संकलनात्मक मूल्यांकन क्या है

संकलनात्मक मूल्यांकन से अभिप्राय पूरा कोर्स की समाप्ति के पश्चात किये जाने वाले समग्र मूल्यांकन से है। इस मूल्यांकन के लिए प्रयोग किए गए परीक्षणों को संकलनात्मक परीक्षण कहा जाता है। संकलनात्मक मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य किसी कोर्स की समाप्ति के बाद विद्यार्थियों की अधिगम उन्नति एवं उपलब्धियों को ज्ञात करना होता है। यह मूल्यांकन कोर्स की अवधि के पश्चात अर्थात् लम्बे समय पश्चात किया जाता है। अर्थात् छः महीने या एक वर्ष पश्चात्। इस मूल्यांकन की सहायता से यह ज्ञात किया जाता है कि शिक्षण उद्देश्यों की पूर्ति किस सीमा तक हुई है।

संकलनात्मक मूल्यांकन का दूसरा उद्देश्य विद्यार्थियों को ग्रेड या अंक एवं प्रमाणपत्र प्रदान करना होता है। इन ग्रेड अथवा अंकों की सहायता से विद्यार्थियों को उनकी योग्यताओं के अनुरूप वर्गीकृत किया जा सकता है और विभिन्न उद्देश्यों के लिए उनका चयन भी किय जा सकता है। इन्हीं अंकों अथवा ग्रेड के आधार पर विद्यार्थियों को अगली कक्षा में उन्नत किया जाता है।

इस मूल्यांकन में प्रयोग की जाने वाली प्रविधियों का निर्धारण शिक्षण उद्देश्यों के आधार पर किया जाता है परन्तु इनमें मुख्यतः अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। यद्यपि इस मूल्यांकन का उद्देश्य विद्यार्थियों की उपलब्धि का स्तर ज्ञात करके उन्हें प्रमाणपत्र प्रदान करना होता है फिर भी यह शिक्षण की प्रभावशीलता और पाठ्यक्रम के उद्देश्यों की शुद्धता का परीक्षण करने सम्बन्धी सूचना भी प्रदान करता है।

इस प्रकार के मूल्यांकन में न्यादर्श अथवा समूह सीमाएं होती हैं। इसमें परीक्षण-पदों या प्रश्नों की संख्या अधिक होती है इसलिए इसमें न्यादर्श त्रुटियाँ होने की संभावना अधिक होती है। अतः इसमें विषय-वस्तु एवं योग्यताओं के न्यादर्श लेने की प्रक्रिया में सावधानी की आवयकता होती है।

निर्माणात्मक एवं संकलनात्मक मूल्यांकन में अन्तर

1. निर्माणात्मक मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य किसी दिए गए अधिगम कार्य में प्रवीणता की सीमा ज्ञात करना है और कार्य के वह भाग जिसमें प्रवीणता नहीं प्राप्त की गई है, का भी पता लगाना है। इसीलिए इसमें ग्रेडिंग या सर्टिफिकेट प्रदान करने की अपेक्षा विद्यार्थी और अध्यापक को अधिगम प्रक्रिया में सुधार लाने में सहायता करने पर अधिक बल दिया जाता है। संकलनात्मक मूल्यांकन में अधिगम प्रक्रिया में सुधार लाने की अपेक्षा कोर्स की समाप्ति के पश्चात् अधिगम में हुई वृद्धि को ज्ञात करने और उसके आधार पर ग्रेड और सर्टिफिकेट प्रदान करने को विशेष महत्व दिया जाता हे। 

उदाहरण के लिए- भौतिकी (विद्युत और चुम्बकत्व) में एक सैमिस्टर की समाप्ति पर किए गए संकलनात्मक मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य यह ज्ञात करना होगा कि विद्यार्थियों ने इससे सम्बन्धित सिद्धांतों और प्रत्ययों को किस सीमा तक सीखा है और इनका दूसरे क्षेत्रों में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है। दूसरी ओर, इस विषय से संबंधित एक इकाई की समाप्ति पर किए गए निर्माणात्मक मूल्यांकन का उद्देश्य यह ज्ञात करना होगा कि क्या विद्यार्थी ने चुम्बकत्व से सम्बन्धित सिद्धान्तों को परिभाषित करना, अनुवाद करना, व्याख्या करना और दैनिक जीवन में उपयोग करना सीख लिया है। यदि विद्यार्थी में ऊपर लिखित क्षमताओं का विकास नहीं हुआ है तो उसे सहायक सामग्री और संसाधन उपलब्ध करवाए जाते हैं ताकि वह अपनी कमियों को दूर कर सकें।

2. निर्माणात्मक मूल्यांकन समान और छोटे अंतरालों के पश्चात् किया जाता है जबकि संकलनात्मक मूल्यांकन अपेक्षाकृत काफी लम्बे समय के पश्चात् किया जाता है। उदाहरण के लिए सोलह सप्ताहों में पूरे होने वाले एक कोर्स के लिए निर्माणात्मक मूल्यांकन प्रति सप्ताह के अन्त में किया जाएगा और समग्र मूल्यांकन सोलहवें सप्ताह के अंतिम दिन किया जाएगा।

3. निर्माणात्मक और संकलनात्मक मूल्यांकन में अंतर स्पष्ट करने ‘सामान्यीकरण स्तर’ सबसे अधिक सहायता करता है जहाँ निर्माणात्मक मूल्यांकन में विद्यार्थी को किसी दिए गए सिद्धान्त को किसी दी गई नई परिस्थिति में प्रयोग करने की योग्यता की जांच की जाती है वहीं संकलनात्मक मूल्यांकन में किसी विद्यार्थी के कौशल के विकास और योग्यता की जांच की जाती है वहीं संकलनात्मक मूल्यांकन में किसी विद्यार्थी के कौशल के विकास और विभिन्न परिस्थितियों में जांच की जाती है। ये विभिन्न परिस्थितियां विभिन्न सिद्धान्तों का एकीकृत या समन्वीकृत रूप प्रस्तुत करती है। इसी कारण संकलनात्मक मूल्यांकन का नियोजन करते समय अध्यापक को विषय-वस्तु और योग्यताओं को व्यापक एवं समन्वीकृत रूप में व्यवस्थित करना चाहिए। इस मूल्यांकन में परीक्षण की वैधता भी निर्धारित की जानी चाहिए।

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