जर्मनी में वाइमर गणतंत्र की स्थापना और उसकी असफलता के कारण

पेरिस शांति सम्मेलन में 230 पृष्ठों का पन्द्रह भागों में विभक्त वर्साय संधि का अत्यन्त कठोर एवं अपमानजनक मसौदा जर्मन प्रतिनिधि काउंट फाॅन ब्राकडार्फ रान्टाजू के सम्मुख रखा गया। तत्कालीन जर्मनी की शिडेमान सरकार ने संधि को अस्वीकार कर त्यागपत्र दे दिया। तब जर्मनी में नयी सरकार बनी जिसका प्रधानमंत्री गुस्टावजीर एवं विदेश मंत्री मूलर था। इनके नेतृत्व में ही जर्मनी में वाइमर रिपब्लिक की स्थापना हुई। वाइमर रिपब्लिक के प्रतिनिधियों ने ही 28 जून, 1919 को अत्यन्त अपमानजनक माहौल में बर्साय संधि पर हस्ताक्षर किये। इस संधि पर हस्ताक्षर करने के उपरान्त ही सभी नेता ‘वाइमर’ नामक स्थान पर एकत्रित हुये और रिपब्लिक प्रणाली को अपनाया। जर्मनी में प्रजातांत्रिक प्रणाली अपनायी गयी। राष्ट्रपति इसका प्रमुख था। प्रधानमंत्री को चान्सलर की पदवी प्रदान की गई। 11 अगस्त, 1919 ई. को नवीन संविधान लागू हुआ।

संविधान के तहत हुये चुनाव में फ्रेडरिक एबर्ट के नेतृत्व में समाजवादी दल की सरकार बनी। चूँकि वाइमर रिपब्लिक ने बर्साय की संधि मंजूर की थी अतः जनता वाइमर रिपब्लिक की विरोधी थी। लोगों ने ‘वर्साय संधि मुर्दाबाद’ के नारे लगाये। 1929-31 ई. के महान आर्थिक संकट (विश्वव्यापी मंदी) की विभीषिका का सामना जर्मनी को भी करना पड़ा। संकट तो समस्त विश्व के समक्ष था मगर जर्मन जनता ने इस संकट से न उबर पाने के लिये वाइमर रिपब्लिक को दोषी ठहराया।

राष्ट्रपति एबर्ट की 1925 ई. में मृत्यु के पश्चात हिण्डनबर्ग 7 वर्ष के लिये वाइमर रिपब्लिक का राष्ट्रपति बना।

वाइमर रिपब्लिक की असफलता एवं पतन के कारण

वाइमर रिपब्लिक की असफलता एवं पतन के प्रमुख कारण निम्नानुसार थे - 
  1. वाइमर रिपब्लिक की स्थापना अत्यन्त प्रतिकूल परिस्थितियों में हुई थी। उसके द्वारा बर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करना जर्मन जनता को पसन्द नहीं आया। 
  2. जर्मनी पर युद्ध क्षतिपूर्ति हेतु जो रकम लादी गई थी उसे चुका पाना जर्मनी के लिये असंभव था। विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। 
  3. साम्यवादी एवं राजतंत्रवादी दल जर्मनी में वाइमर रिपब्लिक का विरोध कर रहे थे। जर्मन राजनीति दलगत राजनीति का शिकार थी। 
  4. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के कारण जर्मनी आर्थिक परेशानियों में फंस गया। मुद्रा स्फीति के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई। बेकारी बढ़ गई। जर्मन सिक्के की विनिमय दर कम हो गयी। कारखाने बंद हो गये। मजदूर बेकार हो गये। उद्योगपतियों ने बाइमर रिपब्लिक का समर्थन बन्द कर दिया। 
  5. विस्मार्क ने अपने युग को विस्मार्क युग कहलवाया। उसने यूरोपीय राजनीति का केन्द्र जर्मनी में स्थापित किया था। बर्साय संधि के पश्चात अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी की साख बहुत गिर गयी। अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में उसके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया गया। जर्मन की स्वाभिमानी जनता यह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। उसने अपने इस अपमान के लिये वाइमर रिपब्लिक को दोषी ठहराया।
बाइमर रिपब्लिक के पतन का इन सब कारणों से अधिक महत्वपूर्ण कारण था जर्मनी में हिटलर एवं नाजीवादी पार्टी का उदय। जर्मन जनता हताश थी, निराश थी, चारों ओर उसे अन्धकार दिखायी दे रहा था। वह इसके लिये वाइमर रिपब्लिक को दोषी मानती थी। एक जर्मन नवयुवक ने अपनी हताशा को इन शब्दों में व्यक्त किया था -‘हम एक ऐसे युवक समाज के सदस्य हैं जिसको न तो भविष्य में कोई आशा है और न तो वर्तमान काल में कोई सुख’ जर्मनी के ऐसे हताश नवयुवकों में आशा का संचार हिटलर ने किया। उसने जब बर्साय की संधि की धाराओं को तोड़ने की बात कही तो समस्त जनता ने उसे समर्थन दिया। नाजीवादी दल के उत्थान ने जर्मन जनता में एक नवीन चेतना का संचार किया।

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