विज्ञान शिक्षण व विज्ञान शिक्षण की विधियाँ

जीव-विज्ञान शिक्षण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में इच्छित सामाजिक परिवर्तन लाना है। यह केवल प्रभावशाली शिक्षण से प्राप्त किया जा सकता है। प्रभावशाली शिक्षण अध्यापक एवं उसके द्वारा अपनायी गई विधि पर निर्भर करता है। अतः जीव-विज्ञान शिक्षण के क्षेत्र में विषय-वस्तु के साथ-साथ उसकी शिक्षण की विधियाँ भी पर्याप्त महत्व रखती हैं, जिनका निर्धारण अध्यापक अपनी तथा अपने विद्यार्थियों की योग्यता एवं विषय-वस्तु के स्वरूप के आधार पर करता है। इस प्रकार इन विधियों के माध्यम से अध्यापक विषय-वस्तु के ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों को जीव विज्ञान से सम्बन्धित अधिगम अनुभव भी प्रदान करता है।

शिक्षण विधियाँ शिक्षक को यह बताती हैं कि वह अपने छात्रों को किसी प्रकार शिक्षा प्रदान करें। यह सत्य है ”जिस प्रकार से सत्य मार्ग के अभाव में एक व्यक्ति निर्दिष्ट स्थान पर नहीं पहुँच सकता, उसी प्रकार उचित शिक्षण विधि के अभाव में विद्यार्थी को सही ज्ञान नहीं दिया जा सकता।“

जीव विज्ञान शिक्षण में शिक्षण-विधियों का विशेष महत्व है। शिक्षण विधियों का निर्धारण विषय-वस्तु के स्वरूप, विद्यार्थियों की योग्यता तथा अध्यापक की क्षमताओं के अनुरूप किया जाता है। शिक्षण विधियों के सही उपयोग द्वारा अध्यापक विषय वस्तु के ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों को विषय से सम्बन्धित अधिगम-अनुभव भी प्रदान करता है।

शिक्षण-विधियों का उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है। मनुस्मृति में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि वेदों की पढ़ाई में प्रश्नोत्तर तथा व्याख्यान प्रणालियों का प्रयोग होता था। प्राचीन भारत की शिक्षण प्रणालियों एवं आधुनिक काल की हरबर्ट प्रणाली में काफी समानता देखने को मिलती है। हरबर्ट की पंचपदीय शिक्षण-प्रणाली को शिक्षा जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

लाॅक के विचारों के कारण शिक्षा में पर्यवेक्षण तथा इन्द्रियों के अनुभव पर विशेष बल दिया जाने लगा। कोमिनियस ने सर्वपथम चित्रों द्वारा शब्द ज्ञान कराने की शैली की खोज़ की। उन्होंने पाठ्यविषयों को ज्ञानेद्रियों की सहयता से पढ़ाने के सामान्य नियमों का विकास किया। पेस्तालाजी ने वस्तु-पाठ की विधि की खोज़ की जिसमें विद्यार्थी के सामने एक वस्तु रखकर उससे संबंधित विचारों का बोध कराया जाता है। फ्रोबेल ने ¯कडगार्टेन विधि एवं मारिया मांटेसरी ने मांटेसरी विधि के प्रयोग पर बल दिया। रूसो ने खेल शिक्षण विधि के प्रयोग को विशेष महत्व दिया। जाॅन डेवी के दर्शन के आधार पर किलपैट्रिक एवं स्टीवेन्सन ने प्रयोजन विधि का विकास किया।

मुख्य शिक्षण विधियाँ

जीव विज्ञान में निम्नलिखित शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है-
  1. व्याख्यान विधि (Lecture Method)
  2. निरीक्षण विधि (Observation Method)
  3. प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method)
  4. प्रदर्शन विधि (Demonstration)
  5. व्याख्यान-प्रदर्शन विधि (Lecture-Cum-Demonstration Method)
  6. निरीक्षण-अध्ययन विधि (Supervised Study Method)
  7. अन्वेषण विधि (Heuristic Method)
  8. प्रयोजन विधि (Project Method)
  9. दत्त कार्य विधि (Assignment Method)
  10. तर्क या वार्तालाप विधि (Discussion Method)
  11. समस्या-समाधान विधि (Problem Solving Method)
  12. पुनरावृत्ति विधि (Review Method)
  13. ट्यूटोरियल विधि (Tutorial Method)
  14. ऐतिहासिक विधि (Historical Method)
  15. प्रश्नोत्तर विधि (Question-Answer Method)
  16. पात्रा-अभिनय विधि (Role-Playing Method)
  17. आगमन-निगमन विधि (Inductive-Deductive Method)
संदर्भ -
  • 'Teaching of life Science' , Tandon Publications, Ludhiana.
  • ‘भौतिकी एवं जीव विज्ञान शिक्षण’, आर्य बुक डिपो, नई दिल्ली, 1995

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