाती हों तथा सुषुप्तावस्था मे जा सके वे पौधे भी सघन बागवानी हेतु सबसे उपयुक्त होते है। सघन बागवानी द्वारा से सेब, केला, पपीता, अनार, अमरूद, लीची, नाशपाती, अनानास, नींबू वर्गीय फलो आदि मे किया जा रहा है। इससे फलोत्पादन में पाँच से दस गुना तक वृद्धि होती है जिससे देश में प्रतिव्यक्ति फलों की उपलब्धता के बढने से कुपोषण को दूर करने एवं किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलती है।

सघन बागवानी के प्रकार

प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की संख्या के आधार पर सघन बागवानी तीन प्रकार की होती है जो कि निम्नलिखित है-

(1) मध्यम सघन बागवानी- जब 500-1500 पौधे प्रति हेक्टेयर की दर से लगाये जाते है तो उसे मध्यम सघन बागवानी कहते है।

(2) अनुकूलतम सघन बागवानी - जब प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में 1500-10000 पौधे लगाये जाते है तो उसको अनुकूलतम सघन बागवानी कहते है।

(3) अति सघन बागवानी - जब प्रति हेक्टेयर फल पौधों की संख्या 10000 से 100000 के बीच हो तो उसे अतिसघन बागवानी कहा जाता है।

सघन बागवानी से लाभ

इस विधि से बागवानी करने पर निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते है जो इस प्रकार है-
  1. प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग होता है। 
  2. पौधों का आकार छोटा होने पर सूर्य का प्रकाश पौधे के अंदरूनी भागों तक पहुँचता है जिससे अधिक प्रकाश-संश्लेषण होता है, और फलों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  3. सघन बागवानी में पौधे जल्दी व्यावसायिक उत्पादन देना शुरू कर देते है। 
  4. अधिक संख्या में पौधों के समावेश के कारण उत्पादन एवं उत्पादकता में बढा़त्त्े ारी होती है।
  5. पौधों का आकार छोटा होने के कारण कटाई-छंटाई, फलों की तुड़ाई में आसानी, खाद एवं उर्वरक का अधिकतम उपयोग तथा बेहतर पौध संरक्षण उपाय अपनाने मे आसानी होती है।

सघन बागवानी से नुकसान 

सघन बागवानी में लाभ के साथ-साथ कुछ नुकसान भी है जो कि निम्नवत है-
  1. ज्यादा धूप पड़ने पर फलों में जलन हो सकती है।
  2. उचित देखभाल न होने पर फलों के आकार एवं रंग में कमी आ जाती है। 
  3. बाग स्थापना के लिए शुरुआती समय में अत्यधिक धन खर्च भी होता है। 
  4. कुछ वर्षों के बाद पौधों की टहनियाँ एवं जड़े आपस में उलझ सकती है। 
  5. ज्यादा कटाई-छंटाई होने से पौधों मे रोगों एवं कीट-व्याधियां का खतरा बढ जाता है साथ ही साथ फल उत्पादन एवं जीवन काल में भी कमी आ सकती है। 

सघन बागवानी हेतु ध्यान रखने योग्य बातें

इसके लिए कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार है- 
  1. छोटे एवं बौनी आकार वाले फल वृक्षों की किस्मों एवं मूलवृतों का चयन करना चाहिए। 
  2. शीघ्र फलन एवं अधिक उपज देने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए। 
  3. सही समय पर कटाई-छंटाई करने से फल वृक्षों कर ऊँचाई को नियंत्रित रखा जा सकता है। 
  4. भूमि की प्रकृति एवं जलवायु के आधार पर फल वृक्षों एवं प्रजातियांे का चयन करना चाहिए। 
  5. बाग की स्थापना उचित रोपण पद्वति द्वारा करनी चाहिए जिससे ज्यादा समय तक अधिक उत्पादन लिया जा सके। 
  6. पौधों में बौनापन बनाए रखने के लिए पादप वृद्धि नियामको का उपयोग करना चाहिए। 
  7. आधुनिक तकनीकी जैसे-बूंद-बूंद सिंचाई, फर्टीगेशन एवं पलवार आदि का उपयोग करके गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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