उत्सर्जन तंत्र किसे कहते हैं

जीवों के शरीर में उपापचयी प्रक्रमों में बने विषैले अवषिष्ट पदार्थों के निष्कासन को उत्सर्जन कहते है। 

उत्सर्जन तंत्र किसे कहते हैं

प्रत्येक जीव को अक्षुण्ण रखने के लिए उसकी कोशिकाएँ निरन्तर कार्य करती रहती हैं। अधिकांशतः यह कार्य जैव रासायनिक क्रियाओं के रूप में होता है। इन क्रियाओं में हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ का बनना तथा शरीर में जल की मात्रा का कम या अधिक होना हो सकता है।

हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ की अधिक मात्रा को शरीर से निष्कासित करने के जैविक प्रक्रम को उत्सर्जन (Excretion) कहते हैं। शरीर में जल की उचित मात्रा तथा उपयुक्त आयनों का संतुलन बनाए रखना परासरण नियमन (Osmoregulation) कहलाता है। उत्सर्जन तथा परासरण नियमन दोनों ही साथ-साथ चलते रहते हैं। इन्हें संपादित करने वाले अंगतंत्र को मूत्र तंत्र या उत्सर्जन तंत्र कहते हैं।

मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र की संरचना

मुनष्य का उत्सर्जन तंत्रा उदरगुहा में स्थित होता है। इसमें सेम के बीच की आकृति के दो वृक्क होते हैं। प्रत्येक से एक वाहिनी निकलती है जिसे मूत्र वाहिनी कहते हैं जो मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय में एकत्रित मूत्र मूत्रमार्ग द्वारा शरीर से बाहर निष्कासित हो जाता है।

प्रत्येक वृक्क उत्सर्जन हेतु लाखों इकाइयों का बना होता है इन्हें वृक्क नलिकाएं (nephron) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क नलिका का ऊपरी सिरा एक प्याले के आकार की रचना बनाता है जिसे बोमन संपुट कहते हैं। बोमन संपुट में कोशिकाओं का सघन गुच्छा होता है। इसलिए इसे कोशिका गुच्छ (glomerulus)ध कहते हैं। ये कोशिकाएं वृक्क में आने वाली उस धमनी के विभाजन से बनती हैं जिसमें अपशिष्ट पदार्थ युक्त रुधिर प्रवाहित होता है। बोमन संपुट वृक्क नलिका का प्रवेश द्वार है।

वृक्क धमनी द्वारा अपशिष्ट पदार्थ वृक्क में आते है। कोशिका गुच्छ की कोशिकाओं से रुधिर का तरल भाग छनकर बोमन संपुट में आ जाता है। जैसे-जैसे यह वृक्क नलिका में प्रवाहित होता है, ग्लूकोज तथा अमीनो अम्ल जैसे सभी उपयोगी पदार्थ वृक्क नलिका के चारों ओर बने कोशिकाजाल द्वारा पुनः अवशोषित हो जाते हैं। वृक्क नलिकाएँ अपशिष्ट पदार्थों को वृक्क के भीतरी भाग में प्रवाहित कर देती हैं जहां से यह मूत्रनलिका द्वारा मूत्राशय तक चला जाता है। मनुष्य द्वारा मूत्र त्याग के समय तक यह मूत्राशय में ही एकत्र रहता है। मनुष्य के मूत्र में मुख्यतः यूरिया, कुछ अकार्बनिक लवण तथा जल होता है।

परासरण नियमन

उत्सर्जन की इकाई-वृक्क नलिका परासरण नियमन शरीर के अंदर जल की मात्रा तथा आयन सांद्रण को नियंत्रित करने का प्रक्रम है। परासरण नियमन जंतुओं के आवास से जुड़ा है। अलवणीय जल में रहने वाले जंतु अत्यधिक मात्रा मंे मुख और त्वचा द्वारा जल ग्रहण करते हैं। उन्हें अपशिष्ट पदार्थ के निष्कासन के लिए पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। समुद्री जंतु तथा मनुष्य सहित अन्य स्थलीय जंतुओं में जल संरक्षण की पर्याप्त आवश्यकता होती है अतः उत्सर्जन तंत्रा जल का पुनः अवशोषण करता है। अतिरिक्त जल का निष्कासन या पुनः अवशोषण हार्मोेन के नियंत्राण में रहता है। इस प्रकार, वृक्क का कार्य अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के अलावा शरीर के अन्दर जल तथा खनिज आयन के स्तर को नियंत्रित करना भी है।

वृक्क-निष्क्रियता तथा उत्तरजीविता हेतु तकनीक

आपने देखा कि मनुष्य की उत्तरजीविता के लिए वृक्क कितने महत्वपूर्ण हैं। सामान्यतः वृक्क अपक्रिय नहीं होते, परंतु संक्रमण, आघात, रुधिर प्रवाह में कमी अथवा अवरोध के कारण यह निष्क्रिय अथवा अपक्रिय हो सकते हैं। ऐसी अवस्था में रुधिर से अपशिष्ट पदार्थों का निस्पंदन करके उसमें जल तथा आयन की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने के लिए ‘कृत्रिम वृक्क’ नामक उपकरण का प्रयोग किया जाता है। जिसमें अपोहन अथवा डायालिसिस नामक तकनीक का उपयोग किया जाता है।

किसी अन्य व्यक्ति के सुमेलित वृक्क का रोगी के शरीर में प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है।

डायालिसिस (अपोहन) का नियम

अपोहन के उपकरण में सेल्युलोज़ की लंबी कुंडलित नलियां अपोहन विलयन से भरी टंकी में लगी होती है। जब रुधिर इन नलियों से प्रवाहित होता है तब अपशिष्ट पदार्थ विसरित होकर टंकी के विलयन में आ जाते हैं। स्वच्छ रुधिर रोगी के शरीर में पुनः प्रविष्ट करा दिया जाता है।

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